श्रीलंका में बिगड़ते हालातों के बीच भारत ने नहीं भेजी सेना

बोला भारतीय उच्चायोग, श्रीलंका में लोकतंत्र का पूरी तरह से समर्थक है भारत

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली।

श्रीलंका में जारी गंभीर आर्थिक संकट की वजह से दिनों दिन बद से बदतर होते जा रहे हालातों के बीच भारत ने मदद के लिए सेना नहीं भेजी है। कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने बुधवार को इसे लेकर मीडिया में आ रही तमाम खबरों का पुरजोर अंदाज में खंडन करते हुए कहा है कि ये खबरें और इस तरह के विचार भारत सरकार के रुख से मेल नहीं खाते हैं। श्रीलंका के मौजूदा चुनौतीपूर्ण हालातों के बीच भारत का आधिकारिक रुख यही है कि हम श्रीलंका में लोकतंत्र, स्थिरता और आर्थिक सुधारों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं। साथ ही भारत लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से श्रीलंका की जनता के सर्वोत्तम हितों को देखते हुए प्रयास करेगा। बीते मंगलवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान जारी कर भारत के पक्ष को पूरी तरह से साफ कर दिया है।

परिवार सहित भारत नहीं आए राजपक्षे

गौरतलब है कि भारतीय उच्चायोग का यह बयान उसके द्वारा पिछले 10 मई को स्थानीय सोशल मीडिया में जारी श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के परिवार सहित भारत भागने की खबरों को सिरे से खारिज करने के ठीक अगले दिन सामने आया है। राजपक्षे ने इसी सप्ताह सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और टेंपल ट्री स्थित अपने आधिकारिक कार्यालय व आवास से भागकर त्रिंकोमाली में एक नौसैन्य अड्डे में शरण ले ली थी। प्रदर्शनकारियों ने इस नौसैन्य अड्डे को भी घेर लिया है।

श्रीलंका को मदद के लिए तैयार भारत

भारत ने पड़ोस सबसे पहले (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति को ध्यान में रखते हुए श्रीलंका के लोगों की परेशानियों को दूर करने के लिए मदद के रूप में इस साल 3.5 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है। इसके अलावा उसकी तरफ से श्रीलंका के लोगों के लिए भोजन, दवा और अन्य जरूरी चीजों की कमी को दूर करने के लिए मदद दी गई है। श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। वहां लगातार सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। जिसे लेकर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पूरे देश में कर्फ्यू लगाकर सेना को तैनात कर दिया है।

कई देशों ने बंद किए अपने दूतावास

श्रीलंका में जारी तनावपूर्ण हालातों की वजह से कई देशों ने अस्थायी तौर पर अपने दूतावास बंद कर दिए हैं। जिसमें ओस्लो, नॉर्वे, बगदाद और इराक जैसे देश शामिल हैं। जबकि आर्थिक तंगी की वजह से श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में अपने महावाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया है। लेकिन भारत की तरफ से अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है। भारत श्रीलंका के हालात पर कड़ी नजर बनाए हुए है और आम श्रीलंकाई नागरिकों को राहत प्रदान करने के लिए उनके संपर्क में बना हुआ है। श्रीलंका में भारत के विदेश मंत्रालय के तहत आने वाले तीन कार्यालयों के जरिए कामकाज किया जाता है। इसमें कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग, कैंडी स्थित भारत का सहायक उच्चायोग, जाफना में भारत का जनरल वाणिज्य दूतावास और हंबनटोटा स्थित जनरल वाणिज्य दूतावास शामिल है।

1987 में भारत ने श्रीलंका भेजी थी शांति सेना

यहां बता दें कि भारत वर्ष 1987 में जाफना को लिट्टे के उग्रवादियों के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए अपनी शांति सेना को श्रीलंका भेज चुका है। इस दौरान चलाए गए सैन्य अभियान को ऑपरेशन पवन का नाम दिया गया था। करीब दो सप्ताह तक चली भीषण लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने जाफना और श्रीलंका के कुछ अन्य इलाकों को लिट्टे के प्रभाव से मुक्त कर दिया था। इस अभियान को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच 29 जुलाई 1987 को एक शांति समझौता हुआ था। जिस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जे.आर.जयवर्धने ने हस्ताक्षर किए थे। भारत की सेना अपने मिशन को पूरा करने के बाद वापस लौट आई थी।

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