‘राजनीतिक कलह से ऊपर उठें मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल’

  • सुप्रीम कोर्ट ने दी दिल्ली के एलजी सक्सेना व सीएम केजरीवाल को नसीहत

-डीईआरसी चीफ की नियुक्ति को लेकर चल रहा है विवाद

-नियुक्ति की संवैधानिक वैधता की जांच भी करेगी शीर्ष कोर्ट

(फोटो : एलजी-केजरी)

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) के नए अध्यक्ष नियुक्ति को लेकर चल रहे मतभेदों के बीच सोमवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल वीके सक्सेना से कहा कि वे उन पूर्व न्यायाधीशों के नामों पर चर्चा करें, जो राष्ट्रीय राजधानी के बिजली नियामक की अध्यक्षता कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि दोनों संवैधानिक पदाधिकारियों को ‘राजनीतिक’ कलह से ऊपर उठना होगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बृहस्पतिवार को फिर से विचार करेगी और दिल्ली सरकार के वकील तथा उपराज्यपाल से कहा कि वे अदालत में केजरीवाल और सक्सेना को आज के घटनाक्रम से अवगत कराएं। पीठ ने कहा, ‘दोनों संवैधानिक पदाधिकारियों को राजनीतिक कलह से ऊपर उठना होगा और उन्हें डीईआरसी अध्यक्ष के लिए एक नाम देना चाहिए।’ शीर्ष अदालत ने चार जुलाई को कहा था कि वह डीईआरसी अध्यक्ष जैसी नियुक्तियों को लेकर केंद्र के हालिया अध्यादेश के एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता की जांच करेगी जबकि दिल्ली सरकार ने अदालत को सूचित किया कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) उमेश कुमार का राष्ट्रीय राजधानी के विद्युत नियामक प्राधिकरण के प्रमुख के रूप में शपथ ग्रहण स्थगित कर दिया गया है। न्यायमूर्ति कुमार की डीईआरसी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति शहर की आप सरकार और केंद्र के बीच टकराव का एक और मुद्दा बन गई है।


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दिल्ली वाले अध्यादेश पर गुरुवार से ‘सुप्रीम’ सुनवाई

दिल्ली में अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग को लेकर आए केंद्र सरकार के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में सोमवार को पेश किया गया। अदालत ने कहा कि हम इस मामले को 5 जजों की संवैधानिक बेंच में भेज सकते हैं, जो इस पर विचार करेगी। उन्होंने कहा कि ऐसे संशोधन के मामले संविधान बेंच को दिए जाने चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार ने आर्टिकल 293AA(7) का इस्तेमाल करते हुए संविधान में संशोधन किया है। इससे दिल्ली सरकार के नियंत्रण सेवाओं को वापस लिया जाएगा। क्या इसकी अनुमति है? मैं मानता हूं कि संवैधानिक बेंच को इस मामले पर विचार करना चाहिए। अदालत को जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला संसद में जाएगा। मॉनसून सेशन में इसे पेश किया जाना है। इसलिए फिलहाल इस मामले पर सुनवाई को टाल देना चाहिए। वहीं दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जब सारी बातें साफ ही हैं तो इसे संवैधानिक बेंच में भेजने का कोई मतलब नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मसला यह है कि संसद के पास अधिकार है कि वह केंद्र सूची के मसलों पर कानून बना सकेगी। तीसरी समवर्ती सूची है। यह समझना होगा कि इसे लेकर केंद्र सरकार की ओर से संशोधन किया जा सकता है या नहीं।’ दरअसल दिल्ली अध्यादेश का मामला राजनीतिक रंग ले रहा है। केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि वह इस बिल को इसी मॉनसून सेशन में लाने जा रही है। इस बीच आम आदमी पार्टी राजनीतिक रूप से इसके खिलाफ माहौल बना रही है। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा में इसके विरोध के लिए कांग्रेस समेत कई दलों से समर्थन मांगा है। रविवार को ही कांग्रेस ने इस मामले में आम आदमी पार्टी के समर्थन का ऐलान किया है। इससे पहले शरद पवार, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं से अरविंद केजरीवाल ने मुलाकात की है और विपक्षी एकता की दुहाई देते हुए समर्थन मांगा है।

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