…जब महिलाओं ने दी सियासी दिग्गजों को पटकनी, मनवाया लोहा

-कई नामवर लोगों को हराया है चुनावों में महिलाओं ने

(फोटो : वुमन)

आजादी के बाद से देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा के लिए अब तक हो चुके 16 चुनाव में भले ही आधी आबादी को आधी भागीदारी न मिल पाई हो। उत्तर प्रदेश में यह हिस्सेदारी चौथाई से भी कम हो, पर सियासी अखाड़े में झंडा फहराने वालों में यूपी से सांसद चुनी गईं महिलाएं पीछे नहीं रहीं। उन्होंने सियासी अखाड़े के बड़े पहलवानों को पटकनी देकर अपना लोहा मनवा दिया। इनमें विजय लक्ष्मी पंडित, शिवराजवती नेहरू, सुभद्रा जोशी सहित कई नाम प्रमुख हैं…

सुभद्रा और शिवराजवती से हार गए अटल

लखनऊ की बात करें तो यहां से पहली सांसद विजय लक्ष्मी पंडित के संयुक्त राष्ट्र के लिए चुने जाने के बाद उपचुनाव हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस के नेता जवाहरलाल नेहरू ने परिवार की ही सदस्य शिवराजवती नेहरू को चुनाव लड़ाया। जनसंघ से उनका मुकाबला करने अटल बिहारी वाजपेयी उतरे, पर शिवराजवती ने उन्हें पराजित कर दिया। 1962 में कांग्रेस ने बलरामपुर में अटल बिहारी वाजपेयी के सामने सुभद्रा जोशी को उतारा। वाजपेयी को पराजय का सामना करना पड़ा।

इंदिरा गांधी ने हराया राजनारायण को

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने कम समय में ही सियासत में दबदबा बना लिया। विपक्ष से राजनारायण भी उस समय बड़ा नाम हो चुके थे। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं दोनों के बीच रायबरेली का चुनावी अखाड़ा सजा। इंदिरा गांधी ने राजनारायण को पटकनी दे दी। हालांकि इसी चुनाव को आधार बनाकर राजनारायण ने इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिस पर अदालत ने इंदिरा के चुनाव को रद्द कर दिया। इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कमला बहुगुणा ने फूलपुर में रामपूजन पटेल जैसे बड़े नेता को पराजित किया।

सोनिया गांधी से हारे कटियार

भले ही नेहरू परिवार की बहू होने के कारण सोनिया गांधी बड़ा चेहरा बन चुकी थीं, पर मंदिर आंदोलन से सियासी संसार में आए विनय कटियार भी उस समय तक छोटा नाम नहीं रहे थे। रायबरेली में 2006 में उपचुनाव था। भाजपा ने विनय कटियार को मैदान में उतारा ताकि सोनिया को टक्कर दी जा सके, पर कटियार जीत नहीं पाए।

मीरा कुमार ने रामविलास को दी पटकनी

(फोटो : मीरा)

वर्ष 1985 में बिजनौर लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने मीरा कुमार को उतारा। लोकदल से उनके सामने थे रामविलास पासवान। कांटे का मुकाबला हुआ। सभी को लग रहा था कि मीरा कुमार हार जाएंगी, लेकिन जब मतपेटिकाएं खुलीं तो उल्टा हुआ। मीरा कुमार के हाथों पासवान को पराजय का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में मायावती भी लड़ी थीं, लेकिन जीत नहीं सकीं।

फूलन देवी से हार गए मस्त

(फोटो : फूलन)

फूलन देवी सियासत में नई थीं। सपा ने 1996 में उन्हें मिर्जापुर से चुनावी अखाड़े में उतार दिया। पूर्वांचल में भाजपा के कद्दावर चेहरे वीरेंद्र सिंह मस्त मिर्जापुर से सांसद थे। वीरेंद्र की जीत में किसी को आशंका नहीं थी, पर फूलन के हाथों उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

आजम के विरोध के बाद भी जीतीं जया प्रदा

फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा 2004 में आजम खां के सहयोग से रामपुर से सांसद चुनी गईं, पर बाद में दोनों में ठन गई। सपा ने 2009 में भी जया को प्रत्याशी बनाया तो आजम ने उनका खुलकर विरोध किया। लोगों को लग रहा था कि रामपुर में आजम का विरोध जया को जीतने नहीं देगा, पर उन्होंने विजयी होकर दिखा दिया। मौजूदा चुनाव में आजम के सामने जया बतौर भाजपा उम्मीदवार मोर्चा ले रही हैं।

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