चीन की पावर पॉलिटिक्स… ताइवान के चारों ओर अभ्यास

—अमेरिकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी के ताइवान पहुंचने पर नाराजगी

—चीन की सेना के पूर्वी थिएटर कमांड ने ज्‍वाइंट मिलिट्री ऑपरेशन शुरू

इंट्रो

चीन की तमाम धमकियों को दरकिनार करते हुए अमेरिकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी के ताइवान पहुंचने पर ड्रैगन बुरी तरह से भड़क गया है और ताइवान की चारों तरफ घेरेबंदी कर दी है। चीन की सेना ने डराने के लिए अभ्‍यास के नाम पर ताइवान के चारों ओर से मिसाइलों और गोला बारूद की बारिश शुरू कर दी है। इस बीच, चीन की धमकियों से बेपरवाह नैंसी पेलोसी ताइवान की संसद पहुंच गई हैं। उन्‍होंने ताइवानी संसद में दिए अपने भाषण में तियामेन स्‍क्‍वायर नरसंहार का जिक्र करके चीन सरकार पर जोरदार हमला बोला।

बीजिंग/वाशिंगटन। अमेरिकी संसद की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की यात्रा के संबंध में चीन पहले ही कई बार ताइवान के साथ ही अमेरिका तक को चेतावनी दे चुका है। ऐसे में अंदेशा जताया जा रहा है कि पेलोसी ताइवान से चली जाएंगी तब चीन उस पर सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे सकता है। इन सबके बीच पेलोसी ने बुधवार को ताइवान की राष्ट्रपति से मुलाकात की और बातों-बातों में चीन पर निशाना साधा।। पेलोसी बुधवार दोपहर में ताइवान से दक्षिण कोरिया के लिए रवाना हो गई। रक्षा मामलों के जानकार नैंसी के इस दौरे के बरअक्स ताईवान में युद्ध के बादल देख रहे हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि चीन की ओर से ताइवान के चारों ओर समुद्र और आसमान में सैन्य अभ्यास करने का भी ऐलान कर दिया गया है। इसके लिए चीन अपनी मिसाइलें, लड़ाकू विमान और मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी वहां भेज रहा है। कहा जा रहा है कि चीन गुरुवार 4 अगस्त से 7 अगस्त तक यह सैन्य अभ्यास करेगा। वहीं चीन की इन हरकतों को देखते हुए अमेरिका ने भी फिलीपींस सागर में अपना शक्तिशाली युद्धपोत यूएसएस रोनाल्ड रीगन तैनात कर दिया है। ऐसे में किसी भी संभावित टकराव से विशेषज्ञ इनकार नहीं कर रहे हैं। दरअसल, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने सोमवार 1 अगस्त की रात घोषणा की थी कि वह कई जगहों पर लाइव-फायर अभ्यास करेगी। ताइवान की सेना का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में, चीनी खुफिया जहाजों और मिसाइल विध्वंसक को बाहरी ऑर्किड द्वीप और ताइवान के हुलिएन के पश्चिमी तट के पास देखा गया है। ताइवान की सेना हाई अलर्ट पर है, लेकिन अभी भी अपनी टू-टियर प्रणाली में “सामान्य” स्तर पर बनी हुई है। यह अभी तक तत्परता के “इमरजेंसी” स्तर तक नहीं बढ़ा है।

चीनी सेना ने ताइवान की घेरेबंदी शुरू की

इससे पहले, ताइवान को अपना क्षेत्र बताने और ताइवान के अधिकारियों की विदेशी सरकारों के साथ बातचीत का विरोध करने वाले वाले चीन ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के मंगलवार रात ताइवान की राजधानी ताइपे पहुंचने के बाद द्वीप के चारों ओर कई सैन्य अभ्यासों की घोषणा की। कई कड़े बयान भी जारी किए। इस बीच चीन की आर्मी ने ताइवान की सीमाओं के किनारे घेराबंदी की है और 4 से 7 अगस्त को सैन्य अभ्यास शुरू करने का ऐलान किया है। वहीं, ताइवानी आर्मी ने बॉर्डर पर टू लेयर डिफेंस वॉल तैयारी की है।

