अटल की हो गई थी जमानत जब्त तो हेमा दो बार से सांसद

-खट्टा-मीठा रहा है मथुरा लोकसभा सीट का मिजाज

  • भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली का मिजाज भी उन्हीं की तरह रहा है चंचल

लखनऊ। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की लोकसभा सीट का मिजाज भी उन्हीं की तरह चंचल रहा है। कभी यह धारा के साथ चली तो कभी धारा के विपरीत बही। बड़े नामों को संसद भेजा लेकिन कई बार ऐसे लोगों को निराश भी किया। मथुरा सीट दिलदार रही है। बाहरियों को भी मौका दिया अपना प्रतिनिधित्व करने का। चाहे वह मौजूदा सांसद हेमामालिनी हों या उनसे पहले जयंत चौधरी। मनीराम बागड़ी तो इतिहास में दर्ज हैं। आजाद भारत में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो इस सीट ने धारा के विपरीत चलने का अपना परिचय दिया। देश में कांग्रेस ही कांग्रेस थी, लेकिन जब चुनाव हुए तो यहां से कांग्रेस नहीं बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राजा गिरराज शरण सिंह जीते। इसके अगले चुनाव में भी यही हुआ। उसका किस्सा तो और भी दिलचस्प है। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां से पर्चा भरा था। जनसंघ के टिकट पर वह दावेदारी कर रहे थे। लोगों को उम्मीद थी कि कांग्रेस नहीं तो जनसंघ के लिए लोग अपना प्यार दिखाएंगे। लेकिन हुआ उल्टा। एक बार फिर सीट निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप के खाते में गई। अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई। उन्हें कुल जमा दस प्रतिशत वोट मिले थे।

जाट बहुल लेकिन आरएलडी का किला नहीं

मथुरा को शुरुआती दौर से ही जाट बहुल सीट माना जाता है। अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय से आते हैं। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि जाट बिरादरी का प्रतिनिधित्व करने वाली आरएलडी कभी इसे अपना किला नहीं बना सकी। यहां से 2009 में जयंत चौधरी सांसद चुने गए थे हालांकि, तब आरएलडी भाजपा के साथ गठबंधन में थी। । इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती भी चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया था।

सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बाहरी के नाम

1977 में मथुरा लोकसभा सीट पर भारतीय लोकदल उम्मीदवार मनीराम बागड़ी जीते थे। यह जीत इस सीट पर सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड है। बागड़ी हरियाणा के हिसार के रहने वाले थे। तब चुनाव में 3,92,137 वोट पड़े थे, जिनमें से 76.79 % यानी 2,96,518 वोट मनीराम के हिस्से आए थे। यह रिकॉर्ड 42 वर्षों से कायम है।

तीन बार कांग्रेस तो चार बार लगातार जीती बीजेपी

पहले दो चुनावों में भले ही यहां से निर्दलीय उम्मीदवारों पर जनता ने भरोसा जताया लेकिन उसके बाद 1962, 1967 और 1971 के चुनावों में कांग्रेस को लगातार तीन बार जीत मिली। वहीं, 90 के दशक में बीजेपी लगातार चार बार जीत दर्ज करवाने में सफल रही है। 1991, 1996, 1998 और 1999 के चुनावों में एक बार साक्षी महाराज और तीन बार चौधरी तेजवीर सिंह भाजपा के टिकट पर जीते थे। इसके अलावा अगर इस सीट पर दलबदल की स्थिति देखें तो यहां यह कोई मसला नहीं दिखता है। पार्टी बदल-बदल कर उम्मीदवारों ने दावेदारी की और चुनाव उनकी झोली में आया भी। जनता पार्टी से चुने जाने से पहले चौधरी दिगंबर सिंह दो बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे थे। मानवेंद्र सिंह पहले कांग्रेस फिर जनता दल और उसके बाद फिर कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे थे।

बीजेपी ने उतारा हेमा मालिनी को

75 साल की अघोषित कटऑफ को शिथिल करते हुए भाजपा ने एक बार फिर इस सीट से हेमा मालिनी को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। कांग्रेस और सपा के गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। हालांकि अभी इसपर पत्ते खुलना बाकी हैं। –

2019

बीजेपी हेमामालिनी 6,71,293 60.79%

आरएलडी कुंवर नरेंद्र सिंह 3,77,822 34.26%

कांग्रेस महेश पाठक 28,084 2.55%

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