–गुजरात दंगे, दंतेवाड़ा में 17 आदिवासियों की हत्या समेत ईडी मामले पर की टिप्पणी
—कानून मंत्री ने सिब्बल हो लगाई फटकार, वरिष्ठ अधिवक्ता भी हुए नाराज
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नई दिल्ली। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट पर बड़ी टिप्पणी कर दी। गुजरात दंगे, दंतेवाड़ा में 17 आदिवासियों की हत्या को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट से लेकर प्रवर्तन निदेशालय के शक्तियों के मामले में सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नजर नहीं आती। इस टिप्पणी पर बवाल मच गया है। बार काउंसिल ने इसे कोर्ट की अवमानना बताया, साथ ही यह भी कह दिया कि वे वकालत छोड़ दें। वहीं, कानून मंत्री ने भी पलटवार किया है।
राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर नाखुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा, इस संस्था में कोई उम्मीद नहीं बची। सिब्बल ने कहा कि अगर आप सोचते हैं कि आपको सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप गलत होंगे। इस बयान के बाद कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि यह पूरे देश के लिए बहुत दुखद है कि जब विपक्षी नेताओं के पक्ष में फैसला नहीं आता तो वे संवैधानिक प्राधिकारियों पर हमला करना शुरू कर देते हैं।
पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने शनिवार को यहां दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स द्वारा ‘नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक पर आयोजित एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल में बोलते हुए कोर्ट की आलोचना की। सिब्बल ने 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीन चिट को चुनौती देने वाली कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी द्वारा दायर याचिका को खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों को कायम रखना जो प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं और छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा 17 आदिवासियों की गैर-न्यायिक हत्याओं की कथित घटनाओं की स्वतंत्र जांच की मांग वाली 2009 में दायर याचिका को खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये सभी फैसले पारित किए थे, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सिब्बल जकिया जाफरी और पीएमएलए अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे। उन्होंने यह भी कहा कि ‘संवेदनशील मामले’ केवल चुनिंदा न्यायाधीशों को सौंपे जाते हैं और कानूनी बिरादरी आमतौर पर पहले से जानती है कि फैसले का परिणाम क्या होगा? उन्होंने शीर्ष अदालत में लंबित धर्म संसद मामले का भी उल्लेख करते हुए कहा कि अदालत ने मामले की सुनवाई की और सरकारों से जवाब मांगा। उन्होंने कहा कि आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया था और अगर गिरफ्तार भी किया गया था, तो उन्हें 1-2 दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया और फिर दो सप्ताह के अंतराल के बाद धर्म संसद की बैठकें जारी रखीं गईं।
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बार अध्यक्ष बोले- बयान कोर्ट की अवमानना
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदिश सी अग्रवाल ने कहा है कि उनका बयान कोर्ट की अवमानना है। उन्होंने कहा, कपिल सिब्ब्ल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे हैं। ऐसे में उनका बयान दुर्भाग्यपूर्ण और अवमाननापूर्ण है। डॉ. आदिश ने कहा, अगर अदालत ने विभिन्न मामलों में कपिल सिब्बल की पसंद का फैसला नहीं किया तो इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है।
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जेठमलानी ने भी कसा तंज
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी का भी बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, कपिल सिब्बल की टिप्पणी उन लोगों के छोटे समूह के लिए होगी, जो उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट उनके अनुसार निर्णय देगा। वह एक वरिष्ठ वकील हैं, मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने ऐसी टिप्पणी की। फैसलों की आलोचना की जा सकती है लेकिन संस्थानों को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।
क्या कहा था सिब्बल ने?
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कपिल सिब्बल ने कहा था कि अगर आपको लगता है कि आपको सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप बड़ी गलती कर रहे हैं। मैं यह 50 साल की प्रैक्टिस के बाद कह रहा हूं। उन्होंने कहा, कोर्ट भले ही किसी मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाए, लेकिन उसकी जमीनी हकीकत बमुश्किल ही बदलती है। उन्होंने कहा, 50 सालों के बाद मुझे लगता है कि संस्थान से मुझे कोई उम्मीद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट निजता पर फैसला देता और ईडी के अधिकारी आपके घर आते हैं, आपकी निजता कहां है?
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इधर, जल्द फैसला देने वाले जज सस्पेंड, लगाई गुहार
सुप्रीम कोर्ट बिहार के पॉक्सो जज की उस याचिका पर सुनवाई करेगी, जिसमें पटना हाई कोर्ट की ओर से उनके निलंबन को चुनौती दी गई है। अररिया के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (एडीजे) शशि कांत राय ने अपनी याचिका में चौंकाने वाला दावा किया है। उनका कहना है कि छह साल की बच्ची के बलात्कार से जुड़े मामले में उन्हें एक ही दिन में सुनवाई पूरी करने के लिए निलंबित कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील विकास सिंह ने अदालत से उस याचिका को नहीं हटाने की अपील की थी, जिसे न्यायमूर्ति यू.यू. ललित और न्यायमूर्ति एस.आर. भट की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा जाना था। वकील ने मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से कहा, एडीजे को निलंबित कर दिया गया है क्योंकि उन्होंने पॉस्को मामले में एक दिन में सुनवाई पूरी की, जहां आरोपी ने छह साल की लड़की से बलात्कार किया था। जस्टिस राय ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ संस्थागत पूर्वाग्रह के तहत कार्रवाई की गई। राय ने कहा कि उन्होंने एक अन्य मामले में एक आरोपी को चार दिन की सुनवाई में दोषी ठहराकर मौत की सजा सुनाई थी। उन्होंने दावा किया कि ये फैसले व्यापक रूप से खबरों में छाये रहे और उन्हें सरकार व जनता से सराहना मिली।

