—सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों से जुड़ी 8 याचिकाओं को किया बंद
—पूर्व सीएम कल्याण सिंह और अन्य पर दर्ज था बाबरी विध्वंस मामले में अवमानना का केस
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दो बड़े फैसले किए। गुजरात में 2002 में हुए दंगों के मामलों में स्वतंत्र जांच के लिए करीब 20 वर्ष पहले दायर 8 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अप्रासंगिक’ बताते हुए बंद कर दिया। कोर्ट ने 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े अवमानना याचिकाओं के एक बैच को भी खत्म कर दिया।
गुजरात में 2002 में हुए दंगों के मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, तीस्ता सीतलवाड़ का सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस जैसे संगठन शामिल हैं, जिन्होंने दंगों की जांच किसी अदालत की निगरानी में कराने समेत अन्य मांगों के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने अदालत द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सीजेपी की ओर से अपर्णा भट्ट समेत अनेक याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलों पर विचार किया और कहा कि अब इन याचिकाओं में निर्णय के लिए कुछ नहीं बचा है। पीठ ने व्यवस्था दी, चूंकि सभी मामले अब अप्रांसगिक हो गये हैं, इसलिए इस अदालत की राय है कि इस अदालत को इन याचिकाओं पर अब विचार करने की जरूरत नहीं है। इसलिए मामलों का निस्तारण किया जाता है। पीठ ने एसआईटी की इस दलील पर संज्ञान लिया कि उसने जिन नौ मामलों की जांच की थी, उनमें से एक ‘नरोदा गांव’ दंगा मामले में सुनवाई निचली अदालत में अंतिम स्तर पर है, वहीं अन्य मामलों में निचली अदालतों ने फैसले सुनाए हैं। वे अपील स्तर पर गुजरात उच्च न्यायालय या शीर्ष अदालत में लंबित हैं।
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गुजरात दंगे पर कोर्ट ने कहा-यह बेकाम
एक अन्य फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात 2002 के दंगों से जुड़े कई मामले भी बंद कर दिए हैं। शीर्ष अदालत के सामने याचिकाओं की एक लंबी लिस्ट लंबित था। कोर्ट ने कहा कि इन मामलों को काफी समय बीत गया है। अब ये बेकाम हो गए हैं, इसलिए 9 में से 8 मामलों में ट्रायल को खत्म किया जा रहा है। हालांकि गुजरात के नरोदा गांव के ट्रायल कोर्ट में एक केस में अंतिम बहस फिलहाल चल रही है।
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इस केस पर होगी सुनवाई
एसआईटी के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि 9 मामलों में से केवल नारोदा गांव इलाके में हुई हिंसा का मामला ही लंबित है। उसमें भी अंतिम दलीलें ही बाकी हैं। बाकी 8 मामलों में सुनवाई पूरी हो चुकी है। वे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपीलेट स्टेज में हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून के मुताबिक नारोदा गांव केस का ट्रायल जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की बनाई एसआईटी इस केस में कानून के अनुसार जरूरी कदम उठा सकती है।
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इन पर था अवमानना का केस
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही मंगलवार को बंद कर दी। न्यायमूर्ति एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने संविधान पीठ के नवंबर 2019 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह मामला सुनवाई के लिए पहले लाया जाना चाहिए था। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नौ नवंबर, 2019 को अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था और केंद्र को एक मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि अवमानना याचिका लंबे समय से लंबित थी और याचिकाकर्ता की 2010 में ही मृत्यु हो गई थी।
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10 फीसदी आरक्षण की जांच करेगा कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को दाखिले तथा नौकरी में दस प्रतिशत आरक्षण देने के केन्द्र के निर्णय की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी, न्यायमूर्ति रविंद्र भट्ट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा कि वह प्रक्रियागत पहलुओं तथा अन्य ब्योरों पर छह सितंबर को निर्णय लेगी। 13 सितंबर से याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए दाखिलों तथा लोक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान जोड़ा था। शीर्ष अदालत आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिकाओं और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मुसलमानों को आरक्षण देने वाले एक स्थानीय कानून को खारिज कर दिया था। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने चार भिन्न मतों वाले फैसले में ‘स्टेट टू मुस्लिम कम्युनिटी अधिनियम’ 2005 के तहत इन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया था संवैधानिक पीठ ने चार वकीलों शादान फरासत, नचिकेता जोशी, महफूज नजकी और कनू अग्रवाल को नोडल अधिवक्ता के रूप में कार्य करने के लिए कहा।
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