-सुप्रीम कोर्ट ने बताई जरूरत, कहा, व्यभिचार से बिखरते हैं परिवार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सशस्त्र बलों के पास व्यभिचार के आरोप में अपने अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए किसी प्रकार का तंत्र होना चाहिए क्योंकि यह ऐसा आचरण है जो अधिकारियों के जीवन बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि व्यभिचार एक परिवार में दर्द पैदा करता है और इसे हल्के तरीके से नहीं लेना चाहिए। सैन्य सेवाओं में अनुशासन सर्वोपरि है। हर कोई अंततः समाज की एक इकाई के रूप में परिवार पर निर्भर है। समाज की अखंडता एक पति या पत्नी की एक-दूसरे के प्रति वफादारी पर आधारित है।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली न्यायाधीश संविधान पीठ ने कहा कि यह (व्यभिचार) सशस्त्र बलों में अनुशासन को हिला देने वाला है। सशस्त्र बलों को निश्चित करना चाहिए कि वे कार्रवाई करेंगे। आप जोसेफ शाइन (निर्णय) का हवाला कैसे दे सकते हैं और कह सकते हैं कि यह नहीं हो सकता। व्यभिचार एक परिवार में दर्द पैदा करता है। हमने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रूप में कई सत्र आयोजित किए हैं और देखा है कि परिवार बिखरे हुए हैं। हम आपको बता रहे हैं कि इसे हल्के ढंग से न लें। ऐसी ही एक घटना में व्यभिचार की आरोपी मां ने अपने बच्चों की कस्टडी की मांग करते हुए एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। लेकिन बच्चों ने मां से बात करने से इनकार कर दिया। इस तरह की नफरत होती है।
पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल थे, जब केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने 2018 के फैसले के स्पष्टीकरण की मांग करने वाली याचिका दायर की थी। रक्षा मंत्रालय ने यह कहते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था कि व्यभिचार को अपराध के रूप में 27 सितंबर, 2018 का फैसला सशस्त्र बलों के कर्मियों को व्यभिचारी कृत्यों के लिए दोषी ठहराए जाने के रास्ते में आ सकता है। उसने पीठ को बताया कि व्यभिचार के लिए कुछ सैन्य कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी, हालांकि, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने जोसेफ शाइन के फैसले का हवाला देते हुए कई मामलों में ऐसी कार्यवाही को रद्द कर दिया था।
जानिए क्या है 2018 का जोसेफ शाइन मामला
2018 में जोसेफ शाइन ने धारा 32 के तहत सीआरपीसी की धारा 198 के साथ पठित आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन हुआ है। यह पहली बार व्यभिचार के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका थी। याचिकाकर्ता ने व्यभिचार के प्रावधान को मनमाना और जेंडर के आधार पर भेदभावपूर्ण होने का दावा किया था। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को अपराध मानना असंवैधानिक करार दिया था। हालांकि, भारत में हिंदू विवाह अधिनियम 1956 की धारा 13 (1) के तहत व्यभिचार तलाक का आधार है।
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