-हाईकोर्ट ने दो नाबालिगों के मामले में कहा
बेंगलुरू। दो नाबालिग पाकिस्तानी नागरिकों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें भारतीय नागरिकता देने के लिए कोर्ट से भारतीय अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी। लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने भारतीय अधिकारियों को निर्देश देने से इनकार कर दिया है। नाबालिगों ने अपनी मां के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनकी मां भारत की नागरिक हैं, जबकि उनके पिता पाकिस्तानी हैं। दोनों- एक 17 साल की लड़की और 14 साल का लड़का दुबई में पैदा हुए थे और अब अपनी मां अमीना के साथ बंगलूरू में रहते हैं। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि उन्होंने अपना पाकिस्तानी पासपोर्ट छोड़ दिया है, लेकिन उस देश की नागरिकता नहीं। पाकिस्तान के कानून के मुताबिक वे 21 साल की उम्र के बाद ही अपनी नागरिकता छोड़ सकते हैं। इन परिस्थितियों में उन्हें भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती है। आज की तारीख में बच्चे स्टेटलेस नहीं हैं। वे पाकिस्तान के नागरिक हैं। उन्होंने केवल पासपोर्ट सरेंडर किया है लेकिन उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता नहीं छोड़ी है; मात्र पासपोर्ट जमा करने से नागरिकता का त्याग नहीं हो जाता।
अदालत ने कहा कि जब तक नागरिकता का त्याग नहीं होता, मां के मामले पर विचार करते हुए बच्चों को नागरिकता प्रदान करने के लिए विदेश मंत्रालय को कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा कि इसलिए, याचिकाकर्ताओं के पक्ष में ऐसी नागरिकता प्रदान करने पर विचार करने के लिए, अधिकारियों द्वारा मांगी गई सभी सामग्रियों को प्रस्तुत करना मां का काम है। इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों में कोई परम आदेश झूठ नहीं होगा।
2002 में हुई थी शादी
अमीना की शादी 2002 में पाकिस्तानी नागरिक असद मलिक से हुई थी और 2014 में उनका तलाक हो गया था। इसके बाद वह 2021 में अपने पैतृक घर बंगलूरू लौट आई। उसने अपने बच्चों को अपने साथ लाने की मांग की इसके बाद दुबई में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने बच्चों को मानवीय आधार पर अस्थायी पासपोर्ट प्रदान किया।लेकिन यह बच्चों के पाकिस्तानी पासपोर्ट को सरेंडर करने के बाद उनकी नागरिकता की स्थिति के अधीन था। पाकिस्तानी अधिकारियों ने घोषणा की कि दोनों 21 वर्ष की आयु तक अपनी नागरिकता नहीं छोड़ सकते। इसके बाद महिला ने इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए गृह मंत्राल से अनुरोध किया। जब गृह मंत्रालय से उनके अनुरोध का जवाब नहीं दिया गया तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, हाईकोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की ओर इशारा किया और कहा, अधिनियम की धारा 5 (1) (डी) में कहा गया है कि नाबालिगों को नागरिकता देने के उद्देश्य से माता-पिता दोनों को भारतीय नागरिक होना आवश्यक है और इसलिए आदेश में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नागरिकता प्रदान करने के लिए आवश्यक सभी दस्तावेज अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किए जाने चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि दो नाबालिगों को नागरिकता देने के लिए भारतीय कानूनों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
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