-भारतीय नामों को दुनिया में मिली पहचान
नई दिल्ली। बीमारियों के भारतीय नामों को वैश्विक पहचान दिलाने में बड़ी कामयाबी मिली है। अब अमेरिका, चीन, जापान और यूके सहित सभी देश बुखार से लेकर अन्य सभी तरह की बीमारियों के भारतीय नाम भी जान सकेंगे और शोध व अनुसंधान में इनका जिक्र भी करेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इंटरनेशनल क्लेसिफिकेशन ऑफ डिजीज नामक एक सूची तैयार की है, जिसमें भारतीय पारंपरिक चिकित्सा की शब्दावली को शामिल किया है। आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी सहित सभी चिकित्सा में रोगों का वर्गीकरण हुआ है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डब्ल्यूएचओ ने स्थान दिया है।10 जनवरी को भारत में डब्ल्यूएचओ और आयुष मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी संयुक्त रूप से यह सूची जारी करेंगे। इसका सबसे बड़ा लाभ शोध व अनुसंधान में होगा, क्योंकि अभी भारत में इन बीमारियों को जिन नामों से जाना जाता है उनके बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानकारी नहीं होती है।उदाहरण के तौर पर वर्टिगो गिडिनेस डिसऑर्डर बीमारी एक नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर है, जिसे आयुर्वेद में भ्रमः, सिद्धा में अजल किरुकिरुप्पु और यूनानी चिकित्सा में सद्र-ओ-दुवार के नाम से जाना जाता है।
भारत में उपचार में होगी आसानी
पारंपरिक चिकित्सा के जरिये भारत में आकर इलाज कराने पर सरकार काफी ध्यान दे रही है। बीमारियों के भारतीय नामों का विदेश में पता चलने से वहां की स्वास्थ्य बीमा कंपनियां और योजनाओं का लाभ लेने में मरीजों को सहूलियत होगी और वे भारत में आकर अपना इलाज करवा सकें।
बीमारियों के कोड भी किए विकसित
आयुष मंत्रालय ने हाल ही में नेशनल आयुष मोरबीडिटी एंड स्टंडरडाइज्ड इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल (नमस्ते) लॉन्च किया है, जिस पर आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी सहित सभी पारंपरिक चिकित्सा में बीमारियों को जिस नाम से पहचाना जाता है उन्हें एक कोड का स्वरूप दिया है। सभी रोगों के लिए कोड विकसित कर लिया है, जिसके लिए डब्ल्यूएचओ से अनुबंध भी हुआ।
कई क्षेत्रों में व्यवस्था हो सकेगी और सशक्त
आयुष मंत्रालय में विशेष कर्तव्य अधिकारी आयुष ग्रिड डॉ. साकेत राम त्रिगुल्ला बताते हैं कि इस प्रयास से भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण व्यवस्था, शोध, आयुष बीमा कवरेज, अनुसंधान, नीति-निर्माण व्यवस्था और सशक्त होगी। इसके अलावा समाज में विभिन्न बीमारियों पर अंकुश लगाने के लिए भविष्य की नीतियों के निर्माण में भी इन कोड्स का उपयोग होगा।
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