हफ्तेभर में 6 बड़े चेहरों ने छोड़ा भाजपा का साथ

-‘गुजरात मॉडल’ से कर्नाटक में बेपटरी हो सकती है भाजपा!

(फोटो : कर्नाटक)

नई दिल्ली। कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले राज्य की सियासत हिचकोले खा रही है। सत्ताधारी बीजेपी में टिकट कटने से पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व उप मुख्यमंत्री से लेकर मौजूदा विधायक और पूर्व विधायक तक पार्टी छोड़ रहे हैं और उनमें से कई मुख्य विपक्षी कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं। हफ्ते भर के भीतर आठ से ज्यादा बड़े राजनीतिक चेहरों ने बीजेपी का दामन छोड़ा है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार से लेकर पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी शामिल हैं। बाद में ये दोनों नेता कांग्रेस में शामिल हो गए।

शेट्टार , साउदी, ओलेकर

पिछले एक हफ्ते में, जब से बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के टिकटों का ऐलान करना शुरू किया है, तब से कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। जगदीश शेट्टार ने 17 अप्रैल को कांग्रेस पार्टी का हाथ थामा है, जबकि पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने पार्टी छोड़ने के दो दिन बाद ही 14 अप्रैल को कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। नेहरू ओलेकर, जिन्हें 2022 में एक विशेष अदालत द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया गया था, को भी बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित कर दिया है। इसके विरोध में ओलेकर ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह बीजेपी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर गविसिद्दप्पा दयमन्नवर को उम्मीदवार बनाया है।

कुमारस्वामी, शंकर, शेखर

आरक्षित सीट मुदिगिरी से तीन बार विधायक रहे एमपी कुमारस्वामी ने भी टिकट नहीं मिलने पर भाजपा से इस्तीफा दे दिया। वह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडी(एस) में शामिल हो गए हैं। बीजेपी एमएलसी आर शंकर, जिन्हें अक्सर पार्टी बदलने के लिए ‘पेंडुलम’ शंकर के नाम से जाना जाता है, ने भी टिकट से वंचित होने के बाद कर्नाटक विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया है। होसदुर्गा से बीजेपी विधायक गुलीहट्टी डी शेखर, ने भी टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ दी है। एक और सीनियर बीजेपी लीडर केएस ईश्वरप्पा ने कहा है कि वह आगामी चुनाव नहीं लड़ेंगे और चुनावी राजनीति से संन्यास ले लेंगे।

क्या है बीजेपी का ‘गुजरात मॉडल’?

बीजेपी अक्सर हर चुनाव में करीब 30 फीसदी मौजूदा विधायकों और मंत्रियों का टिकट काट कर उनकी जगह नए और युवा उम्मीदवारों पर दांव लगाती रही है। पहले यह प्रयोग गुजरात में हुआ था लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्रीय नेतृत्व संभालने के बाद अब सभी राज्यों में इसे आजमाया जाने लगा है। बीजेपी के इस फार्मूले से जहां कुछ पुराने नेता पार्टी से अलग होते रहे हैं, वहीं कई नए युवा नेताओं को चुनावी मैदान में मौका देने का फायदा भी बीजेपी को मिलता रहा है। हालांकि, कर्नाटक में गुजरात मॉडल कितना कारगर हो सकेगा, यह तो 13 मई को पता चल सकेगा जब चुनावी नतीजे आएंगे लेकिन उससे पहले गुजरात के अमूल डेयरी ब्रांड पर भी राज्य में सियासी उबाल आ चुका है।

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