लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन बाद निकायों के लिए मतदान

–एक देश-एक चुनाव : कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट

खास बातें–

18000 से ज्यादा पृष्ठों की रिपोर्ट

191 दिनों में तक किया गया शोध

47 राजनीतिक दलों ने सौंपी राय

इंट्रो

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी। रिपोर्ट में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की गई है। यह रिपोर्ट 47 राजनीतिक दलों की राय पर तैयार की गई है। इसमें 32 पक्ष और 15 विरोध में हैं।

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18000 से ज्यादा पृष्ठों की रिपोर्ट में कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने कहा कि एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी। इंडिया जो कि भारत है, की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति ने कहा कि लोकसभा के लिए जब नए चुनाव होते हैं, तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा। उसने कहा कि जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नयी विधानसभाओं का कार्यकाल -अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं- लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा। समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी। समिति ने कहा, इस संवैधानिक संशोधन की राज्यों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता नहीं होगी। उसने यह भी सिफारिश की कि भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करे। समिति ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है। कोविंद ने जब राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति मूर्मू को रिपोर्ट सौंपी, उस वक्त उनके साथ समिति के सदस्य गृह मंत्री अमित शाह, वित्त आयोग के पूर्व प्रमुख एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद और विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी थे।

हर साल कई चुनाव से बड़ा बोझ

फिलहाल, भारत निर्वाचन आयोग पर लोकसभा और विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी है, जबकि नगर निकायों और पंचायत चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोगों पर है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अब, हर साल कई चुनाव हो रहे हैं। इससे सरकार, व्यवसायों, कामगारों, अदालतों, राजनीतिक दलों, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और बड़े पैमाने पर नागरिक संगठनों पर भारी बोझ पड़ता है। इसमें कहा गया है कि सरकार को एक साथ चुनाव प्रणाली लागू करने के लिए कानूनी रूप से व्यवहार्य तंत्र विकसित करना चाहिए।

तीन प्रमुख सलाह

00 लोकसभा और विधान सभाओं चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं में चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 324ए की शुरुआत की जाए

00 एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र को सक्षम करने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन किया जाए

00 सूची और पहचान पत्र में संशोधन का काम राज्य चुनाव आयोग की सलाह पर भारत का चुनाव आयोग करे

क्या होगा फायदा

00 हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी

00 देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं, बार-बार चुनाव से छुटकारा

00 कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी

इधर, विरोध के स्वर

15 सियासी दल, 3 रिटायर्ड चीफ जस्टिस, एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त

देश में एक साथ चुनाव कराने पर 47 राजनीतिक दलों ने अपनी राय कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल को सौंपी हैं। 32 पार्टियों ने देश में एक साथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया है। हालांकि, इस नीति का समर्थन करने वाले दलों में सिर्फ दो राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और एनपीपी हैं। एनपीपी भी एनडीए का हिस्सा है। तमिलनाडु चुनाव आयुक्त रहे पलानीकुमार ने एक देश-एक चुनाव पर आपत्ति जताई है।

कांग्रेस का तंज, वन नेशन, नो इलेक्शन

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार का मकसद सिर्फ ‘वन नेशन, नो इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, कोई चुनाव नहीं) का है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार संविधान को पूरी तरह से नष्ट करना चाहती है। प्रधानमंत्री का उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। वह, स्पष्ट बहुमत, दो-तिहाई बहुमत, 400 सीट की मांग कर रहे हैं… वे बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान को पूरी तरह से नष्ट करना चाहते हैं।” रमेश ने आरोप लगाया कि सरकार का मकसद ‘एक राष्ट्र, कोई चुनाव नहीं’ है।

भाजपा बोली- धन और संसाधन को बचाना है…

भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने एक साथ चुनाव के हक में राय जाहिर की है। भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है और इसका उद्देश्य धन और अन्य संसाधनों को बचाना है।

अब आगे क्या

रिपोर्ट लोकसभा चुनाव के बाद कैबिनेट के सामने रखी जाएगी। कैबिनेट के फैसले के अनुरूप कानून मंत्रालय संविधान में वह नए खंड जोड़ेगा, जिसकी सिफारिश विधि आयोग ने की है, ताकि चुनाव एक साथ हो सकें। इसे संसद के दोनों सदनों में पारित कराया जाएगा और राज्य विधानसभाओं से भी प्रस्ताव पारित करने की सिफारिश की जाएगी। इसके बाद तीन चरणों में 2029 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ सुनिश्चित किए जा सकेंगे।

00000000000

प्रातिक्रिया दे