नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर वह अपने विचारों से अवगत कराए। प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की उन दलीलों पर गौर किया जिनमें कहा गया है कि उसने एक उपयुक्त मंच द्वारा राजद्रोह कानून की पुन: जांच और पुनर्विचार कराने का फैसला किया है। पीठ ने इस सुझाव पर भी केंद्र से प्रतिक्रिया देने को कहा कि क्या पुनर्विचार होने तक भविष्य में राजद्रोह के मामलों के दाखिल करने पर अस्थायी रोक लगाई जाए। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस संबंध में सरकार से निर्देश लेंगे और बुधवार को इससे पीठ को अवगत कराएंगे। पीठ ने कहा, हम इसे काफी स्पष्ट कर रहे हैं। हम निर्देश चाहते हैं। हम आपको कल तक का समय देंगे। हमारे विशिष्ट सवाल हैं: पहला लंबित मामलों के बारे में और दूसरा, यह कि सरकार भविष्य के मामलों पर कैसे गौर करेगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय में दायर एक हलफनामे में कहा कि उसका निर्णय औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों के अनुरूप है और वह नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं। हलफनामे में कहा गया है कि इसी भावना से 1,500 से अधिक अप्रचलित हो चुके कानूनों को समाप्त कर दिया गया है। सर्वोच्च अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
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सुप्रीम कोर्ट की केंद्र पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आप जब तक कानून पर दोबारा विचार कर रहे हैं, तब तक आप क्यों नहीं राज्यों को निर्देश देते हैं कि इस मामले में फिलहाल केस दर्ज न हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि आप राज्यों को यह क्यों नहीं कहते है कि इस कानून को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि केंद्र इस कानून पर दोबारा विचार कर रही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केदारनाथ जजमेंट में कानून को हल्का कर दिया गया है लेकिन फिर भी स्थानीय लेवल पर पुलिस कानून का इस्तेमाल कर रही है और यह तब तक होगा जब तक कि आपका कोई निर्देश नहीं होगा।
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सरकार ने दिया था हलफनामा
सरकार ने चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ में दाखिल हलफनामे के अनुसार कहा था कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है, जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है। हलफनामे में कहा गया इसके मद्देनजर, बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर आईपीसी की धारा 124 ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए।
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याचिका में क्या है दलील
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर मेजर जनरल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए (राजद्रोह) कानून में जो प्रावधान और परिभाषा दी गई है वह स्पष्ट नहीं है। इसके प्रावधान संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। इसके तहत अनुच्छेद-19 (1)(ए) में विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। साथ ही अनुच्छेद-19 (2) में वाजिब रोक की बात है। लेकिन राजद्रोह में जो प्रावधान है वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
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