हट चुका है जे एंड के पीपुल्स एक्ट, अब दूसरे राज्य के सैनिक, अफसर, मजदूर, छात्र भी होंगे वोटर

-अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू कश्मीर में होने वाला है पहला विधानसभा चुनाव

-नई चुनावी फिजा, नए नियम… किसे मिलेगा फायदा, कौन मारेगा बाजी

-वोटर्स बनने के नए नियम से करीब 25 लाख बढ़ेंगे नए वोटर्स

अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में इस साल पहली बार विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। चुनाव आयोग इसके लिए तैयारी कर रहा है। इस सुगबुगाहट के बीच केंद्र शासित राज्य जम्मू कश्मीर में दो बड़े बदलाव हो रहे हैं। पहला वोटर बनने की प्रक्रिया में बदलाव हो चुका है, जबकि दूसरा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन बदलना है। इसका प्रस्ताव बनकर तैयार हो चुका है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि जम्मू कश्मीर में मतदान को लेकर हुए बदलावों से किसे फायदा होगा सकता है?

अब इन्हें भी वोटिंग का अधिकार

अनुच्छेद 370 हटने की वजह से जम्मू कश्मीर में वोटर बनने के लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। यानी, अन्य राज्यों की तरह ही अब अगर आप जम्मू कश्मीर में रह रहे हैं तो वहां का वोटर बन सकते हैं। मतलब जम्मू कश्मीर में तैनात सुरक्षाबलों के जवान, उनके परिवार के सदस्य जो साथ रहते हैं, दूसरे राज्यों से आकर केंद्रीय और राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लोग और उनके परिजन, दूसरे राज्यों से आकर काम करने वाले मजदूर, प्राइवेट संस्थानों में नौकरी करने वाले लोग, कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले छात्र भी जम्मू कश्मीर के वोटर बन सकते हैं। बस उम्र 18 साल से अधिक हो। मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार ने अनुमान लगाया है कि वोटर्स बनने के नए नियम से करीब 25 लाख नए वोटर्स बढ़ सकते हैं।

अभी इतने वोटर्स

जम्मू कश्मीर में अभी 18 साल से अधिक उम्र के करीब 98 लाख लोग रहते हैं। हालांकि, वोटर्स लिस्ट की अंतिम सूची में इनकी संख्या 76 लाख है। ऐसे में अगर 25 लाख नए वोटर्स बनते हैं तो राज्य में वोट देने वालों की संख्या एक करोड़ से ऊपर हो जाएगी।

नए परिसीमन के तहत होगा चुनाव

केंद्र शासित राज्य बनने के बाद जम्मू कश्मीर में नए सिरे से हुए परिसीमन के तहत ही चुनाव होगा। इसमें जम्मू में छह और कश्मीर में एक विधानसभा सीट समेत कुल सात विधानसभा सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएंगी। नए परिसीमन में जम्मू की विधानसभा सीटें 37 से बढ़कर 43 और कश्मीर की 46 से 47 हो जाएंगी।

यह पहली बार

पहली बार अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं, इनमें से छह सीटें जम्मू और तीन सीटें कश्मीर के लिए निर्धारित हैं। पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व करने की सिफारिश की गई है।

भाजपा को मिलेगा बदलाव का लाभ

परिसीमन व ‘नए वोटर्स के बढ़ने का फायदा भाजपा को मिल सकता है। पहले जम्मू-कश्मीर में कुल 87 विधानसभा सीटें थीं। इनमें मुस्लिम बहुल वाले कश्मीर में विधानसभा की 46 सीटें हैं। हिंदू बहुल इलाके जम्मू में 37 सीटें हैं। नए परिसीमन से जम्मू-कश्मीर की कुल 90 सीटों में से अब 43 जम्मू में और 47 कश्मीर में होंगी। राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 44 सीटें ही चाहिए। 2011 की जनगणना के अनुसार, कठुआ, सांबा और उधमपुर हिंदू बहुल हैं। कठुआ की हिंदू आबादी 87%, सांबा और उधमपुर की क्रमश: 86% और 88% है। किश्तवाड़, डोडा और राजौरी जिलों में भी हिंदुओं की आबादी 35 से 45% है। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।’

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