दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ई-हॉस्पिटल सर्वर पर साइबर हमला हुआ है। दो दिन बाद भी स्थिति संभल नहीं पा रही है। ये हालत तो तब हैं, जब यह हमला केवल एक ही संस्थान पर हुआ है। इस हमले के चलते, एम्स में ओपीडी और नमूना संग्रह सेवाओं के अलावा अन्य सभी सेवाएं, मसलन ऑपरेशन प्रक्रिया भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। रेनसमवेयर साइबर अटैक के चलते संस्थान का बैकअप सिस्टम भी जवाब दे गया है। सूत्रों का कहना है कि बैकअप सिस्टम को भी निशाना बनाया गया है। शुरुआती जांच में पता चला है कि साइबर हमले में फाइलों का एक्सटेंशन ही बदल गया। 2017 में यूके के नेशनल हेल्थ सिस्टम ‘एनएचएस’ पर रेनसमवेयर साइबर अटैक हुआ था। करीब दो सप्ताह तक, सारा सिस्टम ठप हो गया था। मैनुअल तरीके से काम करना पड़ा। भारत में चार साल पहले तक 48 हजार से ज्यादा ‘वेनाक्राई रेनसमवेयर अटैक’ डिटेक्ट हुए थे। उसके बाद भी देश में साइबर अटैक से बचने का फूलप्रूफ सिस्टम तैयार नहीं हो सका है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सहित इन क्षेत्रों पर पड़ता है असर …
डॉ. मुक्तेश चंद्र (आईपीएस), दिल्ली पुलिस में स्पेशल सीपी के पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने गोवा के डीजीपी और दिल्ली में स्पेशल सीपी ‘यातायात’ सहित कई अहम पदों पर कार्य किया है। डॉ. मुक्तेश ने आईआईटी दिल्ली से साइबर सिक्योरिटी विषय में पीएचडी की है। उन्होंने सेवा में रहते हुए ब्रिटेन में जाकर ‘चेवेनिंग साइबर सिक्योरिटी फेलोशिप’ के तहत ‘भारत और यूके के साइबर सुरक्षा ढांचे का तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर रिसर्च रिपोर्ट तैयार की थी। उसके बाद डॉ. मुक्तेश के ‘साइबर सिक्योरिटी’ विषय पर कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। अपने लेख ‘ए केस फॉर नेशनल साइबर सिक्योरिटी स्ट्रेट्जी’ में डॉ. मुक्तेश चंद्र ने लिखा है, ‘क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ पर हुआ साइबर अटैक राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, जन स्वास्थ्य दूसरी अहम सेवाओं को अपनी चपेट में ले लेता है। इन सेवाओं को बहुत दुर्बलता की स्थिति में ला दिया जाता है। मौजूदा समय में साइबर सिक्योरिटी, किसी देश की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ का अभिन्न एवं महत्वपूर्ण हिस्सा है।
साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है लड़ाई
डॉ. मुक्तेश ने बताया, हमने लंबे समय से प्रॉक्सी वॉर के एक भाग के तौर पर आतंकवाद और हिंसा को देखा है। जमीन, समुद्र, हवा और स्पेस के बाद अब वह लड़ाई, साइबर स्पेस के पांचवें डोमेन तक पहुंच गई है। रेनसमवेयर अटैक होते रहते हैं। इनमें यह देखा जाता है कि वे कितने क्रिटिकल होते हैं। हालांकि यह पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। 2017 में ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सिस्टम, पर हुए अटैक ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। यहां तक कि बैकअप डाटा को भी संक्रमित करने का प्रयास किया गया। केवल मुख्य सिस्टम ही नहीं, बल्कि बैकअप भी रेनसमवेयर अटैक का निशाना बनता है। ऐसे हमले के बाद दोबारा से सभी मशीनों को लोड करना पड़ता है। कई बार रेनसमवेयर के तहत बिटक्वॉइन या क्रिप्टो करेंसी में डिमांड भी आती है। पांच साल बाद अगर भारत या दूसरे मुल्कों ने खुद को साइबर अटैक से बचाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की है तो वह चिंताजनक है।
साइबर अटैक से बचने के लिए जरूरी है ये सब
साइबर अटैक से बचने के लिए ‘साइबर हाइजीन’ की प्रक्रिया अपनानी होती है। संस्थान कोई भी हो, वहां पर डाटा बैकअप रोजाना लें। साइबर डिजास्टर मैनेजमेंट, जिसकी एक पूरी ड्रिल होती है, इसके प्रति हर विभाग, संस्थान या कंपनी को अवगत कराया जाए। ये सब तैयारी पहले से ही करनी पड़ती है। क्या एम्स के पास यह सब प्लान था, ये भी एक सवाल है। ये तो केवल एक एम्स पर साइबर हमला हुआ है। अगर दूसरे एम्स, बड़े सरकारी अस्पताल व प्राइवेट संस्थान भी आपस में लिंक हों और तब साइबर अटैक हो जाए, तो उस दौरान की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। साइबर क्राइम का दायरा, जिस तेजी से बढ़ रहा है, वैसे ही हमें खुद की सुरक्षा बढ़ानी होगी।

