… जब कश्मीर मसला सुलझाने के करीब आ गए थे भारत-पाक

कश्मीर समस्या के समाधान के लिए फार्मूला लेकर आए थे जनरल मुशर्रफ

-कश्मीरियों के कथित ‘आत्म निर्णय’ के अधिकार को भी भूलने को तैयार था पाक

— करगिल घुसपैठ के विलेन मुशर्रफ की रविवार को हुई है मौत

इंट्रो

परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के वो जनरल थे, जिन्हें करगिल घुसपैठ का आर्किटेक्ट कहा जाता है, बावजूद इसके एक समय ऐसा आया था जब मुशर्रफ की अगुवाई में ही पाकिस्तान भारत के साथ कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए एक अहम समझौता करने वाला था। मुशर्रफ के निधन के बाद कूटनीति की किताब के वो पन्ने फिर से मौजूं हो उठे हैं। मुशर्रफ ने अपनी जीवनी ‘इन द लाइन ऑफ फायर’ में इस पर लिखा है…

साल 2001 में मुशर्रफ भारत आने के लिए निमंत्रण मिला था। जुलाई 2001 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत आए। भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर वार्ता के लिए ऐतिहासिक शहर आगरा को चुना था। इस समझौते में कथित तौर पर परवेज मुशर्रफ जम्मू-कश्मीर को लेकर चार बिंदुओं को लेकर आए थे।

  1. कश्मीर की सीमाएं नहीं बदलेगी लेकिन नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के लोगों के लिए पूरे क्षेत्र में मुक्त आवाजाही की अनुमति होनी चाहिए।
  2. जम्मू कश्मीर के लोगों को अधिक स्वायत्तता मिलेगी, लेकिन कश्मीर को आजादी नहीं दी जाएगी। इस प्रावधान के तहत मुशर्रफ कश्मीरियों के आत्म निर्णय के कथित अधिकार को भूल जाने को तैयार थे। ये पाकिस्तान की ओर से एक बड़ा कदम था।
  3. भारत और पाकिस्तान दोनों को इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए एलओसी से सैनिकों को वापस करना होगा। सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया तय होनी थी।
  4. कश्मीर में संयुक्त निगरानी की एक व्यवस्था विकसित हो. इसमें स्थानीय कश्मीरियों को भी शामिल किया जाए।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी किताब ‘नाइदर ए हॉक, नॉर ए डव’ में किताब में लिखा है कि “कश्मीर का समाधान दोनों सरकारों की मुट्ठी में था। लेकिन कुछ मुद्दों पर बात नहीं बनने के कारण आगरा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं हो सका।

इसलिए नहीं बनीं बात

माना जाता है कि ये समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सिद्धांत रूप में स्वीकार भी था। लेकिन, वाजपेयी सरकार राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को फेस वैल्यू पर लेने का रिस्क नहीं उठा सकती थी। क्योंकि ये मुशर्रफ ही थे जिन्होंने कुछ समय पहले ही करगिल को अंजाम दिया था। इसके अलावा भारत को उस मुशर्रफ की उस ‘सरकार’ पर भरोसा नहीं था जिसका वे दिल्ली में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। आगरा समिट के फेल होने की एक और वजह अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का रवैया था। दरअसल मुशर्रफ के एजेंडे में कश्मीरियों के आत्म निर्णय के अधिकार की चर्चा नहीं थी इसलिए गिलानी इसकी आलोचना कर रहे थे। आगरा समिट फेल होने की एक वजह भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी दाऊद इब्राहिम भी था। भारत इस ऐतिहासिक समझौते के साथ पाकिस्तान से दाऊद पर भी कुछ गारंटी लेना चाहता था। लेकिन पाक इसके लिए राजी नहीं था।

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