-सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आयकर तलाशी पर अहम फैसला देते हुए आरोपी के अलावा रिश्तेदारों और दोस्तों की तलाशी करने के आयकर प्रावधान/संशोधन को सही ठहराया है। धारा 153 सी का प्रावधान वित्त कानून, 2015 के जरिये आयकर कानून, 1961 में जोड़ा गया था जिसे 1 जून 2016 से लागू होना था। फैसले में कोर्ट ने कहा कि यह कानून पिछली तारीख से लागू होगा। आयकर कानून की धारा 153 सी कहती है कि राजस्व विभाग आरोपी व्यक्ति के अलावा अन्य लोगों की सर्च तलाशी भी कर सकता है यदि सर्च में उनसे जुड़े आपराधिक सामग्री मिलती है तो विभाग उनकी तलाशी भी ले सकता है। इस धारा में शुरू में ‘संबध और संबध रखता’ शब्द प्रयोग किए गए थे। यानी यदि सर्च के दौरान कोई बुक ऑफ अकाउंट या दस्तावेज जो आरोपी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से संबंध रखते हैं तो उसकी तलाशी भी की जा सकती है। हालांकि, 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे प्रावधान को निरस्त कर दिया था। इसके बाद वित्त कानून, 2015 में इसे संशोधित किया गया और संबंध रखता है शब्द को ‘जुड़ा हुआ है या जुड़ता है’ से बदल दिया। इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
दिल्ली हाइकोर्ट ने ‘शब्द’ के अर्थ को कर दिया था बहुत सीमित
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने संशोधन को सही ठहराया और कहा कि दिल्ली हाइकोर्ट ने इस शब्द के अर्थ को बहुत सीमित कर दिया था कि जिससे टैक्स चोरी करने वाले लोग बच सकते थे जबकि विधायिका का इरादा ऐसा नहीं था। इसलिए उसने धारा 153सी को संशोधित किया और कर चोरी से जुड़े लोगों को भी साथ में लिया। कोर्ट ने कहा कि आयकर कानून की धारा 132 के तहत जारी सर्च 1 जून 2015 से पूर्व के मामलों में भी जारी रहेंगी। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 115 अपीलें दायर की गई थीं। इस सभी अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
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