46 फीसदी वोटिंग से कांग्रेस ने जीत ली थीं 364 सीटें और 67 पर बीजेपी को 303

  • लोकसभा चुनाव 2024 : शुरुआती दो चरण में कम वोटिंग है चर्चा का विषय
  • चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले चुनाव की तुलना में तीन से चार प्रतिशत कम वोटिंग

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में दो चरणों में हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा चुनाव आयोग ने जारी कर दिया है। यह क्रमश: 66.14 और 66.71 प्रतिशत बताया गया है। दो चरणों में 189 सीटों पर चुनाव हुए हैं। बताया जाता है कि इन सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में तीन से चार प्रतिशत कम वोटिंग हुई है। इस सवाल पर बहस पहले चरण के मतदान के बाद से ही शुरू हो गई है। कई लोग मान रहे हैं कि यह भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। लेकिन, आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वोटिंग पर्सेंटेज का जीत से कोई सीधा संबंध नहीं है। कई उदाहरण ऐसे हैं जहां कम वोटिंग पर्सेंटेज पर ज्यादा सीटें आ गई हैं और इसका उल्टा भी हुआ है। उदाहरण के लिए पहले चुनाव (1951-52) की बात करें तो केवल 45.67 फीसदी वोटिंग के साथ कांग्रेस ने 364 (489 में से) सीटें जीत ली थीं। जबकि, 2019 में रिकॉर्ड 67.4 प्रतिशत मतदान होने के बावजूद भाजपा को 303 सीटें ही आईं। इसी तरह अगर 1998 और 1999 के चुनावों पर नजर डालें तो इनमें मतदान का प्रतिशत क्रमश: 61.97 और 59.99 रहा था। लेकिन, दोनों ही चुनावों में बीजेपी 182 सीटों के साथ ही सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई। इसके उलट, कांग्रेस को 1991-92 में केवल 55.88 फीसदी मतदान होने के बावजूद 244 सीटें मिल गई थीं।

अब तक के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत और नतीजे कैसे रहे, इस टेबल में देखें

चुनावी वर्ष कितनी सीटें जीतीं किस पार्टी ने कुल मतदान (प्रतिशत)

1951 364 कांग्रेस 45.67

1957 371 कांग्रेस 47.74

1962 361 कांग्रेस 55.42

1967 283 कांग्रेस 61.04

1971 352 कांग्रेस 55.27

1977 295 बीएलडी 60.49

1980 353 कांग्रेस 56.92

1984-85 414 कांग्रेस 64.01

1989 197 कांग्रेस 61.95

1991-92 244 कांग्रेस 55.88

1996 161 बीजेपी 57.94

1998 182 बीजेपी 61.97

1999 182 बीजेपी 59.99

2004 145 कांग्रेस 58.07

2009 206 कांग्रेस 58.21

2014 282 बीजेपी 66.44

2019 303 बीजेपी 67.40

(चुनाव के नतीजों के लिहाज से मतदान-प्रतिशत से ज्यादा महत्वपूर्ण है वोट को सीटों में बदलने की पार्टियों की क्षमता। इस क्षमता के लिहाज से 1951 से 2019 तक कौन पार्टी भारी पड़ी वह इस टेबल को देख कर समझा जा सकता है।)

चुनावी वर्ष सीटें मिलीं सबसे बड़ी पार्टी पार्टी को मिले

वोट (प्रतिशत)

1951 364 कांग्रेस 45.0

1957 371 कांग्रेस 47.8

1962 361 कांग्रेस 44.7

1967 283 कांग्रेस 40.8

1971 352 कांग्रेस 43.7

1977 295 बीएलडी 41.3

1980 353 कांग्रेस 42.7

1984-85 414 कांग्रेस 48.1

1989 197 कांग्रेस 39.4

1991-92 244 कांग्रेस 36.4

1996 161 बीजेपी 20.3

1998 182 बीजेपी 25.6

1999 182 बीजेपी 23.8

2004 145 कांग्रेस 26.5

2009 206 कांग्रेस 28.6

2014 282 बीजेपी 31.3

2019 303 बीजेपी 37.7


(वोट को सीट में बदलने की क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है। मैदान में जितने ज्यादा उम्मीदवार होते हैं वोट को सीटों में बदलने की चुनौती उतनी बढ़ जाती है। इस लिहाज से यह चुनौती लगातार बढ़ती गई है। 1951-52 के पहले चुनाव में महज 53 पार्टियां मैदान में थीं। 2019 में यह संख्या 673 पर पहुंच गई। यानी, 12 गुना ज्यादा। देखिए यह टेबल…)

चुनावी वर्ष कुल पार्टियां मान्यताप्राप्त राष्ट्रीय दल मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय दल

1951 53 418 34

1957 15 421 31

1962 27 440 28

1967 25 440 43

1971 53 451 40

1977 34 481 49

1980 36 485 34

1984-85 35 462 66

1989 113 471 27

1991-92 145 473 51

1996 209 403 129

1998 176 387 101

1999 169 369 158

2004 230 364 159

2009 363 376 146

2014 464 342 182

2019 673 397 136

कम मतदान की वजह

कम मतदान के पीछे एक कारण माना जाता है कि वोटर्स में मतदान के प्रति उत्साह नहीं है। इस उदासीनता को अक्सर सत्ता विरोधी लहर से जोड़ कर भी देख लिया जाता है। वैसे इसके कई कारण होते हैं। इस चुनाव में गर्मी भी एक कारण हो सकता है। इसके अलावा फसलों की कटाई का मौसम, छुट्टी, शहरी मतदाताओं की वोट देने के प्रति पारंपरिक उदासीनता, पलायन आदि कारण हो सकते हैं। पहली बार वोट डालने वालों की उदासीनता भी एक बड़ी वजह मानी जा सकती है। वोट डालने का अधिकार पा चुके करीब 60 फीसदी नौजवानों ने अपना वोटर कार्ड ही नहीं बनवाया।

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