महिंदा राजपक्षे : युद्ध के नायक से कैसे बने खलनायक? श्रीलंका में राजपक्षे साम्राज्य के विनाश की कहानी

कोलंबो: श्रीलंका के आर्थिक संकट ने देश की दो करोड़ से ज्यादा लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। लोगों के पास पैसे तो हैं, लेकिन खरीदने के लिए पेट्रोल, डीजल, दवाईयां और गैस नहीं है। दूसरा, देश में जारी हिंसा के कारण न सिर्फ सरकारी बल्कि आम लोगों की संपत्तियों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। जिन राजपक्षे भाइयों को श्रीलंका में गृहयुद्ध खत्म करने के कारण लोग हीरो की तरह मानते थे, वे अब खलनायक बने हुए हैं। हालात इतने गंभीर हैं कि गुस्साई भीड़ ने प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के आवास को जला दिया था। विरोध प्रदर्शन और हिंसा की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए महिंदा राजपक्षे ने तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उन्हीं के भाई गोटबाया राजपक्षे अब भी राष्ट्रपति की कुर्सी पर जमे हुए हैं। ऐसे में जानिए कि कैसे कभी श्रीलंका को गृहयुद्ध की आग से निकालने वाला नायक आज खलनायक बन गया।

राजपक्षे बंधुओं पर श्रीलंका को संकट में फंसाने का आरोप
अप्रैल की शुरुआत से ही प्रदर्शनकारी आरोप लगा रहे थे कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा ने देश को आर्थिक बर्बादी की ओर लेकर जा रहे हैं। उन्होंने राजधानी कोलंबो सहित पूरे देश में राजपक्षे बंधुओं के इस्तीफे की मांग को लेकर लंबा विरोध प्रदर्शन भी किया, लेकिन सत्ता पर आसीन इन दोनों भाइयों ने बंदूक के दम पर प्रदर्शनों को कुचलने की कोशिश की। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में आपातकाल का ऐलान कर लोगों की आवाज को दबाने का काम किया। इससे हिंसा और ज्यादा भड़की और इस हफ्ते तो यह चरम पर पहुंच गई।
महिंदा राजपक्षे को इसलिए देना पड़ा इस्तीफा
इसके जवाब में महिंदा राजपक्षे के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच कई शहरों में झड़प की भी खबरें आईं। पिछले हफ्ते जब प्रदर्शनकारियों भीड़ महिंदा राजपक्षे के घर के बाहर जमा हुई तो उनके समर्थकों ने हमला कर दिया। इस हमले में कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए, जिस कारण उग्र भीड़ ने उनके घर को आग लगा दी। दावा किया जाता है कि उस समय महिंदा राजपक्षे इसी घर में मौजूद थे, लेकिन आग लगाने की घटना के तुरंत पहले उनके सुरक्षा गार्ड दूसरे रास्ते से लेकर बाहर निकलने में कामयाब हो गए थे। इसकी प्रतिक्रिया में महिंदा राजपक्षे की पार्टी के कई नेताओं के घरों पर हमले किए गए। ऐसे में दबाव इतना बढ़ा कि महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा।

नौसैनिक अड्डे पर छिपे हैं महिंदा राजपक्षे
बताया जा रहा है कि 76 साल के महिंदा राजपक्षे अपनी सुरक्षा के लिए श्रीलंका के उत्तर-पूर्व में एक नौसैनिक अड्डे में छिपे हुए हैं। कोलंबो की एक स्थानीय अदालत ने तो महिंदा राजपक्षे के देश छोड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में देश के पूर्व प्रधानमंत्री दो बार राष्ट्रपति रह चुके महिंदा राजपक्षे के लिए यह एक अपमानजनक बात लगती है। महिंदा के इस्तीफा से उनके छोटे भाई 72 साल के गोटबाया राजपक्षे पर भी इस्तीफे का दबाव लगातार बढ़ रहा है। विपक्षी पार्टियों ने तो ऐलान किया है कि वे जल्द ही राष्ट्रपति गोटबाया के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली हैं।
महिंदा की तुलना तुलना सिंहल बौद्ध राजाओं से की जाती थी
महिंदा राजपक्षे को देश की बहुसंख्यक सिंहली आबादी का नेता माना जाता है। श्रीलंका में लगभग तीन दशकों के गृहयुद्ध को समाप्त करने के लिए उन्हें वॉर हीरो के तौर पर देखा जाता है। उन्होंने ही 2009 में राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान तमिल टाइगर विद्रोहियों को कुचल दिया था। हालांकि, उनके ऊपर नरसंहार करने का आरोप भी लगा, लेकिन सत्ता पर काबिज महिंदा ने इसे नकार कर उत्तरी श्रीलंका में सैन्य अभियान को जारी रखा। इस जीत के तुरंत बाद विक्टरी परेड और सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी तुलना सिंहल बौद्ध राजाओं से की गई थी।

