अरब देशों पर कितना निर्भर है भारत, जानिए खटास बढ़ी तो किसे होगा ज्यादा नुकसान?

भाजपा की प्रवक्ता रहीं नुपुर शर्मा के बयान को लेकर कई अरब देशों आपत्ति जताई है। अब तक जिन अरब देशों की आपत्ति आई है, उनमें कतर, सउदी अरब, ओमान, बहरीन, कुवैत, ईराक और यूएई शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच भारतीय जनता पार्टी ने नुपुर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन सभी देशों को यह साफ कर दिया है कि नुपुर शर्मा की तरफ से दिया गया बयान उनका व्यक्तिगत था, इसका भारत सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि संबंधित संस्थान आरोपी पर कार्रवाई भी कर रहे हैं।

इस बीच सवाल ये उठ रहा है कि क्या अरब देश भारतीय मामलों में दखल दे सकते हैं? अगर अरब देशों से भारत के रिश्ते बिगड़ते हैं तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान किसे उठाना पड़ेगा? आइए जानते हैं…

पहले जान लीजिए क्या है पूरा मामला?
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर शुक्रवार 27 मई को एक नेशनल टीवी चैनल पर डिबेट थी। इसमें भाजपा की तरफ से प्रवक्ता के तौर पर नुपुर शर्मा ने शिरकत की थी। इसी दौरान उन्होंने कुछ ऐसी टिप्पणी की जिसे लेकर विवाद हो रहा है। एक जून को महाराष्ट्र में नुपुर शर्मा पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मामले में पहला केस दर्ज हुआ। दो जून को महाराष्ट्र में ही दूसरा मामला दर्ज हुआ।

पांच जून को भाजपा महासचिव अरुण सिंह ने कहा, ‘पार्टी किसी भी संप्रदाय या धर्म का अपमान करने वाली किसी भी विचारधारा के खिलाफ है। पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धार्मिक व्यक्तित्व के अपमान की कड़ी निंदा करती है। भाजपा ऐसे लोगों या विचारों को बढ़ावा नहीं देती है।’ इसके चंद घंटे बाद नुपुर शर्मा को पार्टी के सभी पदों से हटाते हुए प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित कर दिया गया।
मामले में अरब देशों की एंट्री कैसे हो गई?
नुपुर के बयान का अरब देशों में विरोध जताया जाने लगा। कतर ने भारतीय राजदूत को तलब करके इस प्रकरण पर स्पष्टीकरण मांगा। कतर के बाद बहरीन, यूएई, सउदी अरब, ईराक, ओमान जैसे अरब देशों ने भी अपनी आपत्ति जता दी। इन अरब देशों में भारतीय उत्पाद के बायकॉट की खबरें भी आने लगीं।
अब जानिए अरब देशों से भारत के कैसे व्यापारिक रिश्ते हैं?

  1. कतर : नुपुर शर्मा के बयान पर सबसे पहले कतर ने ही आपत्ति जताई। आर्थिक संबंधों की बात करें तो 2021-22 में भारत ने कतर से 76.82 हजार करोड़ रुपये का आयात किया था। जबकि कतर को भारत ने 13.70 हजार करोड़ रुपये का निर्यात हुआ। इस तरह से दोनों देशों के बीच कुल 112.16 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ।

भारत में कतर से सबसे ज्यादा तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG), LPG, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स, प्लास्टिक तथा एल्युमीनियम निर्यात होता है, जबकि कतर को भारत की तरफ से अनाज, तांबा, लोहा और इस्पात, सब्जियां, प्लास्टिक उत्पाद, निर्माण सामग्री, वस्त्र और गारमेंट्स भेजे जाते हैं।

  1. बहरीन : यहां नुपुर के बयान का काफी विरोध हुआ। बहरीन से भारत ने 2021-22 में 7.49 हजार करोड़ रुपये का आयात किया, जबकि 5.23 हजार करोड़ रुपये का निर्यात। इस तरह से दोनों देशों के बीच 12.73 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ।
    दोनों देशों का इतिहास पांच हजार साल पुराना है।

भारत से हर साल काफी मात्रा में बहरीन खाद्य तेल, अकार्बनिक रसायन, कीमती धातुओं के कार्बनिक या अकार्बनिक यौगिक, अनाज, नट, फल तथा कपड़े खरीदता है। वहीं, बहरीन से भारत कच्चा तेल, खनिज ईंधन और बिटुमिनस पदार्थ, एल्यूमीनियम, उर्वरक, अयस्कों/एल्यूमीनियम की राख, लोहा, तांबा जैसे पदार्थ आयात करता है।

