2019 में मोदी लहर में भी एकछत्र राज कायम नहीं कर सकी थी भाजपा

-पूर्वांचल में 27 सीटों पर सियासी ‘कद’ की लड़ाई

-जातीय ‘सरहद’ तोड़ने का होगा लिटमस टेस्ट

(फोटो : नेता यूपी)

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में पांच चरणों के लोकसभा चुनाव बीत जाने के बाद अब अगले दो चरणों का चुनाव पूर्वांचल के इलाके में होना है। छठे और सातवें चरण में 27 लोकसभा सीटों पर सियासी दलों का इम्तिहान होना है। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर तक में आखिरी चरण में सियासी कद के जरिए पूर्वांचल के जातीय सरहद को तोड़ने का लिटमस टेस्ट होगा तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने आजमगढ़ सीट को वापस सपा की झोली में डालने के साथ-साथ उनके पीडीए फॉर्मूले का भी लिटमस टेस्ट भी इसी इलाके में होना है। बसपा प्रमुख मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी पार्टी के सियासी आधार को बचाए रखने की है। बीजेपी 2019 में मोदी लहर में भी पूर्वांचल के इलाके में अपना एकछत्र राज कायम नहीं कर सकी थी। सपा-बसपा गठबंधन के चलते पूर्वांचल इलाके की आधा दर्जन सीटों पर बीजेपी को मात खानी पड़ गई थी। पूर्वांचल क्षेत्र की 27 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 18 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि 2 सीटें सहयोगी अपना दल (एस) को मिली थी। सपा-बसपा गठबंधन 7 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिसमें 6 सीटें बसपा और एक सीट सपा को मिली थी। हालांकि, सपा ने बाद में जीती आजमगढ़ सीट को गंवा दिया था। पिछली बार सपा-बसपा साथ थे, लेकिन इस बार दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। सपा-कांग्रेस मिलकर मैदान में उतरी हैं तो बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और संजय निषाद की निषाद पार्टी से हाथ मिला रखा है। ऐसे में अब पूर्वांचल की सियासी लड़ाई में देखना है कि किसका किला बचता है और किसका नहीं?

छठे चरण में यूपी की 14 और 7वें में 13 सीटों पर मतदान

लोकसभा चुनाव के छठे चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर 25 मई को मतदान है तो सातवें चरण में 13 सीटों पर एक जून को वोटिंग है। छठे चरण में सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, प्रयागराज, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीरनगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, भदोही में चुनाव है। सातवें चरण में वाराणसी, गोरखपुर, मिर्जापुर, चंदौली, घोसी, गाजीपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, बलिया और रॉबर्ट्सगंज सीट पर एक जून को मतदान है।

टीएमसी भी लड़ रही एक सीट पर

यूपी में अंतिम दो चरणों में जिन 27 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है, उसमें से 24 सीट पर बीजेपी और दो सीट पर अपना दल (एस) और एक सीट पर राजभर की पार्टी के प्रत्याशी मैदान में है। वहीं, सपा 22 सीट पर उम्मीदवार उतार रखे हैं तो चार सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं। इसके अलावा एक सीट पर टीएमसी चुनाव लड़ रही है। पूर्वांचल में ओबीसी, दलित और सवर्ण वोटर काफी अहम भूमिका में है, जिसके आधार पर ही राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछा रखी है।

ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी है सियासत

पूर्वांचल की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। माना जाता है कि इस पूरे इलाके में करीब 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, जीत उसकी तय हुई. 2017-2022 के विधानसभा और 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पिछड़ा वर्ग का अच्छा समर्थन मिला। नतीजतन केंद्र और राज्य की सत्ता पर मजबूती से काबिज हुई। ऐसे में बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां ओबीसी वोटों का साधने के लिए तमाम जतन इस बार किए हैं। ऐसे में बसपा ने भी पूर्वांचल के सियासी समीकरण को देखकर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

सपा की सियासी बिसात

सपा ने अपने कोटे की 22 लोकसभा सीटों में से 14 सीट पर गैर-यादव ओबीसी के प्रत्याशी उतार रखा है तो चार सीट पर दलित उम्मीदवार हैं। इसके अलावा एक यादव, एक मुस्लिम और एक ब्राह्मण और एक राजपूत प्रत्याशी मैदान में है। कांग्रेस ने अपने कोटे की चार सीटों में दलित-ओबीसी-भूमिहार और ठाकुर एक-एक उम्मीदवार है। इस तरह सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले को तहत सियासी बिसात पूर्वांचल में बिछाया है। मायावती के सियासी कमजोरी का पूरा फायदा इंडिया गठबंधन उठाने की कोशिश में है।

मोदी की निगाहें लगातार तीसरी बार जीतने पर

वहीं, पूर्वांचल में बीजेपी ने ओबीसी जातीय आधार वाले दलों के साथ हाथ मिलाकर सियासी समीकरण दुरुस्त करने की दांव चला है। पीएम मोदी खुद काशी के रणक्षेत्र में हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं तो सीएम योगी का गृह जनपद गोरखपुर है। बीजेपी अपने दिग्गज चेहरों के साथ सहयोगी दलों की भी जमीन परखी जाएगी। मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज से अपना दल (S) चुनाव लड़ रही है। वहीं, घोसी में सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर अपने बेटे अरविंद राजभर को चुनाव लड़ा रहे हैं। ऐसे में देखना है कि जातीय बिसात पर खड़ी पूर्वांचल की सियासी जमीन पर किसका पलड़ा भारी रहता है।

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