-भारत सरकार ने लगा दिया है इस पर बैन
-कानपुर, करौली, खरगौन, बेंगलुरु हिंसा सहित कई मामलों में आया नाम सामने
-। पीएफआई की वर्दी भी है, जिसमें लगे हैं पुलिस की तरह सितारे
नई दिल्ली। देश के अलग-अलग हिस्सों में दंगा, हिंसा और हत्याओं में जिस एक संगठन का नाम बार-बार आता है, वही संगठन एक बार फिर विवादों में आया और इस बार उस पर बैन लगा दिया गया। इस संगठन का नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई। पीएफआई का विवादों से पुराना नाता रहा है और हत्या से लेकर दंगों तक में इसका नाम आता रहा है। उत्तर से दक्षिण भारत तक जब भी कोई बड़ा कांड होता तो सबसे पहले पीएफआई का नाम सामने आता। दिल्ली में सीएए प्रोटेस्ट, शाहीनबाग हिंसा, जहांगीरपुरी हिंसा से लेकर हाल के महीनों में हुई कानपुर हिंसा, राजस्थान की करौली हिंसा, मध्य प्रदेश के खरगौन में हिंसा और बेंगलुरु में हिंसा के साथ-साथ बीजेपी नेता की हत्या समेत देशभर में कई हिंसाओं-हत्याओं में इस विवादित संगठन का नाम सामने आ चुका है।
2006 में पड़ी नींव
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए। पीएफआई खुद को गैर-लाभकारी संगठन बताता है। शुरू में पीएफआई का मुख्यालय केरल के कोझिकोड में था लेकिन बाद में उसे दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया था। पीएफआई के अध्यक्ष ओएमए अब्दुल सलाम हैं और ईएम अब्दुल रहिमन इसे उपाध्यक्ष हैं। हर साल 15 अगस्त को यह संगठन फ्रीडम परेड आयोजित करता है लेकिन 2013 में केरल सरकार ने परेड पर रोक लगा दी थी। पीएफआई की वर्दी भी है, जिसमें पुलिस की तरह सितारे और एंबलम लगे हैं।
गठन के वक्त सिमी के सदस्य शामिल
पीएफआई के गठन के वक्त प्रतिबंधित आतंकी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य पीएफआई में शामिल थे। सिमी का गठन अप्रैल 1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। पीएफआई खुद को न्याय, स्वतंत्रता और लोगों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने वाला एक नव-सामाजिक संगठन बताता है। संगठन मुस्लिम आरक्षण की वकालत करता है। 2012 में पीएफआई ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून के इस्तेमाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। संगठन का कहना था कि कानून का इस्तेमाल निर्दोष लोगों को हिरासत में लेने के लिए किया जा रहा है।
इन मामलों में रही संलिप्तता
पीएफआई के कार्यकर्ता कई आतंकवादी गतिविधियों के साथ-साथ कई लोगों की हत्याओं में शामिल रहे हैं। इनमें संजीत (केरल, नवंबर, 2021), वी. रामलिंगम, (तमिलनाडु, 2019), नंदू, (केरल, 2021), अभिमन्यु (केरल, 2018), बिबिन (केरल, 2017), शरथ (कर्नाटक, 2017), आर. रुद्रेश (कर्नाटक, 2016), प्रवीण पुजारी (कर्नाटक, 2016), शशि कुमार (तमिलनाडु, 2016) और प्रवीण नेट्टारू (कर्नाटक, 2022) व्यक्तियों की हत्या शामिल है। जानकारों के अनुसार, इन हत्याओं को अंजाम पीएफआई कार्यकर्ताओं ने दिया है। इस संगठन का काम सिर्फ सार्वजनिक शांति भंग करना और लोगों के मन में आतंक का खौफ पैदा करना रहा है।
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