हरिभूमि न्यूज, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर घमासान थम नहीं रहा है। एक सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता के बाद राज्य सरकार ने भी आरक्षण मामले में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। सोमवार को इस पर सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने तर्क देते हुए कहा कि राज्यपाल को सीधे तौर पर विधेयक रोकने का अधिकार नहीं है। इस पर जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने राज्यपाल के सचिवालय को नोटिस जारी किया है और जवाब के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल से सहमति लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, जिसमें जनसंख्या के आधार पर प्रदेश में 76 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव पारित किया गया है। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को भी 4 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण बिल पास होने के बाद इस पर राज्यपाल का हस्ताक्षर होना है। राज्य शासन ने बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए राज्यपाल के पास भेजा है, लेकिन राज्यपाल बिल पर लंबे समय से हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं, जो अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है। आज इस याचिका पर जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई।
राज्य सरकार की ओर से याचिका के अलावा आरक्षण मामले में एडवोकेट हिमांक सलूजा ने खुद पिटीशन इन पर्सन हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया है कि राज्य सरकार ने 18 जनवरी 2012 को प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत एससी वर्ग के लिए 12, एसटी वर्ग के लिए 32 व ओबीसी वर्ग के लिए 14 प्रतिशत किया था। इसके खिलाफ दायर अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक बताया साथ ही आरक्षण को रद्द कर दिया था। इसके बाद आरक्षण को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई।
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सिब्बल ने रखा शासन का पक्ष———-
सोमवार को राज्य शासन व एडवोकेट हिमांक सलूजा दोनों की याचिकाओं पर प्रारंभिक सुनवाई हुई। शासन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट व पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने पैरवी करते हुए तर्क दिया कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असहमति दे सकते हैं, लेकिन बिना किसी वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं। उनके साथ प्रदेश के महाधिवक्ता सतीशचन्द्र वर्मा भी थे। वहीं हिमांक सलूजा की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. निर्मल शुक्ला व शैलैन्द्र शुक्ला ने पैरवी की।
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राज्यपाल को देर नहीं करना चाहिए : सिब्बल
आरक्षण मामले में राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट में पैरवी करने बिलासपुर पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट व पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि दिसंबर माह में बिल पास हुआ था उसके बाद राजभवन पहुंचा था। बिल में अपनी असहमति दे या न दें या राष्ट्रपति को भेंज दें। उसी बात का राज्य शासन की ओर से पक्ष रखने वे यहां आए थे। बिल पर हस्ताक्षर करना या नहीं करना संवैधानिक है या असंवैधानिक ये कोर्ट तय करेगा। उन्हें कोई देर नहीं करना चाहिए, क्योंकि यहां के आदिवासी वर्ग के लिए ये बहुत बड़ा कदम है।
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