आरोपी को जेल में रखने बार-बार चार्जशीट नहीं फाइल कर सकते

–बिना सुनवाई ईडी की हिरासत में आरोपी को लेकर सुप्रीम कोर्ट खफा


खास बातें

00 18 महीने से हिरासत में आरोपी, शीर्ष न्यायालय से लगाई गुहार

00 कोर्ट ने कहा- बार-बार पूरक आरोप पत्र से ट्रायल में हो रही देरी

इंट्रो

सुप्रीम कोर्ट ने किसी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इंकार करने और ऐसे व्यक्तियों को अनिश्चितकाल तक जेल में रखने के लिए चार्जशीट दाखिल करने पर प्रवर्तन निदेशालय से सवाल किया है। कोर्ट ने कहा कि आप बार-बार चार्जशीट फाइल नहीं कर सकते हैं और फिर शख्स को बिना ट्रायल के जेल में रहने पर मजबूर होना पड़े।

नई दिल्ली। आरोपी के स्वत: जमानत पाने के अधिकार को खत्म करने के लिए धन शोधन मामलों में पूरक आरोपपत्र दाखिल करने के प्रवर्तन निदेशालय के प्रयासों की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि किसी आरोपी को बिना मुकदमे के हिरासत में रखना कैद के समान है जो स्वतंत्रता में बाधक है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने झारखंड में कथित अवैध खनन से उत्पन्न धन शोधन मामले में ईडी द्वारा चार पूरक आरोपपत्र दाखिल करने पर आपत्ति जताई। इनमें से नवीनतम पूरक आरोपपत्र एक मार्च 2024 को दाखिल किया गया। शीर्ष अदालत झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश की स्वत: (डिफॉल्ट) जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। प्रकाश को अगस्त, 2022 में छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया गया था। एजेंसी द्वारा दावा किया गया था कि रांची में उनके घर पर दो एके-47 राइफलें, 60 कारतूस और दो मैगजीन मिली थीं। उन पर धनशोधन व शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। पीठ ने ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा कि चार पूरक आरोपपत्र दाखिल होने के बावजूद मामले में जांच अभी जारी है। पीठ ने राजू से कहा, हम आपको (ईडी को) नोटिस दे रहे हैं। (कानून के तहत) मामले की जांच पूरी हुए बिना आप किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकते। मुकदमा शुरू हुए बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जा सकता। यह कैद के समान है और एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। कुछ मामलों में हमें इस मुद्दे को सुलझाना होगा।

कोर्ट ने कहा-जमानत से नहीं कर सकते वंचित

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि किसी आरोपी को पूरक आरोपपत्र दायर करके स्वत: जमानत के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता 18 महीने से सलाखों के पीछे है और एक के बाद एक पूरक आरोपपत्र दाखिल किए जा रहे हैं, जिससे अंततः मुकदमे में देरी हो रही है।

एएसजी ने जवाब देने मांगा एक माह

पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कई सवाल पूछे जिन्होंने सवालों का जवाब देने के लिए एक महीने का समय मांगा और कहा कि आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति है और अगर उसे जमानत पर रिहा किया गया तो वह गवाहों को प्रभावित कर सकता है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। शीर्ष अदालत ने राजू को एक महीने के भीतर पीठ द्वारा पूछे गए सभी सवालों का जवाब देने को कहा और मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल के लिए तय की।

क्या है मामला

कोर्ट ने यह टिप्पणी झारखंड के अवैध खनन मामले से जुड़े एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। आरोपी प्रेम प्रकाश-पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कथित सहयोगी है, जिसे पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी ने गिरफ्तार किया था। प्रकाश को पिछले साल जनवरी में झारखंड उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने 18 महीने जेल में बिताए हैं और इस वजह से यह जमानत का स्पष्ट मामला है।

इधर, सीईसी नियुक्ति पर जरूरी नहीं जज

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर केंद्रीय मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 पर अपना पक्ष स्पष्ट किया है। केंद्र सरकार ने कहा- यह दलील गलत है कि आयोग तभी स्वतंत्र होगा, जब चयन समिति में जज हों। चुनाव आयुक्तों की योग्यता पर सवाल नहीं है। इस याचिका का मकसद सिर्फ राजनीतिक विवाद को खड़ा करना है। नियुक्ति के लिए बनाए गए नए कानून पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने कहा, कानून के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज की जाए। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े कानून पर अपना रूख स्पष्ट करते हुए दायर हलफनामे में केंद्र सरकार ने कानूनों पर रोक लगाने की मांग करने वाले आवेदनों का विरोध किया। सरकार ने कहा कि चुनाव आयोग, या किसी अन्य संगठन या प्राधिकरण की स्वतंत्रता, केवल चयन समिति में न्यायिक सदस्य की उपस्थिति से सुनिश्चित नहीं की जा सकती। सरकार के मुताबिक पारदर्शिता के लिए पैनल में मौजूद न्यायिक सदस्य जिम्मेदार नहीं है।

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