नई दिल्ली। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद के बारे में विवादित बयान देने वालों को हल्का बताना उचित नहीं है, क्योंकि वे सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारी थे।उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि विभिन्न धर्म संसदों में अल्पसंख्यकों और मुस्लिमों के खिलाफ नफरती भाषण दिए जाने पर सरकार मौन रही। अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए साक्षात्कार में पूर्व उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी आकस्मिक नहीं, बल्कि बहुत अर्थपूर्ण थी। इसकी दो तरह से व्याख्या की जा सकती है। सबसे पहले, यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री भाजपा प्रवक्ता द्वारा कही गई बातों को अस्वीकार नहीं करते हैं या यह भी कहा जा सकता है कि जो कहा गया है, उसे वह स्वीकार करते हैं। अंसारी ने कहा कि अहम चीज यह है कि यह केवल एक बयान के बारे में नहीं है, पिछले कुछ महीनों के दौरान इस तरह के कई बयान दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्म संसदों में अल्पसंख्यकों और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए गए थे। लेकिन सरकार पूरी तरह से चुप थी। यदि कोई कार्रवाई हुई भी, तो बहुत देर हो चुकी थी।
नफरत फैलाने वाले बयानों पर चुप्पी तोड़ें पीएम मोदी : थरूर
नई दिल्ली। पैगंबर मोहम्मद के बारे में बीजेपी के दो पूर्व पदाधिकारियों की विवादित टिप्पणियों को लेकर पैदा हुए आक्रोश के बीच कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने अपनी राय रखी है। रविवार को उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में ‘घृणास्पद भाषण और इस्लामोफोबिया की घटनाओं के बढ़ने’ पर अपनी चुप्पी तोड़ें। थरूर ने कहा कि कुछ लोग मोदी की चुप्पी को, जो कुछ हो रहा है, उसके समर्थन के तौर पर देख रहे हैं।
थरूर ने कहा कि विडंबना यह है कि हाल के वर्षों में भारत सरकार ने इस्लामी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए जो प्रभावशाली कदम उठाए हैं, उनके कमजोर होने का खतरा पैदा हो गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने देश में ईशनिंदा कानूनों की आवश्यकता पर चल रही बहस की भी बात की और कहा कि वह ऐसे कानूनों को पसंद नहीं करते क्योंकि दूसरे देशों में इन कानूनों का इतिहास इसके दुरुपयोग के मामलों से भरा पड़ा है।
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