–जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई
— शीर्ष न्यायालय ने याचिका पर अटॉर्नी जनरल से मांगी मदद
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इंट्रो
सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि धर्मांतरण एक गंभीर मुद्दा है, इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने छलपूर्ण धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने का आग्रह करने वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की मदद मांगी। मामले में सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से उस मामले में पेश होने के लिए कहा, जिसमें याचिकाकर्ता ने भय, धमकी, उपहार और मौद्रिक लाभ के जरिए धोखाधड़ी” के माध्यम से कराए जाने वाले धर्मांतरण पर रोक लगाने का आग्रह किया है। पीठ ने मामले में वेंकटरमणी से अदालत मित्र के रूप में सहायता करने को कहा। इसने कहा, हम आपकी सहायता भी चाहते हैं, अटॉर्नी जनरल। बल, लालच आदि द्वारा धर्मांतरण -कुछ तरीके हैं, और यदि प्रलोभन द्वारा कुछ भी ऐसा हो रहा है, तो क्या किया जाना चाहिए? सुधारात्मक उपाय क्या हैं? शुरुआत में, तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने याचिका को राजनीतिक रूप से प्रेरित जनहित याचिका कहा। उन्होंने कहा कि राज्य में इस तरह के धर्मांतरण का कोई सवाल ही नहीं है। पीठ ने इस पर आपत्ति जताते हुए टिप्पणी की, आपके इस तरह उत्तेजित होने के अलग कारण हो सकते हैं। अदालती कार्यवाही को अन्य चीजों में मत बदलिए। हम पूरे राज्य के लिए चिंतित हैं। यदि यह आपके राज्य में हो रहा है, तो यह बुरा है। यदि नहीं हो रहा, तो अच्छा है। इसे एक राज्य को लक्षित करने के रूप में न देखें। इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाएं।
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केंद्र और राज्यों को निर्देश देने याचिका
अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छलपूर्ण धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। शीर्ष अदालत ने हाल ही में कहा था कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। इसने केंद्र से बेहद गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए गंभीर प्रयास करने को कहा था।
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अदालत ने दी थी चेतावनी
अदालत ने चेतावनी दी थी कि अगर धोखे, प्रलोभन और भय-धमकी के जरिए कराए जाने वाले धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो ‘बहुत मुश्किल स्थिति’ पैदा हो जाएगी। गुजरात सरकार ने पहले की सुनवाई में शीर्ष अदालत से कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता में दूसरों को धर्मांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है। इसने राज्य के कानून के उस प्रावधान पर उच्च न्यायालय की रोक को हटाने का अनुरोध किया था, जिसके तहत विवाह के माध्यम से धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।
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जबरन धर्मांतरण को बताया राष्ट्रव्यापी समस्या
अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिससे तत्काल निपटने की जरूरत है। नागरिकों को होने वाली चोट बहुत बड़ी है, क्योंकि एक भी जिला ऐसा नहीं है जो ‘हुक और बदमाश’ द्वारा धर्म परिवर्तन से मुक्त हो।
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केंद्र ने बताया था- आदिवासी इलाकों में ज्यादा होते हैं ऐसे मामले
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि धर्म परिवर्तन के ऐसे मामले आदिवासी इलाकों में ज्यादा देखे जाते हैं। इस पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि अगर ऐसा है तो सरकार क्या कर रही है? इसके बाद कोर्ट ने केंद्र से कहा कि इस मामले में क्या कदम उठाए जाने हैं, उन्हें साफ करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के तहत धर्मांतरण कानूनी है, लेकिन जबरन धर्मांतरण कानूनी नहीं है।
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