चीन ने ताइवान पर लगाए आर्थिक प्रतिबंध

इधर, पेलोसी की विजिट से बौखलाए चीन ने ताइवान के लिए आर्थिक परेशानियां खड़ी करना शुरू कर दिया है। चीनी सरकार ने ताइवान को नेचुरल सैंड के देने पर रोक लगा दी है। इससे ताइवान को काफी नुकसान हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद से कंस्ट्रक्शन और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट ताइवान के लिए इनकम का सोर्स बन गया है। ऐसे में रेत का निर्यात रोकने से ताइवान को आर्थिक नुकसान होगा। 1 जुलाई को भी चीन ने ताइवान के 100 से ज्यादा फूड सप्लायर से आयात (इम्पोर्ट) पर प्रतिबंध लगाया था।

अमेरिका भी कर रहा युद्धाभ्यास

इस तनाव के माहौल में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच अमेरिका और इंडोनेशिया ने आपसी संबंधों के और मजबूत होने का संकेत देते हुए बुधवार को सुमात्रा द्वीप में वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू किया, जिसमें पहली बार अन्य देशों ने भी भाग लिया। जकार्ता में अमेरिकी दूतावास ने एक बयान में बताया कि इस साल इस सैन्य अभ्यास में अमेरिका, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, जापान और सिंगापुर के 5,000 से अधिक जवान हिस्सा ले रहे हैं. इस सैन्य अभ्यास की शुरुआत 2009 से हुई थी।

दुनिया में लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच संघर्ष- नैंसी पेलोसी

नैंसी पेलोसी ने बुधवार सुबह ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन से मुलाकात की और द्वीप देश के लिए वाशिंगटन के समर्थन को दोहराया और कहा कि ताइवान की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए अमेरिका हर स्तर पर साथ देगा। अमेरिकी स्पीकर पेलोसी ने कहा, ‘दुनिया में लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच संघर्ष है। जैसा कि चीन समर्थन हासिल करने के लिए अपनी सॉफ्ट पावर का उपयोग करता है, हमें ताइवान के बारे में उसकी तकनीकी प्रगति के बारे में बात करनी होगी और लोगों को ताइवान के अधिक लोकतांत्रिक बनने का साहस दिखाना होगा।

चीन, अमेरिका के सहयोगी दो खेमों में बंटे

अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर उन्हें अपने देश में भरपूर समर्थन मिल रहा है। साथ ही दुनिया भर के कई लोकतांत्रिक देशों ने भी पेलोसी की यात्रा के प्रति समर्थन जताया है। इस बीच, चीन के सहयोगी देशों ने उसका समर्थन जताया है। चीन, ताइवान को अपना क्षेत्र होने का दावा करता है। पेलोसी की यात्रा को लेकर चीन और अमेरिका के सहयोगियों के दो खेमों में बंट जाना बीजिंग के बढ़ते वैश्विक प्रभाव के साथ ही विश्व के उदार देशों की ओर से यात्रा के लिए आ रही सकारात्मक प्रतिक्रिया को भी दर्शाता है। हालांकि, राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने पेलोसी की यात्रा का खुलकर समर्थन नहीं किया है। बाइडन ने कहा है कि सेना महसूस करती है कि दोनों पक्षों के बीच बढ़ते तनाव के दौरान मौजूदा समय में यह यात्रा एक अच्छा विचार नहीं था। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीज ने बुधवार को पेलोसी की यात्रा के संबंध में कोई टिप्पणी करने से इंकार किया। जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाजु मात्सुनो भी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर टिप्पणी करने से बचते नजर आये। उत्तर कोरिया ने यात्रा पर निशाधा साधते हुए अमेरिका पर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालने का आरोप लगाया।

अमेरिका बोला-भारत के साथ मिलकर करेंगे काम

पेलोसी के जाते ही अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत का जिक्र किया है जिससे चीन को मिर्ची लग सकती है। दरअसल पेलोसी ने अपनी ताइवान यात्रा के दौरान इस द्वीप को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भागीदार करार दिया था। अब अमेरिका ने कहा है कि आजाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर वह भारत के साथ मिलकर काम करेगा।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कारीन जीन-पियरे ने कहा कि भारत-अमेरिका कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भागीदार हैं, जिनमें रक्षा, टीके, जलवायु, तकनीक शामिल है। उन्होंने कहा, अमेरिका स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आगे बढ़ाने और दुनिया भर में हमारे दोनों देशों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत के साथ काम करना जारी रखेगा। अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार का मुकाबला करने के लिए क्वाड का गठन किया था। चीन क्वाड का शुरू से विरोध करता आ रहा है। वहीं भारत अपने भागीदार देशों के साथ मिलकर हमेशा खुले और आजाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत करता रहा है।

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