शैक्षणिक संस्थाओं में 58 फीसदी आरक्षण अवैधानिक

हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

  • इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों के लिए आरक्षण का मामला

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रदेश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में 58 प्रतिशत आरक्षण को अवैधानिक करार दिया है। चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की डबल बेंच ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि किसी भी स्थिति में आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। ज्ञात हो कि हाईकोर्ट में राज्य शासन के साल 2012 में बनाए गए आरक्षण नियम को चुनौती देते हुए अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर की गई थी, जिस पर कोर्ट ने करीब दो माह पहले फैसला सुरक्षित रखा था।

राज्य शासन ने वर्ष 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत 4 प्रतिशत घटाते हुए 16 से 12 प्रतिशत कर दिया था। वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाते हुए 32 प्रतिशत कर दिया गया। इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा गया था। अजजा वर्ग के आरक्षण प्रतिशत में 12 फीसदी की बढ़ोतरी और अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण में 4 प्रतिशत की कटौती को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। इसके साथ ही कोर्ट में अलग-अलग 21 याचिकाएं दायर कर शासन के आरक्षण नियमों को अवैधानिक बताया गया।

कानूनी प्रावधानों के खिलाफ

याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता मतीन सिद्धिकी, विनय पांडेय और अधिवक्ता श्याम टेकचंदानी ने पैरवी की। इसमें कहा गया कि शासन का फैसला सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन, निर्देशों और कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है। इसे रद्द किया जाना चाहिए। गुरु घासीदास साहित्य समिति ने भी अनुसूचित जाति का प्रतिशत घटाने का विरोध किया था। समिति का कहना था कि राज्य शासन ने सर्वेक्षण किए बिना ही आरक्षण का प्रतिशत घटा दिया है। साथ ही इस सर्वेक्षण को न्यायालय में पेश भी नहीं किया गया है। इससे अनुसूचित जाति वर्ग के युवाओं को आगे चलकर नुकसान उठाना पड़ेगा। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 7 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था। सोमवार को हाईकोर्ट की डीबी ने अहम फैसला सुनाते हुए शासन के 58 प्रतिशत आरक्षण करने को गलत माना है।

विवाद की स्थिति बनी थी

राज्य शासन द्वारा आरक्षण कोटे में की गई वृद्धि को लेकर प्रदेशभर में विवाद की स्थिति बनी थी। अनुसूचित जाति वर्ग के नेताओं से लेकर युवाओं व सामाजिक पदाधिकारियों ने सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया था। सामाजिक पदाधिकारियों ने आरक्षण कोटे में 4 प्रतिशत की कटौती किए जाने से भविष्य में अजा वर्ग के युवाओं को होने वाले नुकसान को लेकर आशंका भी जताई थी। ज्ञात हो कि वर्ष 2012 में संशोशन के बाद अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत 4 प्रतिशत घटाकर 16 से 12 फीसदी हाे गया था। अनुसूचित जनजाति का 20 से बढ़ाकर 32 फीसदी कर दिया गया। जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा 14 फीसदी बरकरार रहा। ऐसा करने से कुल आरक्षण का प्रतिशत बढ़कर 50 से 58 हो गया।

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