कहानी भारत के उन नेताओं की जो बने रहे ‘पीएम इन वेटिंग’
नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के इतिहास में अगर नजर डालें तो पहले भी कई नेता थे जो पीएम मटेरियल यानी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखे गए लेकिन कुछ खुद ही रेस से अलग हो गए या कुछ सत्ता के खेल में हार गए। लेकिन कुछ नेता ऐसे भी रहे हैं जिनका नाम अचानक ही सामने आया और प्रधानमंत्री भी बने। हमको बताएंगे कहानी उन नेताओं की जो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए और इनके नाम के साथ ‘पीएम इन वेटिंग’ हमेशा के लिए जुड़ गया।
गुलजारी लाल नंदा
कांग्रेस के नेता गुलजारी नंदा ने देश का पहला चुनाव लड़ा था। मुंबई सीट से जीतकर आए गुलजारी नंदा भारत की पहली सरकार में मंत्री बने। नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। पहली बार जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ। गुलजारी नंदा 13 दिन तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। उसके बाद दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के अकस्मात मौत के बाद इस बार भी वो देश के 13 दिन तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहें।
के कामराज
के कामराज कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वो तमिलनाडु के 9 सालों तक सीएम भी रहे. उनको भारतीय राजनीति का पहला किंग मेकर’ भी कहा जाता है। पंडित नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद दो बार मौका आया कि के कामराज प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि न उनको अंग्रेजी आती है और न हिंदी।
बाबू जगजीवन राम
1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई और जनता पार्टी को बहुमत मिल गया। लेकिन समस्या ये आई कि प्रधानमंत्री पद किसे दिया जाए। तीन नेता दावेदार थे जिनमें मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम. लेकिन जनता पार्टी के अंदर के समीकरण टकरा रहे थे। सोशलिस्ट पार्टी के नेता जॉर्ज फर्नांडीज और मधु दंडवते के साथ ही जनसंघ बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थी। बाबू जगजीवन राम के तौर पर देश को पहला दलित प्रधानमंत्री मिलने ही वाला था लेकिन जनता पार्टी में आखिरी सहमति मोरार जी देसाई के नाम पर बन गई। बाबू जगजीवन राम को उप प्रधानमंत्री बनाया गया।
ज्योति बसु
1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में बहुमत साबित करने से पहले इस्तीफा दे दिया था। इधर तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद तेज हो गई। उस समय पीएम पद के लिए पश्चिम बंगाल में लोकप्रिय नेता ज्योति बसु के नाम पर सहमति बन गई। ज्योति बसु की पार्टी सीपीएम की केंद्रीय समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। समिति का कहना था कि सरकार बनेगी तो उन्हें उसी पूंजीवादी और भूमंडलीकरण को लागू करना पड़ेगा जिसका वे लोग अब तक विरोध करते हैं। वामदलों के सिर्फ 40 सांसदों को लेकर अपने सिद्धांतों पर सरकार नहीं चला सकते हैं। और इस तरह से ज्योति बसु प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
लालू प्रसाद यादव
1996 में ही ज्योति बसु का नाम खारिज होने के बाद मुलायम सिंह यादव का नाम वामपंथी नेता हरिकिशन सुरजीत आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन लालू यादव और शरद यादव ने समर्थन नहीं किया। मुलायम सिंह यादव की जीवनी लिखने वाले पत्रकार फ्रैंक हूजूर ने अपनी किताब ‘द सोशलिस्ट में मुलायम सिंह यादव के शब्दों में लिखा, ‘ देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने. मैं भी बन सकता था। सारा खेल लालू यादव ने बिगाड़ा. वीपी सिंह की शह पर लालू और शरद यादव ने साजिश की. पूर्व सपा नेता और मुलायम सिंह यादव के कभी बेहद खास रहे अमर सिंह ने भी दावा किया था कि अगर चंद्रबाबू नायडू, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने विरोध न किया होता तो मुलायम सिंह यादव को सिर्फ शपथ लेना बाकी रह गया था।
लालकृष्ण आडवाणी
दिग्गज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के पास पीएम पद के लिए सीधे मौका मिला साल 2009 में, जब बीजेपी ने उनको आगे कर लोकसभा चुनाव लड़ा। लेकिन उसके पहले आडवाणी एक बड़ी चूक कर चुके थे। पाकिस्तान यात्रा में उन्होंने जिन्ना की मजार पर जाकर उनको सबसे बड़ा सेक्युलर बता दिया। उनके इस बयान पर भारत में जमकर विरोध हुआ और आरएसएस भी उनसे नाराज हो गया। इसके बाद बीजेपी में साल नरेंद्र मोदी का जैसे चेहरे का उदय हुआ. आडवाणी सहित तमाम बड़े नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया।
सोनिया गांधी
साल 2004 में कांग्रेस ने सोनिया गांधी की अगुवाई में लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में वाजपेयी की सरकार हार गई। सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए एकदम तय था। लेकिन सुषमा स्वराज और उमा भारती नेता सोनिया के विदेशी मूल होने का मुद्दा उठा दिया। हालांकि सोनिया ने काफी पहले ही भारत की नागरिकता हासिल कर ली थी। उनके प्रधानमंत्री बनने में कानूनी रूप से कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने पीएम पद के लिए मनमोहन सिंह का नाम आगे आगे कर दिया।
000

