राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी कोर्ट में जवाबदेह नहीं

राजभवन ने हाईकोर्ट द्वारा जारी नोटिस की संवैधानिकता को दी चुनौती

  • जारी नोटिस को बताया गलत, हाईकोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
  • प्रदेश में आरक्षण को लेकर मचा घमासान थमने का नाम ही नहीं ले रहा

बिलासपुर। प्रदेश में आरक्षण को लेकर मचा घमासान थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। राज्य शासन की याचिका पर राजभवन को जारी नोटिस की संवैधानिकता पर अब सवाल उठाया गया है। राज्यपाल सचिवालय द्वारा दायर याचिका में हाईकोर्ट द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि आर्टिकल 361 के तहत किसी भी प्रकरण में राष्ट्रपति या राज्यपाल को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। गुरुवार को इस मामले में अंतरिम राहत पर बहस के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिका में हाईकोर्ट की नोटिस पर रोक लगाने की मांग की गई है।

दरअसल, आरक्षण विधेयक बिल को राजभवन में रोकने को लेकर राज्य शासन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति दे सकते हैं, लेकिन बिना किसी वजह के लेकिन बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं।

राज्यपाल के पास है फाइल

ज्ञात हो क राज्य सरकार ने दो महीने पहले विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ा दिया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। इस विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा गया था। राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इसे स्वीकृत करने से फिलहाल इनकार कर दिया है और अपने पास ही रखा है। राज्यपाल के विधेयक स्वीकृत नहीं करने के खिलाफ एडवोकेट हिमांक सलूजा ने और राज्य शासन ने याचिका लगाई थी। याचिका में राज्य शासन ने आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल की ओर से रोकने के मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। मामले में अभी सुनवाई लंबित है।

बिल पास करने समय सीमा का उल्लेख नहीं

शासन की याचिका पर राजभवन को नोटिस जारी होने के बाद राज्यपाल सचिवालय की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इसमें याचिका पर राजभवन को पक्षकार बनाने और हाईकोर्ट की नोटिस देने को चुनौती दी गई है। राज्यपाल सचिवालय की तरफ से पूर्व असिस्टेंट सालिसिटर जनरल और सीबीआई व एनआईए के विशेष लोक अभियोजक बी गोपा कुमार ने तर्क देते हुए बताया कि संविधान के अनुच्छेद 361 में राष्ट्रपति और राज्यपाल को अपने कार्यालय की शक्तियों और काम को लेकर विशेषाधिकार है, जिसके लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं हैं। इसके मुताबिक हाईकोर्ट को राजभवन को नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि आरक्षण विधेयक बिल को राज्यपाल के पास भेजा गया है, इसमें समय सीमा तय नहीं है कि कितने दिन में बिल के मामले में निर्णय लेना है। याचिका के साथ ही उन्होंने अंतरिम राहत की मांग करते हुए तर्क दिया और कहा कि प्रथम दृष्टया में याचिका पर राजभवन को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। लिहाजा, हाईकोर्ट से जारी नोटिस पर रोक लगाई जाए। हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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