प्रदेश में अब कर सकेंगे अंगदान, नहीं जाना पड़ेगा दूसरे राज्य

शासन ने बनाया नियम

  • हाईकोर्ट ने जनहित याचिका निराकृत करते हुए सभी मांगे मानी
  • शासन ने शपथपूर्वक कहा- प्रदेश में 20 ट्रांसप्लांट भी हो चुके

बिलासपुर। अंगदान की मांग को लेकर दायर याचिका हाईकोर्ट ने निराकृत कर दी है। शासन ने दायर याचिका की सभी मांगों को मान लिया है। साथ ही शासन ने हाईकोर्ट में शपथपूर्वक जवाब दिया है कि इस संबंध में नियम बनाकर नोटीफाई भी कर दिया गया है और प्रदेश में 20 ट्रांसप्लांट भी हो चुके हैं। ध्यान रहे कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (होटा) 1994 में लागू हुआ। 2011 में संशोधित एक्ट को छत्तीसगढ़ ने एडॉप्ट कर लिया, लेकिन यहां नियम नहीं बनाए गए। इसकी वजह से अंगदान की आधी-अधूरी प्रक्रिया निभाई जा रही थी, जिससे जरूरतमंदों को अंग नहीं मिल पा रहा था। ज्ञात हो कि अब तक राज्य में रक्त संबंधियों को आंशिक रूप से लीवर और किडनी के साथ ही कार्निया और शरीर दान की सुविधा है। लेकिन दूसरे तरह के अंगों के दान के लिए अंगदान कानून जरूरी है जो राज्य में अब तक लागू नहीं था। इसके लिए अब तक महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली, चेन्नई जाना पड़ता था। अब नियम बनाए जाने से प्रदेश के लोगों को बड़ी राहत और सुविधा मिली है।

ज्ञात हो कि बिलासपुर निवासी आभा सक्सेना ने अधिवक्ता अमन सक्सेना के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत की थी। इस संबंध में जनहित याचिका दायर कर नियम बनाने, फंडिंग देने व एसओपी को अप्रूव करने की मांग की गई थी। पिछली सुनवाई में राज्य शासन की तरफ से बताया गया था याचिका की सभी मांगे पूरी हो करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अस्पतालों का रजिस्ट्रेशन भी किया जा रहा है।

250 से ऐसे मरीज जिन्हें जरूरत

याचिका में कहा गया था कि प्रदेश में अंग प्राप्त करने के लिए 250 से अधिक लोग कतार में हैं। इन्हें किडनी, हार्ट, लीवर, लंग्स, पैंक्रियाज, कॉर्निया और स्मॉल बाउल (छोटी आंत) जैसे अंगों की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में कोई कानून और सुविधा नहीं होने के कारण यह लोग दूसरे राज्यों के भरोसे हैं। वहां उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। वहां जब उनकी बारी आती है तो उनके पास तैयारी करने के लिए बहुत कम समय मिलता है, इसलिए छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया कानूनन होनी चाहिए। जिससे जरूरतमंद मरीजों को राहत मिल सके। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से राज्य में बी कैडावरी ट्रांसप्लांट की सुविधा देने के संबंध में शासन को दिशा निर्देश देने की मांग की, जिससे लाइव सेविंग प्रोसेस शुरू हो पाए।

12 साल बाद छग में अब बना नियम

ध्यान रहे केंद्र सरकार ने स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (सोटो) को अप्रूव कर दिया है। साथ ही बजट पास करते हुए 46 लाख रुपए सालाना अप्रूव किया। सोटो को इसकी फंडिंग भी कर दी गई। स्टैंड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) को भी अप्रूव कर दिया गया। इसके माध्यम से मरीज अपना रजिस्ट्रेशन करास सकेंगे। याचिका के अनुसार 2011 में इसके लिए सभी जरूरी संसाधन देशभर में प्रभावी कर कर दिए गए हैं। छग में लेकिन 12 सालों में कुछ नहीं हो सका। मामले में हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा थाभी कि नियम में संशोधन और सरकार द्वारा इसे एडॉप्ट करने के इतने साल बाद भी अब तक नियम क्यों नहीं बने हैं।

ब्रेन डैड लोगों की ली जाएगी जानकारी

याचिका में इस बात की भी जानकारी दी गई कि प्रदेश में ट्रांसप्लांट को आर्डिनेट करने के लिए स्टेट आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन का गठन किया गया है। इस विभाग का ना तो अभी कोई आफिस है और ना ही कोई बजट जारी किया गया है। इसके चलते ब्रेन डेड लोगों की जानकारी भी नहीं ली जा रही है। उन अस्पतालों की सूची भी विभाग के पास नहीं है जहां अंग प्रत्यारोपण किया जाता है। ज्ञात हो कि ब्रेन डेड में मस्तिष्क की कोशिकाएं मर चुकी होती हैं। इसका परीक्षण चार डॉक्टर एक साथ मिलकर करते हैं। उनमें से कोई भी डॉक्टर ट्रांसप्लांट में शामिल नहीं होता। यह परीक्षण छह घंटे के अंतराल में दो बार किया जाता है। ऐसा ब्रेन डेथ राज्य उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों में ही घोषित किया जा सकता है।

यह मांगें मानी गईं

  • ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट के लिए नियम बनाया गया
  • ब्रेन डेड घोषित कैडवरी डोनर के परिजनों की समहति से अंग प्रत्यारोपण हो सकेगा
  • सोटो का गठन तो किया लेकिन बजट नहीं दिया न ही कार्यालय,अब सारी व्यवस्था
  • ब्रेन डेड व अस्पतालों की जानकारी लिस्टिंग की गई, अंग प्रत्यारोपण हो सकेगा

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