- दुर्लभ व्यापारी थे जेआरडी टाटा, चंदे को लेकर प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र
-नेहरू ने भी अपनी नीतियों का बचाव करते हुए उनके फैसले का किया था सम्मान
- जेआरडी मानते थे, लोकतंत्र की मजबूती के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी
(फोटो : जेआरडी1, 2)
नई दिल्ली। चुनावी बांड खरीदारों के नामों में ‘विशेष लोगों’ की स्पष्ट कमी को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि इस योजना को राजनीतिक दलों की फंडिंग को उतना पारदर्शी नहीं बनाया, जितना दावा किया गया था। जिन छोटे लोगों के नाम शीर्ष दानदाताओं में सूचीबद्ध हैं, उन्होंने भोलेपन से केवल बदले में कुछ पाने के लिए ऐसा किया और उनके नाम आसानी से उजागर कर दिए गए। भारतीय उद्योग के बड़े खिलाड़ी लंबे समय से खेल के नियमों को समझते हैं। राजनेताओं को सभी प्रकार के एहसान गोपनीयता के आवरण में छिपाने होते हैं, ताकि किसी पर उंगली उठाना मुश्किल हो। इस संदर्भ में भारत के सबसे ईमानदार व्यापारियों में से एक जेआरडी टाटा द्वारा पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र को याद रखना प्रासंगिक है। जेआरडी एक दुर्लभ भारतीय व्यापारी थे प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखकर यह बताया था कि वह विपक्ष को चंदा देंगे।
नेहरू को टाटा का पत्र
1961 में वरिष्ठ राजनेता सी राजगोपालाचारी ने जेआरडी को अपनी नई बनी स्वतंत्र पार्टी में योगदान देने के लिए पत्र लिखा था। जेआरडी को पता कि उनकी कंपनी ‘टाटा’ कांग्रेस को फंड करती है, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि एक मजबूत विपक्ष की अनुपस्थिति में कोई भी लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने उद्योग घरानों द्वारा विपक्ष को भी वित्तपोषित करने को देशभक्ति माना। अपने साथी व्यापारियों के विपरीत जिन्होंने स्वतंत्र पार्टी को गुपचुप तरीके से फंड दे रहे थे, जेआरडी ने नेहरू को स्पष्ट रूप से लिखा कि वह स्वतंत्र पार्टी को भी दान देंगे क्योंकि यह एक रचनात्मक विपक्ष को वित्तपोषित करने का एकमात्र विकल्प है। शायद आज के किसी भी उद्योगपति में ऐसा पत्र लिखने की हिम्मत नहीं होगी। वर्तमान में भी राहुल भाटिया, किरण मजूमदार-शॉ और एल एन मित्तल, उद्योग जगत के अधिकांश बड़े नामों की तुलना में अपने दान को कम गुप्त रखते हैं, लेकिन उनकी उदारता भी केंद्र या राज्य में सत्ताधारी दलों के लिए होती है। वर्तमान में, सपा, बसपा आदि जैसे कमजोर हो चुके दलों का प्रमुख रूप से दान पाने वालों में नाम नहीं है।
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नेहरू का ये था जवाब
नेहरू ने जेआरडी को जवाबी पत्र में लिखा था, ‘बेशक, आप स्वतंत्र पार्टी की किसी भी तरह से मदद करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आपकी यह आशा कि स्वतंत्र पार्टी एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरेगी, उचित है। मुझे लगता है कि अगले आम चुनाव में उसे निराशा होगी। ऐसा लगता है कि इसकी न तो भारत की जनता और न ही बुद्धिजीवियों के बड़े हिस्से के बीच कोई आधार है।” जाहिर है नेहरू ने जेआरडी टाटा को ना सिर्फ विनम्रता से जवाब दिया बल्कि अपनी नीतियों का बचाव करते हुए उनके फैसले का सम्मान भी किया।
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