‘सम्राट महिंदा’ के नाम से जाने जाते थे महिंदा राजपक्षे
बीबीसी ने वयोवृद्ध राजनीतिक विश्लेषक कुसल परेरा के हवाले से बताया कि महिंदा राजपक्षे स्वतंत्रता के बाद श्रीलंका में वे सबसे लोकप्रिय सिंहली बौद्ध नेता थे। कुछ ने तो उन्हें सम्राट महिंदा भी कहा था। अपनी 2017 की किताब राजपक्षे: द सिंहल सेल्फी में परेरा ने श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार की भूमिका और महिंदा राजपक्षे की राजनीतिक यात्रा का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि महिंदा राजपक्षे एक सांसद थे, जो 2004 में सदन में विपक्ष के नेता से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।
गोटबाया को लिट्टे को खत्म करने के लिए अमेरिका से बुलाया
एक साल बाद जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने गोटाबाया को रक्षा मंत्री बनाया। श्रीलंकाई सेना से रिटायर होने के बाद अमेरिका में शांत जीवन व्यतीत कर रहे उनके छोटे भाई गोटबाया राजपक्षे के लिए यह करियर की बड़ी छलांग थी। गोटाबाया अपने भाई के लिट्टे को खत्म करने वाले अभियान के लिए अमेरिका से वापस लौटे और एक क्रूर-निर्मम अधिकारी के रूप में ‘द टर्मिनेटर’ के नाम से ख्याति अर्जित की। इसके बाद जल्द ही महिंदा के अन्य भाई और रिश्तेदार भी सरकार में शामिल हो गए। ऐसा कर महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका में राजपक्षे साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दोनों भाइयों के बीच आई दरार
अभी तक की राजनीति में दोनों भाई एक साथ खड़े रहे। लेकिन, चंद दिनों पहले दोनों भाइयों के रिश्ते में दरार देखने को मिली। दरअसल, देश में बढ़ते राजनीतिक संकट को खत्म करने के लिए गोटबाया राजपक्षे ने अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देने को कहा था। जो व्यक्ति अपने छोटे भाई को राजनीति में लाया और उसे एक रिटायर सैन्य अधिकारी से देश का पहला नागरिक बनवाया, उसके लिए यह मांग बहुत बड़ी थी। यह एक तरह से महिंदा राजपक्षे का राजनीतिक करियर खत्म करने की मांग थी। हालांकि महिंदा के बड़े बेटे नमल ने इस बात से इनकार किया है कि भाइयों में कोई समस्या है।
सिंहली जनता भी महिंदा के खिलाफ एकजुट
गंभीर मानवाधिकारों के हनन, अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार और मीडिया पर जानलेवा हमलों के आरोपों के बावजूद, राजपक्षे सिंहली जनता के बीच वर्षों से बेहद लोकप्रिय थे। लेकिन, अब देश के गंभीर आर्थिक हालात ने उन्हें एक खलनायक बना दिया है। सिंहली आबादी में से अधिकतर का मानना है कि देश को गर्त में ढकेलने में सबसे बड़ा हाथ महिंदा राजपक्षे का है। श्रीलंका में लोग जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और इसी संघर्ष ने जातीय समुदायों को एकजुट कर दिया है। अब सिंहली प्रदर्शनकारी अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए समर्थन की आवाज भी उठा रहे हैं।

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