इस बार दिव्यांग वोटरों ने की बढ़ चढ़कर वोटिंग

मौजूदा लोकतंत्र के पर्व में 88.4 लाख दिव्यांग मतदाताओँ ने की शिरकत

  • वायएलएसी, निपमैन फाउंडेशन के रिसर्च में खुलासा, हर 10 दिव्यांग में से थीं 4 महिला वोटर

(फोटो : दिव्यांग)

नई दिल्ली। देश में हुए लोकसभा चुनाव के मंगलवार को नतीजे आ रहे हैं। इस चुनाव में एक रोचक बात देखने में आई है। इस चुनाव का एक दिलचस्प पहलू यह है कि अब इस देश का दिव्यांग समाज काफी जागरूक हो चुका है। असल में यंग लीडर्स फॉर एक्टिव सिटीजनशिप (वायएलएसी) और निपमैन फाउंडेशन ने एक रिसर्च की है, उसमें बतया गया है कि इस बार दिव्यांग वोटरों ने काफी बढ़ चढ़कर वोटिंग की है। उनकी तरफ से काफी सक्रिय रूप से इस लोकतंत्र के पर्व में भूमिका निभाई गई है। उनका आंकड़ा कहता है कि 88.4 लाख मतदाता इस बार दिव्यांग थे। ये आंकड़ा ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए बन जाता है क्योंकि यह सिंगापुर की कुल आबादी से 1.45 गुना ज्यादा है। एक आंकड़ा ये भी है कि हर 10 दिव्यांग वोटर में से 4 दिव्यांग तो महिला थीं, यानी कि आधी आबादी यहां भी बाजी मारती दिख रही है।

दिव्यांग समाज के लिए अलग मेनिफेस्टो

अब चुनाव आयोग ने अपने स्तर पर ऐसे वोटरों के लिए कुछ सुविधाएं जरूर दी हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो घर से मतदान करने का अधिकार है। लेकिन फिर भी उनकी असल स्थिति को नहीं समझा जा सकता क्योंकि चुनाव आयोग ही अलग से उनका कोई डेटा जारी नहीं करता है। हैरानी की बात ये है कि इस देश में अभी भी दिव्यांग वोटरों का कोई खास प्रतिनिधित्व नहीं दिख रहा है। कोई भी पार्टी इस दिव्यांग समाज के लिए अलग मेनिफेस्टो तक जारी नहीं करती है, महिलाओं पर ध्यान रहता है, युवाओं को फोकस में रखा जाता है, किसानों को ध्यान में रखकर ऐलान किए जाते हैं, लेकिन इन दिव्यांग लोगों को हर पार्टी भूल जाती है।

सीपीआईएम का साइन लैंग्वेज में घोषणा पत्र

अगर आगामी चुनाव की ही बात करें तो सिर्फ पैरालंपिक वर्ल्ड चैपियन देवेंद्र झझरिया राजस्थान के चुरू से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन उनके अलावा कोई दूसरा दिव्यांग चुनावी मैदान में खड़ा नहीं दिख रहा है। इस समय सिर्फ सीपीआईएम एक ऐसी पार्टी है जो कम से कम अपने घोषणा पत्र को साइन लैंग्वेज में भी जारी करती है, उस वजह से दिव्यांग समाज तक उनके वादे पहुंच पाते हैं। लेकिन दूसरे दलों ने अभी तक इस तरह की कोई जहमत नहीं की है। मांग ये उठ रही है कि दिव्यांग समाज को भी सियासी परिपेक्ष में पूरी महत्वता दी जानी चाहिए, उनकी जरूरतों को ध्यान में रखकर भी कुछ ऐलान किए जाने चाहिए।

वोटर टर्नआउट का डेटा

जानकार कहते हैं, अभी के लिए जो कदम उठाए गए हैं, उन्हें सिर्फ एक शुरुआत माना जा रहा है, असल उदेश्यों तक पहुंचने के लिए कई और बड़े कदमों की जरूरत है। इस बारे में वायएलएसी के को फाउंडर रोहित कुमार कहते हैं कि दिव्यांग लोगों का अभी ना राजनीतिक प्रतिनिधित्व और ना ही वोटर टर्नआउट को लेकर पर्याप्ट डेटा मौजूद नहीं है। एक नागरिक के तौर पर जरूर चुनाव आयोग के कुछ फैसलों का स्वागत किया जाएगा, लेकिन इस समाज की असल समस्याओं को समझने के लिए और ज्यादा डेटा की जरूरत पड़ने वाली है। इस बात पर सहमति जताते हुए निपम फाउंडेशन के फाउंडर निपुन मल्होत्रा कहते हैं कि सही दिशा में कदम जरूर उठाए गए हैं, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है। उनके मुताबिक 2011 की मतगणना को आधार माना जाए तो अभी भी दिव्यांग समाज का एक बड़ा वर्ग देश का वोटर नहीं बन पाया है, उसे अभी तक रेजिस्टर नहीं किया गया है, ऐसे में इस डिपार्टमेंट में काफी सुधार की गुंजाइश है।

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