सुप्रीम कोर्ट : यूक्रेन जंग और कोरोना के कारण वतन लौटे मेडिकल छात्रों के लिए दो माह में योजना बनाए एनएमसी

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना और यूक्रेन संकट से प्रभावित विदेशी विश्वविद्यालयों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को बड़ी राहत दी। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को शुक्रवार को निर्देश दिया कि वह दो महीने के अंदर ऐसी योजना बनाए, जिसमें ऐसे विद्यार्थियों को भारत में ही मेडिकल इंटर्नशिप पूरी करवाने की अनुमति दी जाए।



जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने आयोग से कहा कि विदेशी संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की सेवाओं का उपयोग देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। आयोग के वकील विकास सिंह ने कहा कि कोरोना महामारी और यूक्रेन संकट ने नई चुनौतियों को जन्म दिया है। ऐसे में समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाएगा कि विदेशों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के हितों की रक्षा कैसे की जाए। साथ ही उनसे अपेक्षित चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता भी नहीं किया जाना चाहिए।

आयोग की याचिका पर शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले से असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि चीन में तीन महीने के क्लीनिकल प्रशिक्षण के बजाय दो महीने का प्रशिक्षण अस्थायी पंजीकरण के लिए पर्याप्त होगा। पीठ ने कहा, कोर्ट अकादमिक पाठ्यक्रम या क्लीनिकल प्रशिक्षण की आवश्यकता तय करने में विशेषज्ञ नहीं है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पूजा थंडू नरेश और अन्य को अस्थायी प्रमाण-पत्र नहीं देने के आयोग के फैसले को मनमाना नहीं कहा जा सकता। पीठ ने कहा कि प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के बिना कोई डॉक्टर नहीं हो सकता, जिससे देश के नागरिकों की देखभाल की उम्मीद की जाती है।


इंटर्नशिप पूरा न करने वालों को मौका देने को बाध्य नहीं
पीठ ने माना कि आयोग उस छात्र को अस्थायी पंजीकरण देने के लिए बाध्य नहीं है, जिसने क्लीनिकल प्रशिक्षण सहित विदेशी संस्थान से पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या विदेशी संस्थान द्वारा दी गई डिग्री आयोग पर बाध्यकारी है और छात्र को अस्थायी रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए?


विदेशों में छात्रों को आकृष्ट करने वाले पाठ्यक्रम बनाए जाते हैं
पीठ ने कहा कि एक छात्र स्नातक चिकित्सा शिक्षा विनियम, 1997 के अनुसार न्यूनतम शर्त को पूरा करता है लेकिन पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद उम्मीदवार को स्क्रीनिंग टेस्ट उत्तीर्ण करना होगा, बशर्ते कि विदेश के एक ही संस्थान में कोर्स पूरा किया गया हो। पीठ ने कहा कि विदेशों में पाठ्यक्रम छात्रों को आकर्षित करने के उद्देश्य से डिजाइन किए गए हैं, जो एक मायने में भारतीय नागरिकों के हितों और यहां के स्वास्थ्य ढांचे के साथ समझौते की तरह है।

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