-सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट का आदेश पलटा
-केरल पुलिस के 4 अफसरों पर लगे हैं फंसाने के गंभीर आरोप
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन को जासूसी मामले में फंसाने की साजिश के आरोपों का सामना कर रहे इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस के पूर्व अधिकारियों को अग्रिम जमानत देने के केरल उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है। इसके साथ अदालत ने केरल हाईकोर्ट को निर्देश भी दिया है कि आरोपियों की दलीलों पर नए सिरे से विचार करें। जस्टिस एम आर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय से उनकी दलीलों पर नए सिरे से विचार करने और 4 सप्ताह के भीतर मामले का फैसला करने को कहा है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अभियुक्तों को 5 सप्ताह तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक सीबी मैथ्यूज, गुजरात के पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार, पीएस जयप्रकाश, एस विजयन और थम्पी एस दुर्गादत्त को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है। बता दें कि वैज्ञानिक नंबी नारायणन पर एक फिल्म भी बन चुकी है।
सितंबर 2018 में नारायणन को मुआवजा देने का आदेश
सितंबर 2018 में अदालत ने डॉ नंबी नारायणन को उनकी अवैध गिरफ्तारी और हिरासत में प्रताड़ना के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। इसके साथ ही पूर्व न्यायाधीश डी के जैन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति का गठन उन तरीकों और साधनों का पता लगाने के लिए और गलती करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ किया गया था, जिन्होंने कथित तौर पर नंबी नारायणन को फंसाया था। नारायणन इसरो में क्रायोजेनिक परियोजना का नेतृत्व करते थे, जब उनपर आरोप लगा था।
ये है मामला
अक्टूबर और नवंबर 1994 के बीच केरल पुलिस ने मालदीव की दो महिलाओं (मरियम रशीदा और फ़ौसिया हसन) को गिरफ्तार किया था, और दावा किया था कि इसरो में एक जासूसी रिंग का पर्दाफाश किया है और संवेदनशील दस्तावेजों को लीक किया है। इस मामले की जांच शुरुआत में एस विजयन ने की थी, जो तिरुवनंतपुरम की विशेष शाखा में एक इंस्पेक्टर थे। इसके बाद तत्कालीन डीआईजी (अपराध) सिबी मैथ्यूज के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया था। नंबी नारायणन को इस मामले में 30 नवंबर 1994 को गिरफ्तार किया गया था और जांच 4 दिसंबर 1994 को सीबीआई को सौंप दी गई थी। एर्नाकुलम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि एकत्र किए गए सबूतों से संकेत मिलता है कि इसरो में वैज्ञानिकों के खिलाफ जासूसी के आरोप साबित नहीं हुए और ये झूठे पाए गए। इस रिपोर्ट को अदालत ने स्वीकार कर लिया था और सभी आरोपियों को 2 मई 1996 को रिहा कर दिया गया था। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार को एक अलग गुप्त रिपोर्ट में सीबीआई ने इस मामले में आईबी के अधिकारियों द्वारा निभाई गई भूमिका का विस्तृत विवरण दिया था।
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