-मोरबी ब्रिज टूटने पर उठ रहे सवालिया निशान
-100 साल से भी अधिक पुराना है यह पुल
-पुल को बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के खोलने के लग रहे आरोप
-कंपनी प्रवक्ता ने पुल टूटने के लिए लोगों को बताया जिम्मेदार
नई दिल्ली। गुजरात के मोरबी शहर में केबल पुल टूटने के बाद जांच के घेरे में आए ओरेवा ग्रुप को सीएफएल बल्ब, दीवार घड़ी और ई-बाइक बनाने में विशेषज्ञता हासिल है, लेकिन अभी यह पता नहीं चला है कि उसे 100 साल से भी अधिक पुराने पुल की मरम्मत का ठेका कैसे मिल गया? गुजरात के मोरबी शहर में मच्छु नदी पर केबल पुल हादसे में बड़ी संख्या लोगों की जानें गई हैं।
बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के खोला गया पुल
मच्छु नदी पर बना केबल पुल 7 महीने पहले मरम्मत के लिए बंद कर दिया गया था और इसे 26 अक्टूबर को गुजराती नव वर्ष के मौके पर फिर से खोला गया था। यह ‘झूलता पुल’ के नाम से मशहूर था। इस साल मार्च में ओरेवा ग्रुप को मोरबी नगर निकाय ने पुल की मरम्मत और देखरेख का ठेका दिया था। ऐसा आरोप है कि पुल को बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के खोल दिया गया। कंपनी के प्रबंधन से इस पर टिप्पणी नहीं मिल सकी है, लेकिन समूह के प्रवक्ता ने दुर्घटना के तुरंत बाद कहा था कि पुल इसलिए टूटा क्योकि पुल के मध्य में कई सारे लोग इसे एक तरफ से दूसरी तरफ झुलाने की कोशिश कर रहे थे।
मोरबी नगरपालिका का आरोप
हादसे के बाद मोरबी नगरपालिका के प्रमुख संदीप सिंह जाला ने कहा है कि कंपनी ने नगरपालिका से फिटनेस सर्टिफिकेट लिए बिना ही बीते हफ्ते पुल को आम लोगों के लिए खोल दिया। उनके अनुसार पुल जीर्णोद्धार का कार्य एक सरकारी निविदा के तहत किया गया था, ऐसे में ओरेवा ग्रुप को कराए गए कार्य की विस्तृत जानकारी नगरपालिका को उपलब्ध करानी चाहिए थी। उन्हें पुल को दोबारा शुरू करने से पहले क्वालिटी जांच भी करवानी चाहिए थी, पर ऐसा नहीं किया गया। सरकार को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि पुल को दोबारा चालू कर दिया गया है।
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एफआईआर में ओरेवा ग्रुप के किसी व्यक्ति का नाम नहीं
आपको बता दें कि फिलहाल हादसे के संबंध में दर्ज की गई एफआईआर में जयसुख या ओरेवा ग्रुप का नाम कहीं दर्ज नहीं है। ब्रिज के मेंटेनेंस का काम करने वाली एजेंसी, उसके प्रबंधकों और अन्य के खिलाफ शिकायत जरूर दर्ज की गई है, पर उनके बारे में फिलहाल कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। हादसे की जांच का कार्य डीएसपी पीए जाला को सौंपा गया है। पुलिस का कहना है कि यह लापरवाही का मामला है। पुलिस ने अब तक की जांच के दौरान नौ लोगों को हिरासत में लिया है।
5 दशक पहले पड़ी कंपनी की नींव
करीब 5 दशक पहले ओधावजी राघवजी पटेल की ओर से स्थापित कंपनी मशहूर अजंता और ओरपैट ब्रांड के तहत दीवार घड़ी बनाती है। पटेल का 88 वर्ष की आयु में इस महीने की शुरुआत में निधन हो गया था। वह 1971 में 45 साल की उम्र में कारोबार में हाथ आजमाने से पहले एक स्कूल में विज्ञान के टीचर थे। करीब 800 करोड़ रुपये की आय वाला अजंता ग्रुप अब घरेलू और बिजली के उपकरण, बिजली के लैम्प, कैलकुलेटर, चीनी मिट्टी के उत्पाद और ई-बाइक बनाता है। अजंता ट्रांजिस्टर क्लॉक मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी के तहत दीवार घड़ी बनाने से शुरुआत करने वाले मोरबी स्थित ओरेवा ग्रुप ने कई क्षेत्रों में अपना कारोबार फैलाया। इस ग्रुप ने अपनी वेबसाइट पर दावा किया है कि उसके यहां 6,000 से अधिक लोग काम करते हैं लेकिन उसने अपने निर्माण कारोबार का कोई उल्लेख नहीं किया है। उद्योग जगत में कम लागत के लिए पहचाने जाने वाला ओरेवा ग्रुप देशभर में 55,000 साझेदारों के जरिए अपने उत्पादों को बेचता है। गुजरात के कच्छ में समाखियाली में उसका भारत का सबसे बड़ा विनिर्माण संयंत्र है जो 200 एकड़ से भी अधिक में फैला हुआ है।
कंपनी ने नहीं किया समझौते का पालन
मोरबी नगर निकाय और इस पुल की देखरेख और मरम्मत कार्य करने वाली अजन्ता मैन्यूफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौते की जांच से पता चला कि कंपनी को 8 से 12 महीने तक पुल को मरम्मत कार्य के लिए बंद रखना था लेकिन इसे महज सात महीने में ही खोल दिया गया और वह भी बिना नगर निकाय के फिटनेस सर्टिफिकेट के। भीड़ बढ़ती रही और यह टिकट बेचते गए। अगर 126 टिकट बेचने के बाद भी इन्होंने लोगों को रोक दिया होता तो शायद हादसा न होता। अजन्ता मैन्यूफैक्चरिंग प्राइवेट से मोरबी नगर निकाय ने 2020 में समझौता किया था। यह समझौता 2037 तक का है. इसके तहत अजन्ता मैन्यूफैक्चरिंग प्राइवेट को इस ब्रिटिशकालीन सस्पेंशन ब्रिज की मरम्मत का काम और देखरेख करना है। इसके बदले में वह यात्रियों के टिकट बेचकर अपना मुनाफा कमाएगी। कंपनी को हर साल टिकट के दाम बढ़ाने की भी इजाजत इस समझौते से मिली हुई थी।

