-तकरीबन डेढ़ दशक से गाजा पट्टी की प्रमुख व्यवस्थाएं रही हैं इस्राइल के हाथ में
-कफर आजा, मिओजमुल आजा, साद, मेवकिन जैसे कई इलाकों में आते रहे फलस्तीन के नागरिक
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नई दिल्ली। इस्राइल के बॉर्डर पर गाजा पट्टी से कुछ मिनट की दूरी पर एक गांव है ‘कफर आजा’। इस्राइल के बॉर्डर पर यह कई समृद्ध गांवों की तरह एक प्रमुख इलाका है। इस इलाके के मिओजमुल आजा, साद, मेवकिन जैसे कई इलाकों में काम करने वालों की सबसे बड़ी तादाद गजा पट्टी के वह लोग थे, जो रोजी-रोटी कमाने के लिए सीमा पार से इस्राइल में आते थे। जानकारी के मुताबिक गाजा पट्टी से इस्राइल में औसतन 20 हजार लोग रोजाना रोजी रोटी कमाने और अपने अन्य काम के सिलसिले में इस्राइल आते थे। तकरीबन बीते डेढ़ दशक से गाजा पट्टी एक तरह से इस्राइल के हाथ में ही थी, इसलिए इनका आना-जाना सरकारी दस्तावेजो और कायदे कानून के तहत वैध था। खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी के मुताबिक इस्राइल में हमास ने जो सबसे बड़ा हमला किया है, उसमें गाजा पट्टी से इस्राइल आने जाने वाले ऐसे लोगों को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। क्योंकि इन आने जाने वाले लोगों में से कई लोग हमास के खुफिया एजेंट भी थे और अंदर की सारी जानकारियां एकत्र कर हमले की बड़ी रूपरेखा तैयार करने में मदद भी कर रहे थे।
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अनुमति के साथ मिली थी छूट
जानकारी के मुताबिक बीते तकरीबन डेढ़ दशक से गाजा पट्टी की प्रमुख व्यवस्थाएं और अर्थव्यवस्थाएं इस्राइल के हाथ में ही थी। यही वजह है कि तमाम विवादों के बाद भी गाजा के लोग अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए इस्राइल में अनुमति लेकर रोजाना आते जाते थे। गाजा से इस्राइल आने वाले लोगों में वहां के लेबर क्लास के साथ-साथ घरों में काम करने वाले और छोटे-मोटे व्यापार करने वाले लोग शामिल थे। विदेशी मामलों के जानकार ले. कर्नल सुरेंद्र आहुजा कहते हैं कि इस्राइल और गाजा पट्टी में तनाव भले ही कितना हो, लेकिन इस्राइल इस बात को भलीभांति जानता था कि गाजा पट्टी के लोगों को विश्वास में लेकर अपने खुफिया तंत्र को भी वहां मजबूत करने का यह एक बहुत बड़ा जरिया था।
घर-दुकानों में हाथ बंटाते
इस्राइल और गाजा पट्टी के बॉर्डर की सीमा से इस्राइल में आने वाले लोगों के आंकड़ों के मुताबिक औसतन 20000 लोग रोज इस्राइल के अलग-अलग शहरों, गांवों और इलाकों में आते थे। खुफिया एजेंसी और रक्षा मामलों से जुड़े लोगों का मानना है कि इन 20 हजार लोगों में से आने वाले कई लोग हमास के खुफिया एजेंट भी होते थे। क्योंकि यह लोग अनुमति के साथ आते थे। यह व्यवस्था बीते कई सालों से लगातार चल रही थी। यह वह लोग होते हैं, जो इस्राइल के लोगों के घरों में भी काम करते थे। उसके बाद उनके अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों से लेकर कई जगहों पर मदद में हाथ बंटाते थे।
फलीस्तीन के नागरिक होकर भी आते-जाते
प्रमुख खुफिया एजेंसी में काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इस्राइल इसी मामले में सबसे बड़ी चूक कर गया। जब हमास ने बड़े हमले की योजना बनाई, तो इनका इस्तेमाल बतौर खुफिया एजेंट करना शुरू कर दिया। जानकारी के मुताबिक आने वाले लोगों में कुछ लोग फलीस्तीन के नागरिक होते थे, जो हमास के लिए काम करते थे और यहां के गांव समेत आसपास के शहरों में जानकारियां एकत्र करके हमास के आतंकियों को देते थे। इन्हीं जानकारी के आधार पर हमास ने न सिर्फ यहां के गांव के भीतर घरों में बने बंकरों और अन्य अंदरूनी जानकारी को इकट्ठा किया। देश के पूर्व विदेश सचिव अमरेंद्र कठुआ कहते हैं कि बीते तकरीबन डेढ़ दशक से इस्राइल में गाजा पट्टी के लोग अनुमति लेकर आते जाते रहते हैं।
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