नई दिल्ली: भारतीय विदेश नीति में आजादी के बाद से कई बदलाव देखने को मिले हैं। गुटनिरपेक्षता से लेकर ग्लोबल विलेज वाली दुनिया में भारत की कूटनीति की कई बार परीक्षा हुई है। देश के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के कार्यकाल के दौरान देश को कई ऐसी वैश्विक चुनौतियों से जूझना पड़ा है जब भारतीय विदेश नीति की परख हुई। भारतीय विदेश नीति अब अपने हितों और वसुधैव कुटुंबकम की धारणा के साथ आगे बढ़ रही है। देश के लिए एक अच्छी बात ये भी है कि शुरू से हमारे पास इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, पी वी नरसिम्हा राव, सुषमा स्वराज से लेकर एस जयशंकर जैसे कूटनीति के माहिर विदेश मंत्री रहे हैं। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा ने जहां देश की विदेश नीति छोड़ा था वहां से मौजूदा विदेश मंत्री जयशंकर को अच्छे से आगे ले गए हैं।
इंदिरा की सख्त छवि और मजबूत विदेश नीति
इंदिरा गांधी अपने पिता नेहरू की तरह ही मजबूत विदेश नीति के लिए जानी जाती रही हैं। उनकी छवि एक सख्त प्रशासक की थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और पीएन हक्सर की किताब ‘Intertwined Lives: P.N. Haksar and Indira Gandhi’ में इंदिरा की विदेश नीति की सख्ती के बारे में बताया गया है। पुस्तक में इस बात का जिक्र है कि इंदिरा मित्र देशों से भी अपनी शर्तों के साथ ही रिश्ते की पक्षधर थीं। किताब में एक वाकये का जिक्र करते हुए बताया गया है कि कैसे आयरन लेडी इंदिरा ने अपनी शर्तों का सामने सोवियत संघ के विदेश मंत्री को झुका दिया था। किस्सा ये है कि 1971 में सोवियत के विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको भारत से लौटने के वक्त पाकिस्तान होकर जाना चाहते थे। इसपर इंदिरा ने मित्र सोवियत संघ को साफ-साफ बता दिया कि अगर पाकिस्तान जाना है तो भारत आने की जरूरत नहीं है। इसका असर ये हुआ कि आंद्रेई भारत आए समझौते पर हस्ताक्षर किया और सीधे वापस मॉस्को चले गए।
अटल बिहारी ने बेबाकी से भारतीय नीति को आगे बढ़ाया
अटल बिहारी जनता पार्टी सरकार में 26 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई 1979 तक विदेश मंत्री रहे थे। अपने कार्यकाल के दौरान अटल ने भारत की विदेश नीति को पूरे दुनिया मजबूती के साथ रखा था। वाजपेयी ने 4 अक्टूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले विदेश मंत्री थे। 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तब अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने भारत पर दबाव बनाया था। तब वाजपेयी ने बिना विचलित हुए साफ कहा था कि खतरा आने से पहले उसकी तैयारी होनी चाहिए। वाजपेयी का पाकिस्तान को लेकर एक बयान बड़ा ही मशहूर हुआ था। उन्होंने कहा था दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं। उनके दौर में ही कारगिल युद्ध हुआ था लेकिन भारत ने सख्ती दिखाते हुए पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया था।
सुषमा बन गई थीं आम लोगों की विदेश मंत्री
पीएम नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री बनाया गया था। सुषमा ने विदेश मंत्रालय को ट्विटर पर काफी सक्रिय किया था। सुषमा ने ट्विटर के जरिए विदेशों में फंसे कई लोगों की मदद की थी। सुषमा ने भी देश की विदेश नीति को धारदार बनाया। मामला चाहे संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को करारा जवाब देने का हो या फिर अहम मुद्दों पर भारत के नजरिए को सामने रखने का सुषमा ने बड़ी बेबाकी से ये काम किया। डोकलाम तनाव के समय सुषमा ने चीन को दो-टूक सुना दिया था। सुषमा ने अपने समय में देश की विदेश नीति को काफी सख्त रूप से आगे बढ़ाया था।
सुषमा की लीगेसी को आगे बढ़ा रहे हैं जयशंकर
मौजूदा विदेश मंत्री जयशंकर अब सुषमा की लीगेसी को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। अधिकारी से विदेश मंत्री बने जयशंकर ने यूरोपीय देशों को जून में जमकर लताड़ लगाई थी। उन्होंने कहा था कि भारत के चीन के साथ रिश्ते असहज हैं, लेकिन हम इनके प्रबंधन में पूरी तरह सक्षम है। यूरोप को लताड़ लगा रहे विदेश मंत्री भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के नक्शेकदम पर चलते नजर आए। राजधानी ब्रातिस्लावा में एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे जयशंकर का लहजा बेहद सख्त था। उन्होंने साफ कर दिया कि यूरोप को उस मानसिकता से बाहर निकालना होगा कि उसकी समस्याएं पूरे दुनिया की समस्याएं हैं लेकिन दुनिया की समस्या, यूरोप की समस्या नहीं है। समस्या अगर आपकी है तो यह सिर्फ आपकी है लेकिन अगर यह मेरी है तो यह हमारी हो जाती है।
रूसी तेल खरीद पर अमेरिका को सुना दी थी खरी-खरी
जयशंकर ने अप्रैल में अमेरिका के साथ 2+2 प्लस बातचीत में रूस से तेल खरीदने पर पूछे गए एक सवाल के जवाब अमेरिका जमकर सुना दिया था। उन्होंने कहा था कि यदि आप रूस से हमारी ऊर्जा खरीद देख रहे हैं, तो मैं ये कहना चाहूंगा कि आप यूरोप की तरफ भी देखें। हम अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए खरीदारी करते हैं। हमारी तो महीने की खरीदारी यूरोप एक दिन की खरीदारी की तुलना में काफी कम होगी।
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