कागजों पर ही चल रहे ज्यादातर मेडिकल कॉलेज!

—राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग की रिपोर्ट में खुलासा

नई दिल्ली। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने कहा है कि 2022-23 के दौरान जिन चिकित्सा महाविद्यालयों का मूल्यांकन किया गया, उनमें से अधिकांश में ‘गोस्ट फैकल्टी’ और सीनियर रेजिडेंट (चिकित्सक) पाए गए और एक भी संस्थान 50 फीसदी आवश्यक उपस्थिति के मानक पर खरा नहीं उतरा। ‘गोस्ट फैकल्टी’ का अभिप्राय ऐसे संकाय सदस्यों से हैं जो वेतन तो पा रहे हैं लेकिन काम पर नहीं आ रहे हैं। एनएमसी ने कहा कि यह पाया गया कि उनमें से कोई भी नियमित रूप से आपात विभाग में नहीं जाते हैं क्योंकि वहां आपातकालीन मेडिसीन विभाग में आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी को छोड़कर उनसे बातचीत करने के लिए कोई नहीं था। एनएमसी के ‘अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड’ ने कहा, आपातकालीन चिकित्सा विभाग में तैनाती को विद्यार्थियों के लिए अंतराल अवधि माना जाता है। एनएमसी ने नये मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए जरूरी चीजों में से आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञता की आवश्यकता को बाहर करने के संबंध में ‘एसोसिएशन ऑफ इमरजेंसी फिजिशियन ऑफ इंडिया’ की शिकायत पर एक जवाब में यह बात कही। एनएमसी ने हाल ही में अधिसूचित विनियमन में नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए जरूरी चीजों में से आपातकालीन विभाग की आवश्यकता को बाहर कर दिया। इससे पहले, 23 जून के अपने मसौदे में आपातकालीन चिकित्सा विभाग उन 14 विभागों में से एक था, जिन्हें स्नातक में प्रवेश देने के लिए अनुमति प्राप्त नये मेडिकल कॉलेज में होना चाहिए। एईपीआई को दिए अपने जवाब में यूजीएमईबी ने 22 सितंबर को कहा कि आपातकालीन चिकित्सा विभागों की वास्तविक तस्वीर कागज पर दिखने वाली तस्वीर से अलग है। आयोग ने अपने जवाब में कहा, इन कॉलेजों की ‘आधार’ आधारित बायोमेट्रिक उपस्थिति की जांच करते समय, हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि न्यूनतम मानक आवश्यकता (एमएसआर)-2020 के अनुसार जरूरतों को पूरा करने के लिए संकाय सदस्यों और सीनियर रेजिडेंट चिकित्सकों के नियोजन के संबंध में सभी कॉलेज शत प्रतिशत विफल रहे हैं। इसमें कहा गया है, अधिकांश कॉलेजों में गोस्ट फैकल्टी और सीनियर रेजिडेंट चिकित्सक थे या किसी संकाय सदस्य की नियुक्ति ही नहीं की गई थी। आयोग ने अपने जवाब में कहा कि कॉलेजों को इन कमियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय देने के बावजूद कोई भी कॉलेज 50 प्रतिशत उपस्थिति की आवश्यकता को भी पूरा नहीं कर पाया और शून्य उपस्थिति अब भी आम बात थी।

आपातकालीन चिकित्सा केवल नाम के

आयोग ने कहा कि यही साबित होता है कि कागजी आंकड़े के अनुसार 134 कॉलेजों में आपातकालीन चिकित्सा विभाग है, लेकिन वास्तविक तथ्य कुछ और ही तस्वीर पेश करते हैं। आयोग की ओर से कहा गया है कि यूजीएमईबी एनएमसी में स्थापित डिजिटल मिशन मोड प्रोजेक्ट के माध्यम से मेडिकल कॉलेज और संबद्ध अस्पताल की कार्यक्षमता का आकलन करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर अधिक निर्भर करता है। सक्रिय शैक्षणिक आपातकालीन विभागों वाले मेडिकल कॉलेजों की संख्या 45 से बढ़ाकर 134 (तीन गुना वृद्धि) की गई है, जबकि एमडी के लिए आपातकालीन चिकित्सा सीट 120 से बढ़ाकर 462 की गई है।

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