सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आर्य समाज मंदिर की ओर से जारी होने वाले मैरिज सर्टिफिकेट को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। मामला नाबालिग से रेप और किडनैपिंग से जुड़ा हुआ था। इस दौरान आरोपी ने आर्य समाज मंदिर की ओर से जारी मैरिज सर्टिफिकेट दिखाते हुए जमानत देने की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया। दरअसल, मामला प्रेम विवाह का है. लड़की के घरवालों ने उसे नाबालिग बताते हुए लड़के पर रेप और किडनैपिंग का केस दर्ज करवाया था। इसी मामले में आरोपी लड़के ने मैरिज सर्टिफिकेट दिखाते हुए दावा किया कि लड़की बालिग है और दोनों की शादी हो चुकी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे ये कहते हुए मानने से इनकार कर दिया कि आर्य समाज का काम मैरिज सर्टिफिकेट जारी करना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में वैदिक रिति-रिवाज से शादी करवाई जाती है। इसके बाद मैरिज सर्टिफिकेट भी जारी किया जाता है। यहां शादी के दौरान वही परंपरा अपनाई जाती है, जो हिंदू धर्म में अपनाई जाती है। यहां होने वाली शादियों को आर्य समाज मैरिज वैलिडेशन एक्ट 1937 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत मान्यता मिली है। अगर दूल्हे की उम्र 21 साल या उससे ज्यादा है और दुल्हन की उम्र 18 साल या उससे ज्यादा है, तो आर्य समाज की ओर से मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जा सकता है। दो अलग-अलग जातियों और दो अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग भी आर्य समाज मंदिर में शादी कर सकते हैं, बशर्ते शादी करने वालों में से कोई एक मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आर्य समाज की मैरिज सर्टिफिकेट को मान्यता नहीं
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