- कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुने गए खड़गे के सामने बैक-टू-बैक कई ‘चैलेंज’
-राहुल-सोनिया की भूमिका, पार्टी में गुटबाजी पर नियंत्रण जैसे सामने मिलेंगे कई अहम सवाल
-विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की अहमियत बनाए रखने का भी होगा लक्ष्य
नई दिल्ली। शशि थरूर को हराकर मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। चुनाव जीतने के साथ ही खड़गे के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है। सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की शुरू हो गई है कि आखिर इन चुनौतियों से निपटने के लिए खड़गे के पास त्वरित योजना क्या है। क्योंकि सबसे पहले खड़गे को अगले दो महीने के भीतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में पार्टी को एक नए मुकाम पर पहुंचाने की जिम्मेदारी है, साथ ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को जीतने और फिर लोकसभा के चुनावों के लिए फुलप्रूफ प्लान तैयार करने की चुनौती भी है। इसके अलावा खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती उदयपुर में आयोजित हुए चिंतन शिविर के उन सभी एजेंडों को सिरे तक पहुंचाने की है, जिसके दम पर पार्टी ने अगले कई सालों का पूरा विजन तैयार किया है…
कैसे रोकेंगे भगदड़ को
जानकार कहते हैं कि खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजनैतिक संगठन को मजबूती से खड़ा करने की होगी। क्योंकि बीते कुछ समय से कांग्रेस पार्टी के भीतर जिस तरीके की राजनीतिक उठापटक मची थी और उसका परिणाम चुनावों में जिस तरीके से आ रहा था। इसके अलावा बीते कुछ समय के भीतर कई बड़े कद्दावर नेता कांग्रेस छोड़ कर जा चुके हैं। ऐसे में नए अध्यक्ष के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि पार्टी में मची भगदड़ को न सिर्फ रोका जाए, बल्कि नए लोगों को ज्वाइन भी कराया जाए। पार्टी में अभी भी गाहे-बगाहे बगावती सुर अख्तियार करने वाले कई नेता पार्टी में मौजूद हैं। ऐसे में इन सभी लोगों को साथ लेकर चलने की बड़ी चुनौती भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने रहेगी।
चिंतन शिविर के एजेंडे
खड़गे के पास सिर्फ आने वाले महीनों में विधानसभा के चुनाव ही बड़ी चुनौती नहीं हैं, बल्कि सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान के उदयपुर में आयोजित किए गए चिंतन शिविर के एजेंडों को जमीन पर उतारने की है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक वैसे तो सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को राज्य इकाइयों से न सिर्फ साझा किया जा चुका है, बल्कि उसे जमीन पर उतारने का पूरा रोडमैप भी दिया जा चुका है। उदयपुर चिंतन शिविर के बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश में पहले बड़े चुनाव हो रहे हैं। खड़गे के सामने चिंतन शिविर के बिंदुओं पर इन दोनों राज्यों में चुनावी रणनीतिक ढांचे को न सिर्फ खड़े करने की जिम्मेदारी है। बल्कि उसे उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए अगले साल होने वाले अलग-अलग राज्यों के चुनावों में भी बढ़ाने की जिम्मेदारी है।
महत्वपूर्ण चुनौती
-सोनिया, राहुल और प्रियंका की भूमिका कैसे और क्या तय की जाएगी
- पिछले कुछ सालों में कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं, भगदड़ रोकना भी चुनौती
- नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले गुट के अधिकतर नेता अब भी पार्टी, क्या उन्हें संतुष्ट कर पाएंगे
-मोदी-शाह जैसे ऊर्जावान नेताओं से मुकाबला करने के लिए करनी होगी तैयारी
- आम चुनाव 2024 के लिए विपक्षी एकता सुनिश्चित करने, और विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस की अहमियत बनाए रखने की भी चुनौती

