-सुप्रीम कोर्ट में एसजी तुषार मेहता ने दी दलील, आज फिर होगी सुनवाई
- कुरान में उल्लेख होने मात्र से वो नहीं हो जाता अनिवार्य धार्मिक परम्परा
- कोविड संकट काल में वर्चुअल सुनवाई का भी दिया गया हवाला
नई दिल्ली। कर्नाटक हिजाब विवाद को लेकर मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस हुई। बहस के दौरान एसजी तुषार मेहता ने कई उदाहरणों के जरिए साबित करने का प्रयास किया कि हिजाब कोई आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। उनकी तरफ से यूनिफॉर्म और अनुशासन पर भी लंबी दलीलें दी गईं। मेहता ने धर्म का मामला नहीं है, यह सभी छात्रों के बीच एक समान आचरण का मामला है। जब मैं धर्मनिरपेक्ष शिक्षा में हूं तो धार्मिक पहचान दिखाने वाली पोशाक नहीं हो सकती। एसजी तुषार मेहता ने कहा की कुछ वैसे ही जब कोविड संकट काल में वर्चुअल सुनवाई के समय जब कुछ वकील बनियान पहनकर सुनवाई में बहस करने आए तो अदालत ने उनको यूनिफॉर्म और संस्थान की गरिमा के मुताबिक तय ड्रेसकोड फॉलो करने को कहा था।
ईरान में बना बड़ा सामाजिक राजनीतिक मुद्दा
दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि फिर सर्दियों में छात्र मफलर पहनते हैं वो कहां यूनिफॉर्म में होता है? इस पर एसजी ने कहा कि ड्रेस का उद्देश्य क्या है? किसी को इस तरह सोचकर ड्रेस नहीं पहने चाहिए कि मैं हीन महसूस करता हूं। ड्रेस एकरूपता और समानता के लिए है। जब आप उस सीमा को पार करना चाहते हैं तो आपका परीक्षण भी उच्च सीमा पर होता है। याचिकाकर्ता ये साबित नहीं कर पाए कि हिजाब अनिवार्य धार्मिक परम्परा है। कई इस्लामिक देश में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही है। मसलन ईरान में ये सामाजिक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। इसलिए हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है। कुरान में सिर्फ हिजाब का उल्लेख होने मात्र से वो इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं हो जाता।
मफलर यूनिफॉर्म का हिस्सा या नहीं?
इस पर जस्टिस धूलिया ने फिर वहीं सवाल पूछा कि वे यह नहीं कह रहे हैं कि उन्होंने वर्दी नहीं पहनी है। उदाहरण के लिए एक छात्र सर्दी में मफलर तो पहन ही सकता है। वे कह रहे हैं कि हम ड्रेस पहनेंगे। वे यह नहीं कह रहे हैं कि हम नहीं पहनेंगे। मान लीजिए कोई बच्चा मफलर पहनता है वैसे ही कोई छात्रा यूनिफॉर्म के रंग का हिजाब भी पहन सकती है। लेकिन तुषार मेहता ने इस तर्क का खंडन किया. उन्होंने साफ कहा कि यह मफलर धर्म की पहचान नहीं करता है लेकिन हिजाब करता है।
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नया लॉजिक, राष्ट्रपति मुर्मू भी तो सिर पर पल्लू रखती हैं
जनता दल (एस) के कर्नाटक प्रमुख सीएम इब्राहिम ने मंगलवार को एक नया लॉजिक पेश किया है। उन्होंने इस्लामी हिजाब की तुलना साड़ी के पल्लू से कर डाली। इब्राहिम ने यहां तक कह दिया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी तो अपने सिर को पल्लू से ढंकती हैं। क्या यह भी पीएफआई की साजिश है? इब्राहिम उस आरोप का जवाब दे रहे थे, जिसके मुताबिक कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई है। गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार ने कोर्ट में कहा है कि हिजाब को लेकर हुए विरोधों के पीछे पीएफआई थी।
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