भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को पार्टी के नए संसदीय बोर्ड का एलान कर दिया। इसके साथ ही नई केंद्रीय चुनाव समिति का भी एलान हुआ। ये दोनों ही पार्टी के दो सबसे अहम संगठन हैं। अगस्त 2014 के बाद पहली बार इनमें बदलाव किया गया है। लंबे समय से इसकी चर्चा थी। दरअसल, दोनों संगठनों में कई सदस्यों की जगह खाली पड़ी थी।
नए बोर्ड में नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को जगह नहीं मिली। सबसे ज्यादा चर्चा इसी को लेकर हो रही है। वहीं, 76 साल के सत्यनारायण जटिया और 79 साल के बीएस येदियुरप्पा को बोर्ड में शामिल किया गया है। अगस्त 2014 में अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया था। तब ये कहा गया था कि तीनों को 75 साल से अधिक उम्र का होने के चलते बाहर किया गया है।
भाजपा के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में कितने सदस्य होते हैं? पिछली बार इनका गठन कब हुआ था? गडकरी और शिवराज के अलावा बाकी सदस्यों का क्या हुआ? नए बोर्ड में किन नामों के शामिल होने की चर्चा थी, जिन्हें जगह नहीं मिली? किन नामों ने सबको चौंकाया? आइये जानते हैं…
भाजपा के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में कितने सदस्य होते हैं?
भाजपा संसदीय बोर्ड में 11 सदस्य होते हैं। चुनाव समिति में कुल 19 सदस्य होते हैं। इनमें संसदीय बोर्ड के सभी 11 सदस्य शामिल होते हैं। इसके साथ ही पार्टी के संगठन महासचिव को भी आरएसएस के प्रतिनिधि के तौर पर इन दोनों में जगह मिलती है। हालांकि, बुधवार को घोषित चुनाव समिति में केवल 15 नामों का एलान किया गया है।
पिछली बार इनका गठन कब हुआ था?
2014 में लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए। इसके बाद नए अध्यक्ष ने अगस्त 2014 में नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का गठन किया था। उस वक्त संसदीय बोर्ड से पार्टी के तीन सबसे वरिष्ठ नेताओं की छुट्टी कर दी गई थी। इन नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी शामिल थे। तब पार्टी ने पहली बार मार्गदर्शक मंडल का गठन किया था। इस मार्गदर्शक मंडल में अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर के साथ नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह को शामिल किया गया था। इस बार इस समिति को लेकर कोई एलान नहीं किया गया।
2014 के संसदीय बोर्ड में क्या किसी नए चेहरे को जगह मिली थी?
2014 में अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर को संसदीय बोर्ड से बाहर किया गया था। इनकी जगह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उस वक्त पार्टी महासचिव जेपी नड्डा को बोर्ड में शामिल किया गया था। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की वजह से अमित शाह भी इस बोर्ड का पहली बार हिस्सा बने थे।
गडकरी और शिवराज के अलावा बाकी सदस्यों का क्या हुआ?
शिवराज, नड्डा और अमित शाह के अलावा नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार, थावरचंद गहलोत पहले की तरह बोर्ड का हिस्सा फिर से बनाए गए थे। वहीं, उस वक्त के संगठन महासचिव रामलाल भी संसदीय बोर्ड में शामिल थे। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और अनंत कुमार के निधन के कारण उनकी जगह लंबे समय से खाली पड़ी थी। वहीं, वेंकैया नायडू के उप राष्ट्रपति और थावरचंद गहलोत के राज्यपाल बनने के बाद उनकी जगहें भी बोर्ड में खाली थीं। 2019 में बीएल संतोष पार्टी के संगठन महासचिव बने। तब से वह संसदीय बोर्ड में शामिल हैं। इस तरह पिछले संसदीय बोर्ड में केवल सात सदस्य रह गए थे।
नए बोर्ड में किन से नामों के शामिल होने की चर्चा थी, जिन्हें जगह नहीं मिली?
नए संसदीय बोर्ड में शामिल होने वाले नामों को लेकर चर्चा कई दिनों से थी। इनमें निर्मला सीतारमण से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक की चर्चा थी। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तक के नाम रेस में बताए जा रहे थे। इसके साथ ही स्मृति ईरानी, भूपेंद्र यादव और धर्मेंद्र प्रधान को भी संसदीय बोर्ड में शामिल किए जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं। इनमें सिर्फ भूपेंद्र यादव को केंद्रीय चुनाव समिति में जगह दी गई है। बाकी सभी को दोनों में किसी में भी जगह नहीं मिली।
पुरानी चुनाव समिति के सदस्य शाहनवाज हुसैन, जोएल ओराम को भी नई समिति में जगह नहीं मिली है। इस समिति में संसदीय बोर्ड के सदस्यों के अलावा भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस और ओम माथुर भी चुनाव समिति के सदस्य बनाए गए हैं। साथ ही भाजपा की महिला मोर्चा अध्यक्ष वंथी श्रीनिवासनी भी इस समिति का हिस्सा हैं।
किन नामों ने सबको चौंकाया?