  1. साउदी अरब : सउदी उन टॉप-5 देशों में शुमार है, जहां से सबसे ज्यादा भारत आयात करता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2021-22 में भारत ने यहां से 254.67 हजार करोड़ रुपये का आयात किया, जबकि 65.31 हजार करोड़ रुपये का निर्यात किया। इस तरह से दोनों देशों के बीच कुल 319.98 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ।

सऊदी अरब वर्तमान में भारत को कच्चे तेल का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इराक पहले, अमेरिका दूसरे और नाइजीरिया तीसरे नंबर पर है। जबकि भारत से साउदी अरब को खाद्य पदार्थ भेजे जाते हैं।

  1. कुवैत : भारत से व्यापार के मामले में कुवैत 27वें नंबर पर है। कुवैत से भारत ने 2021-22 में कुल 82 हजार करोड़ रुपये का आयात किया था, जबकि केवल नौ हजार करोड़ रुपये का निर्यात किया था। दोनों देशों के बीच कुल 91 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ।

कुवैत भी भारत को काफी ज्यादा कच्चा तेल निर्यात करता है। यहां 40 से 45 लाख भारतीय काम करते हैं। कोरोना के समय कुवैत की सरकार ने एक्सपेट कोटा बिल लागू कर दिया था। जिसका उद्देश्य, कुवैत में विदेशी कामगारों की संख्या कम करनी थी। इसके चलते कई भारतीयों की नौकरी चली गई। हालांकि, बाद में भारत ने भी कुवैत पर तेल निर्भरता को थोड़ा कम किया है।

  1. यूएई : भारत से व्यापार के मामले में यूएई टॉप-100 की सूची में तीसरे स्थान पर है। यूएई और भारत के बीच 2021-22 में कुल पांच लाख 43 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था। इसमें तीन लाख 34 हजार करोड़ रुपये का भारत ने आयात किया तो दो लाख नौ हजार करोड़ रुपये का निर्यात।

यूएई भारत के सबसे बड़े तेल सप्लायरों में है। यूएई से भारत को जरुरत का 11 प्रतिशत ईंधन मिलता है। वहीं, भारत यूएई को खाद्यान्न उत्पादन निर्यात करता है।

  1. इराक : व्यापारिक रिश्तों की बात करें तो इराक भी भारत की टॉप-5 देशों में शुमार है। 2021-22 में इराक से कुल दो लाख 56 हजार करोड़ रुपये का व्यापार किया था। इसमें दो लाख 38 हजार करोड़ रुपये का आयात, जबकि महज 17 हजार करोड़ रुपये का निर्यात हुआ। भारत को सबसे ज्यादा ईंधन इराक से ही मिलता है। आंकड़े देखें तो भारत की जरूरत का 23 फीसदी ईंधन इराक से निर्यात करता है। वहीं, इराक को भारत से खाद्यान्न और खाद्यान्न तेल उपलब्ध कराया जाता है।
  2. ओमान : 31वां देश है, जिससे सबसे ज्यादा भारत का व्यापार होता है। दोनों देशों के बीच 2021-22 में कुल 74 हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था, जिसमें 23 हजार करोड़ रुपये का निर्यात और 51 हजार करोड़ रुपये का आयात हुआ था।

ओमान पर भी भारत ईंधन के लिए ही निर्भर है। ओमान से भारत को पेट्रोलियम गैस, कच्चा तेल मिलता है। वहीं, भारत की तरफ से ओमान को खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं।
खाड़ी देशों से रिश्ते बिगड़े तो किसे होगा ज्यादा नुकसान?
यही सवाल हमने आर्थिक मामलों के जानकार प्रो. अरविंद कुमार से पूछा। उन्होंने कहा, ‘अरब देशों पर भारत की सबसे ज्यादा निर्भरता कच्चे तेल और पेट्रोलियम गैस को लेकर है। भारत अब इस निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए भारत ने रूस और अमेरिका से मदद ले रहा है। हालांकि, मौजूदा समय अगर आंकड़ों को देखें तो ईंधन को लेकर भारत 70 प्रतिशत अरब देशों पर ही निर्भर है।’

प्रो. कुमार आगे कहते हैं, ‘निर्भरता से यह तो साफ है कि अगर अरब देशों से रिश्ते बिगड़े तो भारत में ईंधन का संकट उत्पन्न हो सकता है। इससे देश में महंगाई बढ़ जाएगी। हालांकि, ये एकतरफा नुकसान नहीं होगा। अरब देशों को भी खाद्यान्न, खाद्य तेलों और दवाइयों को लेकर नुकसान उठाना पड़ जाएगा। क्योंकि, ये अरब देश काफी हद तक इन चीजों के लिए भारत पर ही निर्भर हैं। दूसरा यह भी कि आर्थिक तौर पर भी अरब देशों को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। मतलब साफ है कि रिश्ते बिगड़ें तो दोनों पक्षों को समान रूप से नुकसान उठाना पड़ सकता है।’
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