‘समलैंगिक विवाह पर केंद्र सख्त, कहा- अनुमति देने न देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं’

केंद्र ने दायर किया हलफनामा : आज पांच जजों की पीठ करेगी सुनवाई

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हरिभूमि न्यूज : नई दिल्ली।

पुरुष से पुरुष और स्त्री से स्त्री की शादी को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं? इस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई करेगी। इस सुनवाई से ठीक पहले केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि इस पर फैसला लेने का अधिकार अदालत को नहीं है। केंद्र ने कहा कि शादियों पर फैसला सिर्फ संसद ही ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं।

ज्ञात हो कि 13 मार्च को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था। अब इस मामले पर सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट इन सभी याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है।

धारा 377 निरस्त करने का मतलब ये नहीं : केंद्र

केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह की अनुमति देने के खिलाफ है। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी। केंद्र ने कहा था, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें।

समलैंगिकों की क्या है मांग?

समलैंगिकों की ओर से दाखिल याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है। ये भी मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए।

ऐसे विवाह परिवार की अवधारणा के ख्रिलाफ

केंद्र ने हलफनामे में समलैंगिक विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती। कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती।

विवाह के लिए पति-पत्नी की जैविक परिभाषा

केंद्र ने कहा कि विवाह के लिएा पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा? कोर्ट में केंद्र ने कहा था, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी।

क्या कहा था तत्कालीन सीजेआई मिश्रा ने

ज्ञात हो कि गत वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को निरस्त कर दिया था। जिसके बाद आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बने संबंधों को अपराध नहीं माना जाता। फैसला सुनाते समय तब के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। समलैंगिक लोगों को सम्मान से जीने का अधिकार है। समलैंगिकता अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को सोच बदलनी चाहिए।

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