-सुप्रीम कोर्ट ने ‘आदिपुरुष’ के खिलाफ लंबित कार्यवाही पर लगाई रोक
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विवादास्पद फिल्म ‘आदिपुरुष’ के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित कार्यवाही पर रोक लगा दी। रामायण से प्रेरित फिल्म ‘आदिपुरुष’ में इस्तेमाल किए डायलॉग्स को लेकर आलोचना हो रही है। फिल्म के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाते हुए शीर्ष अदालत ने अहम टिप्पणियां की। इस दौरान अदालत ने ‘आदिपुरुष’ का फिल्म सर्टिफिकेट रद्द करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को सेंसर बोर्ड द्वारा दिए गए प्रमाणपत्रों पर अपील करने का मंच नहीं बनना चाहिए।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के लिए “प्रत्येक व्यक्ति की संवेदनशीलता” के आधार पर फिल्म सर्टिफिकेशन में हस्तक्षेप करना अनुचित था। कोर्ट ने कहा कि ‘अब हर कोई हर चीज को लेकर संवेदनशील हो रहा है, फिल्मों, किताबों के प्रति सहनशीलता कम होती जा रही है। पीठ ने कहा कि फिल्म बनाने वाले ओरिजिनल मटेरियल के साथ खिलवाड़ करते हैं, यह एक हद तक स्वीकार्य है। पीठ ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) का जिक्र करते हुए कहा कि फिल्मों से जुड़े तमाम पहलुओं को देखने के लिए एक संस्था पहले से ही मौजूद है और वर्तमान मामले में, एक प्रमाणपत्र उसकी ओर से जारी किया गया है।
जनहित याचिका में तर्क
जनहित याचिका वकील ममता रानी द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने तर्क दिया कि फिल्म में हिंदू देवताओं का चित्रण सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5 बी में उल्लिखित वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील रत्नेश कुमार शुक्ला ने तर्क दिया कि फिल्म में देवताओं को घृणित तरीके से चित्रित किया गया है।
सहनशीलता की आवश्यकता पर कोर्ट का जोर
शुरुआत में, न्यायमूर्ति एसके कौल ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाने के याचिकाकर्ता के विकल्प पर सवाल उठाया। उन्होंने लोगों द्वारा हर छोटे मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में लाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए पूछा कि क्या अदालत को फिल्मों, किताबों और कलाकृतियों के हर पहलू की जांच करनी होगी। अपनी मौखिक टिप्पणी पर उन्होंने रचनात्मक प्रतिनिधित्व के प्रति एक निश्चित स्तर की सहनशीलता की आवश्यकता पर बल दिया।
0000

