सांसदों ने जनता के काम पर खर्च किया 20 साल में सबसे कम पैसा

-हरियाणा का रिकॉर्ड सबसे खराब

लोकसभा चुनाव 2024 जारी हैं। सांसद कई जगह अपने काम के नाम पर वोट मांग रहे हैं और जनता भी चर्चा कर रही है कि सांसद ने क्या किया? लेकिन, अगर सांसदों को जनता के विकास पर खर्च करने के लिए मिलने वाली रकम (एमपीएलएडी) की बात करें तो 17वीं लोकसभा के सांसदों का रिकॉर्ड काफी खराब है। 16वीं लोकसभा के मुकाबले 17वीं लोकसभा में दोगुनी रकम सांसद खर्च नहीं कर सके। एमपीएलएडी को सांसद विकास निधि भी कहा जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि 17वीं लोकसभा में सांसद विकास निधि के तहत दी गई रकम 16वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान दी गई रकम से बहुत कम थी। लेकिन इसके बावजूद भी सांसद जनता के विकास पर इस रकम को खर्च नहीं कर सके। आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह भी पता चलता है कि 2019 में चुने गए सांसदों ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सांसद विकास निधि में से 96.3 प्रतिशत पैसे का इस्तेमाल किया जबकि 16वीं लोकसभा में यह आंकड़ा 99% और 15वीं लोकसभा में आंकड़ा 102.7% था। सांसद निधि खर्च करने में हरियाणा का रिकॉर्ड सबसे खराब रहा है जबकि आंध्र प्रदेश के सांसदों ने सबसे ज्यादा फंड खर्च किया है।

कोरोना काल में रोक दी गई थी रकम

कोरोना के चलते 17वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान विधायकों और सांसदों को मिलने वाली इस निधि को 18 महीने तक के लिए रोक दिया गया था। नवंबर, 2022 में इसे फिर से चालू कर दिया गया था। नवंबर 2022 के बाद से अप्रैल 2024 तक भी सांसदों ने इसे खर्च करने में तेजी नहीं दिखाई वरना 17वीं लोकसभा के दौरान बचे हुए 842 करोड़ रुपए को जनता पर खर्च किया जा सकता था।

: क्या होती है सांसद विकास निधि?

सांसद विकास निधि (एमपीएलएडी) केंद्र सरकार की योजना है जिसमें सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में हर साल 5 करोड़ रुपए तक के विकास कार्य करा सकते हैं। यह रकम लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सांसदों को मिलती है। सासंदों के अलावा विधायकों को भी उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए सरकार की ओर से रकम दी जाती है। यह हर राज्य में अलग-अलग है। जैसे- दिल्ली में कोई विधायक हर साल 10 करोड़ रुपए के विकास कार्य करवा सकता है जबकि पंजाब और केरल में यह आंकड़ा 5 करोड़ रुपए है। उत्तर प्रदेश के विधायकों को हर साल दो से तीन करोड़ रुपए इस निधि के तहत मिलते हैं।

कैसे काम करती है निधि?

सांसदों और विधायकों को इन योजनाओं के तहत किसी तरह का पैसा नहीं मिलता है। सरकार इस पैसे को सीधे स्थानीय प्राधिकरण के खाते में ट्रांसफर कर देती है। सांसद और विधायक तय दिशा-निर्देशों के मुताबिक ही अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं और उसके बाद सरकार इसके लिए पैसे जारी करती है।इस पैसे का इस्तेमाल सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि बनाने में किया जाता है। दिसंबर, 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इस योजना को शुरू किया था। उन्होंने बताया था कि तमाम राजनीतिक दलों के सांसदों की ओर से किए गए अनुरोध के बाद इस योजना को अमल में लाया गया है।

99999999999

कितना पैसा खर्च नहीं हुआ

, यह इस टेबल में देखिए:

कुल आवंटित धन कितना खर्च नहीं हुआ (करोड़ में) कितना खर्च नहीं हुआ (प्रतिशत में)

14वीं लोकसभा 14,482 143 0.99

15वीं लोकसभा 10,926 379 3.47

16वीं लोकसभा 14,043 1,228 8.74

17वीं लोकसभा 5,185 842 16.24

Source- MPLAD Portal


राज्य सांसदों ने एमपीलैड का कितना प्रतिशत पैसा खर्च किया

हरियाणा 74

जम्मू-कश्मीर 77.5

तेलंगाना 78

पश्चिम बंगाल 80

आंध्र प्रदेश 131

गुजरात 109

कर्नाटक 107.9

हिमाचल प्रदेश 105


000

प्रातिक्रिया दे