-90 के चुनाव का है वाकया… लगाए गए थे ‘शेषन से बचाओ’ के नारे
-शेषन की आत्मकथा का नाम है ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लास’
(फोटो : टीएन शेषन)
नई दिल्ली। आज विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में चुनाव आयोग (चुनाव आयोग) व अन्य संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा का हनन हो रहा है। इस लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा है और आम आदमी पार्टी लगातार ईडी के खिलाफ सड़कों पर उतरी हुई है। जब बीजेपी विपक्ष में थी तो वह भी ऐसे ही आरोप लगाती रही थी। बीजेपी नेताओं ने ‘चुनाव आयोग को शेषन से बचाओ’ जैसे नारे भी लगाए थे। अक्तूबर, 1990 की बात है। कांग्रेस पार्टी के नेता अर्जुन सिंह ने चुनाव आयोग में एक अर्जी दाखिल की थी। इसमें मांग की गई थी कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का ‘कमल’ निशान रद्द किया जाए। 12 दिसंबर, 1990 को टीएन शेषन चुनाव आयुक्त बने। यह मामला उनके सामने आया। चुनाव चिह्न को लेकर विवाद का यह पहला मामला था जिसका निपटारा शेषन को करना था।
अर्जुन सिंह का तर्क
अर्जुन सिंह का तर्क था कि बीजेपी ने अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए अभियान चलाया था। यह धर्म से जुड़ा मसला था। लिहाजा पार्टी धर्मनिरपेक्ष नहीं रह गई थी। इसलिए बीजेपी का रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग रद कर दे और ‘कमल’ निशान भी जब्त कर ले। 24 दिसंबर को शेषन ने मामले की पहली सुनवाई की। बीजेपी ने समय मांग लिया। दो हफ्ते बाद फिर सुनवाई हुई। बीजेपी ने चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। यह तर्क देकर कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने अर्जुन सिंंह की याचिका पर उसे तलब कर लिया, लेकिन एक साल पहले उसकी एक ऐसी ही याचिका पर सुनवाई तक से इनकार कर दिया था। बीजेपी ने चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया। हालांकि, दोनों मामले अलग-अलग थे।
शेषन का फैसला और पक्षपात का आरोप
मामले की सुनवाई चलती रही। अंतत: 12 अप्रैल को टी.एन. शेषन ने अपना फैसला दिया। फैसला अर्जुन सिंंह के पक्ष में गया। बीजेपी भड़क गई। शेषन पर सीधे तौर पर पक्षपात और कांग्रेस से मिलीभगत के आरोप लगाए। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व अन्य भाजपा नेताओं ने 15 अप्रैल को शेषन के फैसले के खिलाफ रैली की और गिरफ्तारी दी। उन्होंने ‘चुनाव आयोग को शेषन से बचाओ’ जैसे नारे लगाए।
राजनीतिक दलों की सहमति
लोकसभा चुनाव करीब था। बीजेपी दूसरे चुनाव चिह्न पर लड़ने की सोच रही थी। इसी बीच, 16 अप्रैल को सभी राजनीतिक दलों की सहमति के आधार पर तय हुआ कि चुनाव चिह्न से जुड़े सभी विवाद आम चुनाव तक लंबित रख दिए जाएं। इस तरह बीजेपी को ‘कमल’ निशान का विकल्प तलाशने की जरूरत नहीं पड़ी और पार्टी ने ‘कमल’ निशान पर ही चुनाव लड़ा। टी.एन. शेषन ने रूपा प्रकाशन से प्रकाशित आत्मकथा ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लास’ में यह वाकया बयां किया है। शेषन के निधन के बाद यह किताब लोगों के सामने आई थी। शेषन 2019 में दिवंगत हो गए थे।
0000

