- उत्तर प्रदेश में फूलपुर लोकसभा सीट का रहा है स्वर्णिम इतिहास
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में फूलपुर लोकसभा सीट से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तीन बार लोकसभा का चुनाव जीते थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता विजयलक्ष्मी पंडित भी यहां से दो बार कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचने में कामयाब रहीं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि 1952 से लेकर 1967 तक जिस सीट पर कांग्रेस कभी भी चुनाव नहीं हारी थी, वहां 1989 से लेकर आज तक वह चुनाव नहीं जीत सकी है।
2014 में पहली बार जीती थी बीजेपी
2014 के लोकसभा चुनाव में जब केशव प्रसाद मौर्य जीते थे तो यह पहला मौका था जब बीजेपी को फूलपुर में जीत मिली थी लेकिन 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी तो केशव प्रसाद मौर्य राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए। तब इस सीट पर हुए उपचुनाव में सपा ने बीजेपी को हराया था। लेकिन 2019 में बीजेपी ने फिर सीट पर कब्जा कर लिया।
कौन-कौन हैं उम्मीदवार?
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की उम्मीदवार केसरी देवी पटेल ने सपा की उम्मीदवार पंधारी यादव को 1.70 लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। इस बार बीजेपी ने केसरी देवी पटेल का टिकट काटकर फूलपुर से विधायक प्रवीण पटेल को दिया है। प्रवीण पटेल के पिता महेंद्र प्रताप पटेल भी कई बार विधायक रहे थे। उनके पिता झूंसी विधानसभा क्षेत्र से 1984, 1989 और 1991 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव जीते थे। प्रवीण पटेल बसपा के टिकट पर फूलपुर से 2007 में विधायक बने थे। बाद में वह बीजेपी के टिकट पर 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव जीते थे। सपा ने उत्तर प्रदेश में पार्टी के सचिव अमरनाथ मौर्या को फूलपुर से टिकट दिया है। अमरनाथ मौर्या लंबे समय तक बसपा में थे और उसके बाद वह बीजेपी में भी रहे थे। बसपा ने यहां से वरिष्ठ नेता जगन्नाथ पाल को उतारा है। जगन्नाथ पाल बसपा में कई पदों पर रह चुके हैं। एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली पल्लवी पटेल ने यहां से महिमा पटेल को टिकट दिया है।
पटेल उम्मीदवारों का दबदबा
1977 में कमल बहुगुणा के चुनाव जीतने के बाद से यहां पर पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों का ही दबदबा रहा है। 1977 के बाद 2004 में अतीक अहमद और 2009 में कपिल मुनि करवरिया के अलावा यहां से पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है। इसमें से भी आठ बार पटेल समुदाय के उम्मीदवार चुनाव जीते हैं।
सपा का भी गढ़ रही फूलपुर सीट
1996 से लेकर 2004 तक यहां लगातार समाजवादी पार्टी को जीत मिली। समाजवादी पार्टी की जीत का क्रम 2009 में बसपा के उम्मीदवार कपिल मुनि करवरिया ने तोड़ा था। 2009 में करवरिया ने सपा के उम्मीदवार श्यामा चरण गुप्ता को 15000 वोटों के मामूली अंतर से हराया था।
कांशीराम भी लड़े चुनाव लेकिन मिली हार
बसपा की बुनियाद रखने वाले कांशीराम ने भी फूलपुर लोकसभा सीट से 1996 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह दूसरे स्थान पर रहे थे। 2009 में बसपा ने यहां से चुनाव जीता लेकिन 2014 के चुनाव में वह तीसरे नंबर पर चली गई।
फूलपुर का जातीय समीकरण
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरणों को देखें तो राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के मुताबिक, यहां कुल मतदाताओं की संख्या 20 लाख के आसपास है। इनमें 3 लाख से ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं। मुस्लिम और दलित समुदाय के मतदाता 2.5-2.5 लाख हैं। यादव मतदाताओं की संख्या 2 लाख है। इसके अलावा ब्राह्मण और कायस्थ जाति के मतदाताओं की संख्या भी 2-2 लाख के आसपास है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को चार सीटों पर जीत मिली थी जबकि एक सीट सपा के खाते में गई थी। इन सीटों के नाम फाफामऊ, सोरांव (एससी), फूलपुर, इलाहाबाद पश्चिम और इलाहाबाद उत्तर हैं।
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