-ओडिशा हाईकोर्ट ने दिया आदेश
भुवनेश्वर। डॉक्टरों की लिखावट से परेशान ओडिशा हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताते हुए बड़े (कैपिटल) अक्षरों में लिखने का हुक्म दिया है। जस्टिस एसके पाणिग्रही की सिंगल बेंच ने मुख्य सचिव को यह आदेश प्रदेश के सभी डॉक्टरों को पहुंचाने को कहा है। इसके तहत उन्हें दवा के पर्चे से लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक में लिखावट सुधारने को कहा गया है। सांप के काटने से मरे एक व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद हाईकोर्ट को यह आदेश देने पड़े। यह रिपोर्ट कोर्ट पढ़ ही नहीं पा रही थी। उसने संबंधित डॉक्टर को तलब कर लिया। वहीं मृतक के पिता का कहना था कि इसी रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार ने मुआवजा देने से इन्कार कर दिया है और इसी वजह से उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली है। मामले में डॉक्टर कोर्ट में पेश हुआ। उसके पक्ष को सुनने के बाद कोर्ट ने मृतक के पिता को 1 महीने में तहसीलदार के सामने अपना मामला फिर से रखने को कहा।
अमेरिका में 7,000 जानें ले रही डॉक्टरों की गंदी लिखावट
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस ने 2006 में किए अध्ययन में बताया कि अमेरिका में हर साल 320 करोड़ बार डॉक्टर दवा के पर्चे लिखते हैं। इनमें गंदी लिखावट की वजह से 15 लाख अमेरिकी गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं। यही नहीं, 7,000 की मौत भी गंदी लिखावट की वजह से गलत दवा व गलत डोज लेने से हो जाती है।
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हत्या से जुड़े मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को राहत, HC का बरी करने का फैसला बरकरार
इलाहाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें हत्या के मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को बरी किए जाने के खिलाफ 2004 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया गया था। मामला 2000 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में प्रभात गुप्ता की हत्या से जुड़ा है। दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ और ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए तथ्यों के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। पीठ ने आठ जनवरी को पारित अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल को विस्तार से सुनने और रिकॉर्ड पर रखी की गई सामग्री को पढ़ने के बाद हम दोनों अदालतों द्वारा दर्ज किए गए तथ्यों में हस्तक्षेप के इच्छुक नहीं हैं। गौरतलब है कि ट्रायल कोर्ट ने 2004 में अजय मिश्रा को मामले से बरी कर दिया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ता राजीव गुप्ता द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मई 2023 के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। जिसमें कहा गया था कि ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई गलती नहीं थी। इससे पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपील को हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से प्रयागराज की मुख्य पीठ में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। गौरतलब है कि हत्या के सिलसिले में लखीमपुर में दर्ज प्राथमिकी में अजय मिश्रा और अन्य का नाम शामिल था, जिनकी तिकुनिया इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। लखीमपुर खीरी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 2004 में अपर्याप्त सबूतों के चलते अजय मिश्रा और अन्य को मामले से बरी कर दिया। मृतक के परिवार ने फैसले को चुनौती देते हुए एक अलग पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।
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