0 राज्यपाल ने कहा संविधान में गवर्नर को निर्णय लेने का है अधिकार, दबाव की जरूरत नहीं
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके का कहना है कि संवैधानिक, कानूनी, नियम प्रकिया के आधार पर संवैधानिक व्यक्ति निर्णय लेता है। संविधान में गवर्नर को निर्णय लेने का अधिकार है, इसमें किसी तरह के दबाव की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने कहा कि आरक्षण के संबंध में 10 प्रश्नों का उत्तर राज्य सरकार चार, दस लाइन में दो पन्ने का पत्र भिजवा देगी, तो उस पर लीगल अभिमत लेने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा और तय किया जाएगा कि क्या करना है।
प्रदेश की राज्यपाल अनुसुईया उईके रविवार को बिलासपुर के प्रवास पर थीं, इस दौरान आरक्षण मामले में राज्य सरकार द्वारा उनके प्रश्नों का जवाब भेजे जाने संबंधी प्रश्न पर उन्होंने कहा कि आज छुट्टी है और उनके पास जवाब आया नहीं है। उनका कहना है कि वे देखेंगी कि ऐसा तो नहीं है कि सरकार उन्हें चार, दस लाइन में दो पन्ने का पत्र भेजकर मेरे 10 प्रश्नों का जवाब दे दिया। वे विधि अभिमत द्वारा ही अपना निर्णय लेंगी। 10 प्रश्न विधि अधिकारियों के अभिमत से उठाए गए हैं। कोई भी संवैधानिक व्यक्ति लीगल, कानूनी, नियम प्रक्रिया के आधार पर निर्णय लेता है और इसी आधार पर विधानसभा में विधेयक आता है। इसलिए उन्होंने अभी 8-9 विधेयकों को रोका है। उन्होंने बताया कि संविधान में गवर्नर ही संवैधानिक प्रक्रिया के तहत निर्णय लेता है। गवर्नर को संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है, इसलिए विधेयक को अपने पास रखूं, वापस कर दूं या राष्ट्रपति को भेज दूं, इसमें किसी तरह के दबाव की जरूरत नहीं होती है। राज्यपाल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए और 58 प्रतिशत आरक्षण जब अवैधानिक कर दिया गया तो 76 प्रतिशत आरक्षण को सरकार कैसे फेस करेगी यह मेरे लिए भी जानना जरूरी है। जल्दबाजी में विधेयक पर हस्ताक्षर कर दूं तो जो परिस्थिति 58 प्रतिशत आरक्षण अवैधानिक हो गई उसी तरह यह 76 प्रतिशत आरक्षण भी अवैधानिक न हो जाए, इसलिए तमाम चीजों को जान लेना जरूरी है।
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संवैधानिक प्रमुख के नाते जिम्मेदारी अन्याय न हो———-
राज्यपाल सु्श्री अनुसुईया उईके का कहना है कि संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि जब तक किसी भी चीज का समाधान न कर लें जल्दबाजी में निर्णय न लें। वे प्रदेश के हर वर्ग के लिए सोच रही हैं, चाहे वह ओबीसी, एसटी-एससी या अन्य वर्ग हो, किसी के साथ अन्याय न हो। हम जानना चाहते हैं कि आर्थिक आधार पर 4 प्रतिशत बढ़ाया, तो क्या कोई कमेटी बनाई? सर्वेक्षण कराया गया ? इसी तरह एससी-एसटी के लिए अलग से कोई कमेटी बनाई गई ? विधेयक लाने के लिए लीगल अभिमत लिया गया या नहीं ? क्वांटिफाईवल डाटा ओबीसी के लिए उसका आधार जनसंख्या, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक होना चाहिए। वह क्वांटिफाईवल डाटा मुझे उपलब्ध नहीं कराया गया।
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सुको फैसला 50 फीसदी से ऊपर नहीं——–
राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने यह फैसला दिया था कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिए। अगर ऐसी कोई असाधारण परिस्थितियां हैं तो उनका सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, पिछड़ापन तमाम सारी चीजों के आधार पर बढ़ाया जा सकता है। 58 प्रतिशत आरक्षण पर सरकार के डाटा, जानकारी से हाईकोर्ट सहमत नहीं हुआ और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर अवैधानिक कर दिया तो मैं सरकार से यह जानना चाहा कि 76 प्रतिशत जो अवैधानिक है, ऐसी कौन से परिस्थिति आ गई कि आपने आरक्षण 76 प्रतिशत कर दिया। मेरे लिए यह जानना जरूरी नहीं है क्या ?
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