‘आर्ट ऑफ वॉर’… जिसके जरिए ताइवान को बिना लड़े जीतना चाहता है चीन

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क्या है ‘आर्ट ऑफ वॉर’, जिसके जरिए ताइवान को बिना लड़े जीतना चाहता है चीन
चीन फिलहाल खुद को ऐसी स्थिति में नहीं देख पा रहा कि ताइवान पर अटैक करके वह बहुत कुछ हासिल कर लेगा। ऐसे में उसने ‘आर्ट ऑफ वार’ के तहत ताइवान को बिना लड़े ही जीतने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
क्या है ‘आर्ट ऑफ वॉर’, जिसके जरिए ताइवान को बिना लड़े जीतना चाहता है चीन

अमेरिकी संसद की स्पीकर नैन्सी पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन आगबबूला है। वह लगातार अमेरिका और ताइवान को देख लेने की धमकी दे रहा है। यही नहीं ताइवान को घेर 6 स्थानों पर उसने सैन्य अभ्यास भी शुरू किया है, जिसे उसकी दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। कयास यहां तक लग रहे हैं कि चीन की ओर से ताइवान को सबक सिखाने के लिए अटैक भी किया जा सकता है। लेकिन चीन की रणनीति को समझने वाले मानते हैं कि वह फिलहाल ऐसा नहीं करेगा। इसकी वजह यह है कि चीन फिलहाल खुद को ऐसी स्थिति में नहीं देख पा रहा कि ताइवान पर अटैक करके वह बहुत कुछ हासिल कर लेगा। ऐसे में उसने ‘आर्ट ऑफ वार’ के तहत ताइवान को बिना लड़े ही जीतने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।

दरअसल ‘आर्ट ऑफ वॉर’ चीनी सैन्य रणनीतिकार और विचारक कहे जाने वाले सुन त्जू का एक सिद्धांत है। 500 ईसा पूर्व उन्होंने इसी नाम से एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें वह कहते हैं कि हमें दुश्मन से निपटने के लिए इतनी तैयारी करनी चाहिए कि युद्ध ही न करना पड़े। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिद्वंद्वी पर इतना दबाव डाला जाए और उसे ऐसे घेर लिया जाए कि वह खुद से बिखर जाए या फिर सरेंडर कर दे। चीन की युद्ध रणनीति में इस आर्ट ऑफ वार की छाप हमेशा ही दिखी है। भारत के साथ डोकलाम, लद्दाख जैसे इलाकों में सीमा का अतिक्रमण कर महीनों तक तनाव बनाए रखना और दबाव में लाने की कोशिश करना भी ऐसी ही एक रणनीति का हिस्सा है।

लद्दाख और साउथ चाइना सी में भी ऐसा ही कर रहा चीन

इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में भी वह ऐसा ही करता रहा है। यहां वह जापान, वियतनाम समेत कई देशों को दबाव में लाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन यहां यह समझने की बात है कि चीन इसके जरिए सिर्फ दबाव में रखने की कोशिश नहीं करता बल्कि मुकाबले में बने रहते हुए वक्त का इंतजार भी करता है। ऐसा ही उसने 1962 में अचानक भारत पर हमला करके किया था। इसके अलावा तिब्बत पर भी उसने अचानक ही अटैक किया था और इतनी तैयारी के साथ ऐक्शन लिया था कि तिब्बतियों का विद्रोह कमजोर पड़ गया।

दबाव और तनाव से परहेज नहीं, पर युद्ध के लिए करेगा इंतजार

चीन और ताइवान के रिश्तों को समझने वाले एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ऐसी ही रणनीति ड्रैगन फिर अपना सकता है। फिलहाल अमेरिका का अपरहैंड है और युद्ध की स्थिति में वह चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इसलिए चीन भले ही ताइवान और अमेरिका को घुड़की देता रहे, लेकिन अटैक नहीं करेगा। इसके अलावा अमेरिकी सेना के मुकाबले भी चीन काफी पीछे है। ऐसे में माना जा रहा है कि चीन कुछ दशक तक तेजी से अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत को बढ़ाएगा। उसने यूक्रेन युद्ध से भी सबक लिया है और रूस की तरह ताइवान में फंसना नहीं चाहता। ऐसे में दबाव बनाना जारी रखते हुए वह खुद को ऐसी स्थिति में लाना चाहता है कि अमेरिका ताइवान में दखल की स्थिति में न रहे और वह उसे अपने नियंत्रण में ले ले। यही आर्ट ऑफ वार का सिद्धांत है, जिसमें सुन त्जू लड़ाई को बिना जंग में उतरे ही जीतने की बात करता है।

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